अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : ‘तन और मन से तो पहले ही टूट चुके थे, अब धन से भी टूट चुके हैं. इंसाफ़ की कोई उम्मीद नहीं है. न्याय मिलने की कोई संभावना दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है. बस हम अपने दिल को समझाने में लगे हैं कि कोई डेल्टा थी ही नहीं.’
ये दर्द उस बदनसीब बाप का है, जिसने आज से ठीक दो साल पहले अपनी सबसे होनहार बेटी को खो दिया.
इस बदनसीब बाप का नाम महेन्द्रराम मेघवाल है. इनकी 17 साल की प्रतिभाशाली बेटी डेल्टा मेघवाल को आज ही के दिन साल 2016 में राजस्थान के नोखा शहर में ‘श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय’ में बलात्कार के बाद मार डाला गया.
महेन्द्रराम मेघवाल के दर्द का अंदाज़ा आप उनकी बातों से लगा सकते हैं. बेटी की मौत ने उन्हें फिलॉस्फर बना दिया है. वो बात-बात में इतनी गहरी बात कह जाते हैं कि हम सोच भी नहीं सकते.
महेन्द्रराम मेघवाल TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में कहते हैं कि, देश में ऐसा सिस्टम है तो फिर हम न्याय की उम्मीद क्यों रखें? हमने जिस ‘वर्ग’ में जन्म लिया है, उस ‘वर्ग’ को न्याय मिल ही नहीं सकता. न्याय बड़े लोगों के लिए है. उच्च जातियों के लिए है. हर बार हम ही मरते हैं और हमें ही मरना है.
बता दें कि इस मामले में राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने सीबीआई जांच कराने का आश्वासन दिया था. लेकिन महेन्द्रराम मेघवाल बताते हैं कि, सीबीआई जांच की बात तो दूर अब तो न्यायालय भी अपराधी को अपराधी ही मान रही है. एक को छोड़कर सारे अपराधी मज़े में बाहर घूम रहे हैं. एक जो जेल की सलाखों में है, वो भी छूट जाएगा.
इस मामले को लेकर तमाम सियासी पार्टी के नेताओं ने सियासत की. राहुल गांधी तो डेल्टा के परिवार से भी मिलें और मीडिया में यह बयान भी जारी किया कि ‘मैं अंतिम सांस तक डेल्टा के इंसाफ़ के लिए संघर्ष करूंगा.’ लेकिन इस बयान के बाद न राहुल गांधी नज़र आएं और न ही उनकी पार्टी का कोई नेता. अन्य सियासी पार्टियों के नेताओं का भी यही हाल है.
महेन्द्रराम मेघवाल बताते हैं कि, इस मामले को लेकर सारी सियासी पार्टियां एक जैसी ही है. दूसरे से क्या गिला-शिकवा करें, अपने ही समाज के नेताओं ने धोखा दिया है.
वो बताते हैं कि, डेल्टा की मां लहरी देवी (41) को आज भी यक़ीन नहीं होता कि डेल्टा हम सबके साथ नहीं है. डेल्टा की छोटी बहन कुमारी नाखू (17) ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है. नाखू 11वीं क्लास में कृषि विज्ञान की छात्रा थी.
महेन्द्रराम मेघवाल कहते हैं कि मेरे दोनों लड़के तो पढ़ रहे हैं, लेकिन बेटी ने पढ़ाई छोड़ दी है. उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं बची है कि वो आगे पढ़े. इसी पढ़ाई ने तो डेल्टा को हम सबसे छीन लिया है. अब बस मन को ये तसल्ली दे लेते हैं कि कोई डेल्टा हमारे लिए थी ही नहीं, जो अपने थे, वो साथ हैं, जो अपने नहीं हैं, उन्हें उपर वाले ने अपने पास बुला लिया.
घर में कमाने वाले फिलहाल सिर्फ़ महेन्द्र राम हैं. वो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं. उनका कहना है, तन और मन से तो टूट ही चुके थे, अब धन से भी टूट चुके हैं. आर्थिक हालात दिन-प्रतिदिन ख़राब होते जा रहे हैं. कोर्ट का चक्कर, सामाजिक कार्यकर्ताओं व कार्यक्रमों का चक्कर और घर आए ‘मेहमानों’ के ‘स्वागत’ ने हमारी कमर तोड़ दी है. वो आगे कहते हैं कि, बस मेरी ज़िन्दगी का अब एक ही मक़सद है कि जो बच्चे बचे हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर दूं. बाक़ी तो बंद कमरे ही हमारी ज़िन्दगी है और बंद कमरे में मर जाना है.
दो साल के गुज़र जाने का ज़िक्र करने पर वो कहते हैं कि, ये साल तो आते-जाते रहेंगे, साल दर साल बीतता रहेगा. कल जो था वो आज नहीं है, और जो आज है वो कल नहीं रहेगा. फिर वो आगे अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहते हैं, जैसे-तैसे वक़्त गुज़र रहा है, एक दिन हम भी गुज़र जाएंगे…
जानिए! आख़िर कौन हैं डेल्टा मेघवाल?
डेल्टा मेघवाल का जन्म 7 मई, 1999 को भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित राजस्थान के बाड़मेर ज़िला के गडरा रोड तहसील में त्रिमोही गांव में हुआ. पिता ने पिता काफ़ी सोच-समझकर उसका नाम ‘डेल्टा’ रखा. उनका कहना है कि जिस प्रकार नदी कई विशेषताएं छोड़कर मिट्टी को एक नया सौन्दर्य का रूप देकर जाती है, इसी प्रकार की कई प्रतिभा व विशेषताएं मेरी बेटी डेल्टा में भी मौजूद थी.
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डेल्टा मेघवाल ने पांचवीं तक की पढ़ाई गांव के राजीव गांधी स्वर्ण जयंती पाठशाला से की. फिर आठवीं तक की पढ़ाई गांव से 2 किलोमीटर दूर स्थित आदर्श विद्या मंदिर उच्च प्राथमिक विद्यालय से हासिल की. 10वीं की परीक्षा राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय से और 12वीं की परीक्षा 2014 में स्वर्गीय तेजूराम स्वतंत्रता सेनानी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से उत्तीर्ण की.
2014 में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित BSTC (बेसिक स्कूल टीचर कोर्स) के 600 अंकों वाली प्रवेश परीक्षा में 469 अंक हासिल करके नोखा के श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय में दाखिला लिया था.
डेल्टा की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि कोई भी साहसी और रचनात्मक कार्य करने में कभी पीछे नहीं रहती थी. वो एक पेन्टर व गायिका होने के साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थी. उसके द्वारा दिया गया भाषण लोगों के दिलों में उमंग और देशभक्ति का जोश भर देता था.
डेल्टा के जानने वाले बताते हैं कि वह बचपन से ही भाषण देने में निपुण थी. उसने महज़ 5 साल की उम्र में अपना पहला भाषण दिया था. यही नहीं, 8 साल की उम्र में स्वतंत्रता दिवस समारोह में अंग्रेज़ी में भाषण दिया था, जो आज भी लोगों के ज़ेहन में ज़िन्दा है.