यहां अब मुद्दों की कोई बात नही कर रहा. स्थानीय लोगो के मुताबिक मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि बस यही है कि उसने पाकिस्तान में बम गिरवा दिया.युवाओं में गंभीरता का अभाव साफ दिखाई देता है.गांव के लोग मोदी के काम नही गिनवा पाते हैं वो बस यह कहते हैं”सांसद नकारा है कभी गांव में नही आया मगर मोदी को वो वोट देंगे.भायला गांव देवबंद विधानसभा में गौरतलब है यह गांव पिछले 15 साल से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है और यहां के राजेन्द्र राणा दो बार चुनाव जीतकर देवबंद विधानसभा से विधायक बने और उन्हें मुस्लिमों का समर्थन मिलता रहा.अब गांव के राजपूत अब दलित मुस्लिम एकता के विरुद्ध वोट करने की बात कह रहे हैं.पहले ये समाजवादी पार्टी को वोट करते थे.
देवबंद में महागठबंधन की रैली को गेम चेंजर माना जा रहा है. इस रैली पश्चिमी उत्तर प्रदेश चर्चा का बाज़ार बेहद गर्म कर दिया है.देवबंद के पूर्व विधायक माविया अली ने बताया कि गेम तो पहले ही चेंज हो चुका है.बस अब तस्वीर साफ हो गई है.कुछ लोगो के सवालों का जवाब मिल गया है.
दरअसल यह चर्चा इसलिए हो रही है कि महागठबंधन की इस रैली को अब तक कि सबसे बड़ी रैली बताया जा रहा है.रैली में ट्रैफिक व्यवस्था देख रहे एक सब इंस्पेक्टर के मुताबिक वो पिछले दिनों यहां हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से तीन गुना भीड़ आई. उन्ही के पास खड़े एक दूसरे पुलिस अफसर कहते हैं “अब देखना यह है कि ये वोटर भी है या नही क्योंकि भीड़ तो 2017 के अखिलेश -राहुल की रैली में भी खूब आ रही थी”.
गंगोह के सुधीर चौधरी ने भी रैली में रालोद कार्यकर्ता के तौर पर शिरकत की है उन्होंने कहा कि” इस रैली ने बहुत सारे कन्फ्यूजन खत्म कर दिए बीजीपी के लोग गठबंधन के बारे में अफवाह फैला रहे थे कि गठबंधन में अजित सिंह को बहुत अधिक इज्जत नही है.दलित जाट को वोट नही देगा मगर मायावती जी ने जाटों का भी दिल जीत लिया.चौधरी साहब के साथ साथ उनके बेटे जयन्त को भरपूर इज्जत मिली.उन्हें सबसे बाद में बुलवाकर सम्मान दिया गया.मंच पर मायावती जी लगातार समाजवादी पार्टी और रालोद को वोट देने के अपील भी कर रही थी.
महागठबंधन रैली में एकजुटता का संदेश सबसे महत्वपूर्ण था.बहुत बड़ी संख्या में यहां दलित जाट और मुस्लिम एकजुटता दिखाई भी दी.गठबंधन के तीनों नेताओं ने व्यवहार और भाषण में एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखाया.
इसके अलावा तमाम बड़े नेता एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखाते रहे.मंच पर अजित सिंह सबसे पहले पहुंच गए थे और पिछली सीट पर बैठ गए.समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने उन्हें आगे बैठने का अनुरोध किया जिसपर उन्होंने इंकार कर दिया. इसके बाद अखिलेश यादव का हेलीकॉप्टर पहुंचा मगर वो भी 20 मिनट तक गाड़ी में ही बैठे रहे.सबसे बाद में मायावती आई फिर तीनो नेता एक साथ मंच पर पहुंचे और बैठ गए.अखिलेश बाद में बैठे उन्होंने दोनों नेतागणों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया.
रैली में भीम आर्मी के कार्यकर्ता भी सैकड़ो की संख्या में पहुंचे वो अपने हाथों में चंद्रशेखर के फोटो लिए हुए थे और नारे लगा रहे थे हालांकि मायावती के पहुंचने से पहले इन्हें उतार लेने के लिए कहा गया.राहुल गौतम ने हमें बताया कि वो चंद्रशेखर को अपना हीरो मानते हैं वो नेताओं को बताना चाहते थे कि यहां चंद्रशेखर भाई को नजरअंदाज नही किया जा सकता.बाद में चंद्रशेखर ने ट्विटर पर इन्हें धन्यवाद कहा.मायावती ने 32 मिनट,अखिलेश ने 28 मिनट और अजित सिंह ने 10 मिनट में अपनी बात खत्म की.
रैली में दलितों की संख्या सबसे ज्यादा थी.यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी रैली थी.रैली में सुरक्षा व्यवस्था के लिए राजस्थान की भी पुलिस बुलाई गई थी.
रैली में कैराना,सहारनपुर,मुजफ्फरनगर और बिजनोंर की पुरकाजी विधानसभा के लोग बुलाएं गए थे.
महागठबंधन की इस रैली ने दलितों जाटों और मुसलमानों की एकजुटता बढ़ाने का काम किया है.हालांकि यहां गठबंधन के नेताओं में सबसे बड़ी चिंता मुस्लिम वोटों के बंटवारे को लेकर दिखाई दी.मायावती ने तो सीधे तौर पर कहा भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा ना होने पाएं.
सहारनपुर में इस रैली का मुस्लिम वोटों पर असर भी दिखाई दिया.कांग्रेस के इमरान मसूद के समर्थकों में हलचल दिखाई दी और मुस्लिम बहुल इलाकों में गठबंधन के पक्ष में चर्चा होने लगी.टीचर कॉलानी के युवा शाह आलम के अनुसार मुसलमानों के लिए ही नही दलितों और किसानों के लिए मोदी सरकार का जाना निहायत ही जरूरी है मगर मुसलमानों ने समझदारी से वोट नही किया तो वो जीत भी सकते हैं आज की रैली के बाद हम समझ गए हैं कि क्या करना है!