आस मोहम्मद कैफ | मुज़फ्फरनगर
पांच साल पहले मुज़फ्फरनगर में दंगो के बाद से इलाके का मुसलमान सहमा हुआ था. किसी तरह अपनी टूटी ज़िन्दगी, अपनों को गंवाने के बाद, घर से बेघर होने के बाद, बच्चो के स्कूल छूटने के बाद, रोज़ी रोटी की जद्दोजहद के बीच फिर से शुरू करने में लगा था.
लेकिन इधर अब इलाके का मुस्लमान रासुका यानी नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट के तहत मुक़दमे दर्ज होने से फिर सहम सा गया है. अब डर इतना कि क्रिकेट मैच में बच्चो की मामूली झगडे में भी उसपर रासुका तामील कर दी जाती हैं. महीनो जेल की सिलाखों के पीछे रहने के बाद बाहर आने पर फिर उसे ज़िन्दगी बेमानी लगने लगती हैं.
रासुका के कुछ चर्चित केस:
हाजी शेर (56) मोहल्ला खालापार,मुजफ़्फ़रनगर के निवासी हैं और इनकी शहर के व्यस्तम ‘शिव चौक’ जूते बेचने की दुकान है. पिछले साल 27 जून को पशुओं की अवैध कटान की शिकायत पर यहाँ एक गली कस्सावान में पुलिस ने दबिश दी तो विवाद हो गया और लोग आक्रोशित हो गए. इसके बाद स्थानीय पुलिस ने वक़्त की नजाकत को देखते हुए इन लोगो के बीच हाजी शेर को लोगो को समझाने भेजा. यहाँ पुलिस की गाड़ी में तोड़फोड़ भी हुई और बवाल हुआ.
इसके बाद हंगामा करने वाले लोगो के खिलाफ गंभीर धाराओं मुकदमा दर्ज हो गया.पुलिस ने हाजी शेर और उसके पुत्र इमरान के खिलाफ भी मुक़दमा दर्ज कर लिया. फिर दोनों बाप बेटो पर रासुका लगा दी गई.
हाजी शेर बताते हैं,”मुझे पुलिस की भलाई का यह सिला मिला. बीजीपी के कुछ नेता मुझसे नाराज थे और इलाके में लोग मेरी बात मानते थे तो मुझे नीचा दिखाने और लोगो में डर पैदा करने के लिए यह किया गया.बाद में हम अदालत में गये जहाँ रासुका निरस्त कर दी गई मगर मुझे 6 महीने से ज्यादा जेल में रहना पड़ा. जेल से बाहर आने के बाद मैं अफसरों से मिला कि आपने ऐसा क्यों किया वो चुप रहे और कोई जवाब नही दे पाएं”.
आज एक साल से ज्यादा वक़्त बीत गया हैं. लेकिन मौहल्ले में डर और दहशत का साम्राज्य है. बहुत सी दुकानों पर अब तक ताला है कुछ घरों के लोग यहाँ से पलायन कर गए है. स्थानीय लोग बताते हैं कि रेहड़ा चलाकर अपने परिवार चलाने वाले मान (58) भी उन लोगो में शामिल है जिनपर रासुका के तहत कार्रवाई की गई. मान(58) बताते है इस सबके बीच वो बेहद कर्जदार हो गया है उसके बच्चे मजदूरी कर रहे है बस उनकी गलती यह है कि इस गली में मेरा भी घर है.
स्थानीय समाजसेवी दिलशाद पहलवान कहते है, “एक ही मौहल्ले के 9 लोगो पर रासुका का शायद यह पूरे देश में पहला मामला होगा,नाजायज़ तरीके सरकार दमन कर रही है”.
खास बात यह है कि इस बवाल का मुख्य आरोपी ‘काला’ अब भी फरार है. उसी पर पुलिस की गाड़ी में तोड़फोड़ करने का आरोप है.
