अंधविश्वास ख़त्म करने की सरकारी नाकामी में बढ़ते मनोरोगी

(Photo by Fahmina Hussain)

फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net

सासाराम (बिहार) : आज जहां एक ओर देश में मेडिकल साईंस आसमान की बुलंदियों को छू रहा है. जहां अत्याधुनिक मशीनों से हर बीमारी का इलाज संभव हो रहा है. वहीं दूसरी इस देश की यह भी हक़ीक़त है कि लोग मज़ार, ओझा, तावीज़ और जिन्नात आदि पर यक़ीन रखते हैं. आज भी इस प्रथा को ख़त्म नहीं किया जा सका है.


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आज भी अन्धविश्वास के खेल में पूरा देश जकड़ा हुआ है. बिहार में तो आज भी चैत महीने में भूतों का मेला लगता है, जहां तमाम रोगों का इलाज भूत भगाकर किया जाता है.

बिहार राज्य के औरंगाबाद ज़िले के बस्तीपुर गांव में रहने वाली 42 साल की जहां आरा हर जुमेरात को अपनी बेटी के साथ दरगाह जाती हैं. उनका मानना है कि उनकी बेटी पर किसी जिन्नात का साया है, इसलिए अच्छे भले घर में शादी करने के बाद ससुराल वालों ने उसे छोड़ दिया.

बक़ौल जहां आरा, उनकी बेटी बचपन में छत से गिर गई थी, इलाज हुआ और वो ठीक भी हो गई, लेकिन उसके बाद दिमाग़ में चोट लगने से उसकी मानसिक स्थिति कमज़ोर हो गई. वह चीजें रखकर भूल जाती है.

(Photo by Fahmina Hussain)

इलाज के बारे में पूछने पर जहां आरा बताती हैं, बनारस के बीएचयू में तीन महीने इलाज चला था, लेकिन औरंगाबाद से बनारस जाने में बहुत खर्चा आता था और बीमारी भी ठीक ही नहीं हुई.

जहां आरा का ये भी मानना है कि अगर कोई बीमारी होती तो ठीक हो जाती.

ऐसी ही एक महिला सतारपीर में मज़ार पर आती हैं. वो नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बताती हैं कि उसके बेटे को मिर्गी की बीमारी है. लेकिन इलाज से ज़्यादा वो पीर बाबा पर यक़ीन रखती हैं. उनका मानना है कि बाबा सब ठीक कर देंगे.

इस मामले में डेहरी ऑन सोन के मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर उदय कुमार का कहना है, “अंधविश्वास का मामला बहुत हद तक गरीबी से जुड़ा माना जा सकता है. कारण आर्थिक तंगी के चलते गरीब अपना इलाज महंगे निजी अस्पतालों में नहीं करा पाते. ऐसे में नीम हकीम की शरण में जाना उनकी मजबूरी बन जाती है.”

वो आगे कहते हैं, “अंधविश्वास से निजात दिलाने के लिए सरकार को सबसे पहले गांवों में स्वास्थ्य के ढांचे को मज़बूत बनाना होगा, जिसकी पहुंच अभी तक समाज के निचले तबक़े तक नहीं हुई है.”

बता दें कि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि साल 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्‍या किसी न किसी प्रकार की मानसिक बीमारी से पीड़ित होगी. लेकिन भारत में जहां केवल 3500 मनोचिकित्‍सक हैं, वहीं 45 करोड़ से भी अधिक लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं. अत: सरकार को अगले दशक में इस अंतराल को काफ़ी हद तक कम करने की समस्‍या से जूझना होगा.

इतना ही नहीं, विश्व विकलांग रिपोर्ट के मुताबिक़ मानसिक अस्वस्थता और गरीबी के बीच परस्‍पर संबंध स्पष्ट होता है, जिसके मुताबिक़ मानसिक रूप से अक्षम लोग सबसे निचले स्तर पर हैं. अभी भी समाज में सिर्फ़ उच्च स्तर के लोगों तक ही मनोचिकित्सकों की ही पहुंच है.

(Photo by Fahmina Hussain)

डॉक्टर रंजन कहते हैं, “भारत में मानसिक रूप से बीमार अधिकतर लोग गांव में रहते हैं और वहां सचमुच उनके लिए कोई देखभाल की सुविधा उपलब्‍ध नहीं है.”

वो कहते हैं कि अभी भी लोग मानसिक रोगी को इलाज से ज़्यादा ताबीज-गंडा बांधने में ज्यादा यक़ीन रखते हैं. अगर बिहार में देखें तो शायद ही यहां मानसिक रोग के लिए पर्यात मात्रा में डॉक्टर उपलब्ध हैं.

डॉक्टर उदय बताते हैं कि मानसिक रोग से ग्रस्त ज़्यादा संख्या में महिलाएं आती हैं. वे ज़्यादातर अवसाद की शिकार होती हैं.

वो कहते हैं, सूबे में अभी भी महिलाओं को मानसिक रोग के लिए परिवार वाले कम ही लाते हैं. लेकिन पहले की तुलना में लोग जागरूक ज़रूर हुए हैं. आज से दस साल पहले जहां लोग इसके इलाज के नाम पर भागते थे. लेकिन आज इलाज के लिए आते हैं.

कर्बला के मज़ार पर फूल बेचने वाले शमीम बताते हैं कि यहां जुमेरात और जुमा के दिन औरतों की बहुत भीड़ होती है. तिलौथू से एक परिवार अपने बेटे को लेकर आता था. शमीम की नज़र में उनका बेटा पागल था.

इलाज के बारे में पूछने पर शमीम कहते हैं, कहां इलाज मैडम? गरीब परिवार था. कुछ दिन पहले उसका बेटा मर गया. बक़ौल शमीम, अच्छा-ख़ासा जवान लड़का था, किसी जिन्नातिन ने क़ब्ज़ा कर लिया था.

(Photo by Fahmina Hussain)

वहीं मज़ार के सूफी बाबा बताते हैं कि वो अक्सर लोगों से दवा और दुआ दोनों की बात कहते हैं, लेकिन कुछ लोग अपनी माली हालत से मज़बूर हो कर मज़ार पर अपनी आस्था को बढ़ा लेते हैं.

ग़ौरतलब रहे कि समय-समय पर अंधविश्वास को समाज से मिटाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए गए, लेकिन अंधविश्वास को मिटाने की हर कोशिश में सरकार नाकाम ही नज़र आ रही है.

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