रिहाई मंच ने मोहम्मद सुएब ,संदीप पांडेय,राजीव यादव,हफीज किदवई आदि कार्यकर्ताओ की आवाज़ दबाने के लिए सरकार की आलोचना की है।
प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता के अनुसार को अभिव्यक्ति की आजादी पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। श्रीनगर में तो मीडिया पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है,और समाचारपत्र तक प्रकाशित नहीं हो पा रहे हैं जिससे बाहर के लोग कश्मीर की हकीकत न जान पाएं। ऐसा प्रतीत होता है कि जम्मू-कश्मीर के बाहर भी भारत के अन्य हिस्सों में कश्मीर के सवाल पर यदि कोई सरकार से अलग राय रखता है तो उसे नहीं बोलने दिया जाएगा और कोई कार्यक्रम नहीं करने दिया जाएगा। सिर्फ कश्मीर के सवाल पर ही नहीं अयोध्या में दो दिन की साम्प्रदायिक सद्भावना पर बैठक पर रोक लगाने से तो ऐसा लगता है कि अन्य विषयों पर भी जिसमें भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राय से अलग राय रखी जाने वाली हो पर रोक लगा दी गई है। यह तो आपातकाल जैसी परिस्थिति जान पड़ती है।
रिहाई मंच का कहना है कि पूर्ण बहुमत से दूसरी बार सरकार का गठन कर लिया हो किंतु लोकतंत्र में बड़े फैसले जो लोगों का जीवन प्रभावित करने वाले हैं, जैसे नोटबंदी, आदि मनमाने तरीके से नहीं लिए जा सकते। उनके ऊपर बहस और आम सहमति बनाना जरूरी है। भारतीय जनता पार्टी को याद रखना चाहिए के उसे देश भर में सिर्फ 37.4 प्रतिशत मतदाताओं का ही समर्थन प्राप्त है। वह यह मान कर नहीं चल सकती कि देश के सभी लोग उसके सभी निर्णयों के साथ हैं। बल्कि बहुमत उसके साथ नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने से अलग राय रखने वालों को नजरअंदाज कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के एजेण्डे को पूरे देश पर थोपना पूर्णतया गैर-लोकतांत्रिक तरीका है। और इसका विरोध करने वालों की आवाजों को दबाना तो और भी गलत है। हम इस देश में लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए के लिए संकल्पबद्ध हैं और भाजपा सरकार के गैर-लोकतांत्रिक तरीकों के खिलाफ संघर्ष करते रहेंगे।