दूसरा केस देखिये. मुजफ़्फ़रनगर जनपद के मंसूरपुर थाने क्षेत्र के गाँव पुरबालियान में इसी बकरीद (22 अगस्त) के एक दिन पहले क्रिकेट खेल रहे कुछ लड़के आपस में झगड़ा पड़े. चूँकि गाँव के क्रिकेट के मैदान में चौके-छक्के की सीमा रेखा नही होती इसलिए अनुमान में अक्सर ग़लतफ़हमी हो जाती है. खेल रद्द कर दिया और दोनों टीम के कुछ लड़के आपस में मारपीट करने लगे. यह एक सामान्य घटना थी अक्सर होती रहती है. इसके बाद यह खिलाड़ी अपने घर आ गए. इनमे ज्यादातर नाबालिग़ थे,बच्चो के परिजनों को जब जानकारी मिली तो बच्चो को डांट दिया और झगड़े से दूर रहने के लिए कहा. मगर नासमझ बच्चो के एक समूह ने दूसरे पक्ष के नौकर को पीट दिया. इसके बाद पहले पक्ष के लड़को ने आरोपी के घर पहुंचकर गाली-गलौच कर दी. इस मामूली घटना में 26 लोगो को जेल जाना पड़ा, इनमे से ज्यादातर एक महीने से ज्यादा समय तक जेल में रहे, इनमे वो बच्चे भी शामिल है जो उस दिन क्रिकेट खेल रहे थे, 65 साल बूढ़े शमशेर अली के साथ तीन लोगो पर रासुका लगा दी गई,गाँव में अब तक पीएसी तैनात है. पुरबालियान गाँव के इस मामले में जिसमे किसी को खरोंच तक नहीं आई है, तीन लोग रासुका में जेल में बंद है,दो दर्जन जमानत पर बाहर है,यह सभी मुसलमान है. इसी गाँव की 75 साल की हसीना के एक बेटे महबूब (35) को रासुका में निरुद्ध किया गया. हसीना कहती है, “एक झगड़ा जो हुआ ही नही उसमे मुसलमानो का दिमाग ठीक कर रहे हैं. वो पुलिस की इस बात को खारिज़ करती है कि यहाँ साम्प्रदायिक तनाव है वो कहती है आप जिस’हिन्दू’ के घर कहे मैं चली जाती हूँ वो ही मुझे मां कहेगा और खाना खिलायेगा,अगर ये नेता और पुलिस न हो तो हम चैन से रहे.”
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जनवरी 2018 को बताया था कि उसने 160 लोगो को रासुका में निरुद्ध किया है, जाहिर है यह संख्या अब बहुत बढ़ गई है रिहाई मंच के राजीव यादव के मुताबिक यह अब 200 को पार कर रही है,दुर्भाग्य से इसमें ज्यादातर दलित और मुसलमान है.
रासुका और राजनीति:
वैसे मुज़फ्फरनगर के सभी लोग जिनपर रासुका लगायी गयी वो मुसलमान हैं. इससे पहले भीम आर्मी के सुप्रीमो चन्द्रशेखर पर लगाई गई रासुका भी काफी चर्चित रही है,उनपर अदालत से जमानत मिलने के बाद रासुका लगाई गई थी जिसकी अवधि को लगातार बढ़ाया जा रहा था. चंद्रशेखर रिहा हो गए और अब राजनीति में हैं. पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता हरेंद्र मलिक कहते है “यह दमन कारी नीति का हिस्सा है,कानून के रखवाले भाजपा के नेतागणों के इशारों पर नाच रहे है भाजपा के नेता सरेआम पुलिस पीट रहे हैं मगर उनपर रासुका नही लग रही उनकी हिमायत में पुलिस की गाड़ी तोड़ दी जाती है जबर्दस्ती आरोपी को पुलिस से छीनने की कोशिश की जाती है,अफसर नेतागणों के मुंशी बन गए है दलितों मुसलमानो और पिछड़ों के खिलाफ फ़र्ज़ी मुक़दमे लिखाये जा रहे हैं,सरकारी मशीनरी का जमकर दुरूपयोग हो रहा है,गुनहगारों पर रासुका नही लगाई जा रही जबकि जातीय और मजहबी आधार पर एक तरफ़ा कार्रवाई की निंदा की जानी चाहिए”. भीम आर्मी के मुजफ़्फ़रनगर जिला अध्यक्ष उपकार बावरा अब तक रासुका में बंद है. मेरठ की हस्तिनापुर के पूर्व विधायक योगेश वर्मा पर लगाई गई रासुका को लेकर भी सरकार की किरकिरी हुई. उनकी पत्नी मेरठ से मेयर है. मगर उनके हिंसा में संलिप्तता के कोई प्रमाण नही थे,पुलिस ने बेहद अपमानित तरीके से उन्हें जेल भेज दिया और इसके बाद उनपर रासुका लगा दी. फ़िलहाल वो भी अदालत के आदेश पर बाहर आ गए है.
क्या कहता हैं प्रशासन:
उत्तर प्रदेश सरकार के एडीजीपी आनंद कुमार जातीय और मजहबी आधार पर रासुका लगाएं जाने से स्पष्ट इंकार करते है वो कहते है”पुलिस निष्पक्ष होकर काम करती है जातीय या मजहबी आधार पर कोई फैसला नही लेती,रासुका दबंग और कानून व्यवस्था में रोड़े अटकाने वाले गंभीर प्रवर्ति के अपराधियों के विरुद्ध लगी है,इसे एक तरफ़ा कार्रवाई नही कहा जा सकता है”.