जज बनी जानसठ की बेटी हुमा की कहानी में ‘इमोशन’ बहुत है

आस मुहम्मद कैफ, TwoCirclees.net

मेरठ-

हुमा बात करते हुए कई बार आंखे गीली कर लेती है.


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उनके नज़दीक बैठी बहने उसे ‘हुमा नही !हुमा बेटा ‘ कहकर संभालने की कोशिश करती है।हुमा उठती है और कमरे में चली जाती है.दिल खोलकर रोती है और फिर वापस आ जाती है.फिर बात करती है।एकदम जिंदादिली से.

अपनी जिंदगी में लगातार तकलीफें झेल रही हुमा ने तमाम आलोचनाओं और परस्थितियों को बौना साबित कर खुद को तसल्ली दी है.संघर्षो की आदी इस लड़की ने उत्तर प्रदेश पीसीएस (जे) की परीक्षा पास कर न्यायाधीश बनने का गौरव हासिल किया है.

प्रदेश की सर्वोच्च न्याय परीक्षा पीसीएस (जे)को क्वालीफाई कर लेने के बाद भी हुमा ठहरने के लिए तैयार नही है.वो कहती है “मैं एच जे एस(उच्चत्तर न्यायिक सेवा)की परीक्षा दूंगी और इंशाल्लाह क्वालीफाई करूँगी मैं प्रमोशन में नियमित प्रक्रिया इंतेजार नही कर सकती मैं रुक नही रही हूँ”.

हुमा के पिता 7 साल पहले इस दुनिया से चले गए वो जानसठ में मछली पालन का काम करते थे.आठ भाई बहनों में सबसे छोटी हुमा ने जानसठ छोड़ दिया और उसकी मान लें तो उसकी शुरुवाती शिक्षा आंगनवाड़ी केंद्र से हुई और उसके बाद वो बारहवीं तक जानसठ में ही पढ़ी. बाद में मेरठ आ गई हुमा कहती है.अब्बू कहते थे मुझे वक़ालत पढ़नी है.वक़ालत की पढ़ाई जानसठ में नही थी.

अपने अब्बू का याद करते हुए हुमा बताती है “अब्बू तो भाई के मर्डर के बाद से टूट गए थे.तीन साल तक कैसे जिंदा रहे मैं क्या बता सकती हूं”!आज वो नही है यह भी एक तक़लीफ़ है यह उनका ही ख़्वाब था.

2009 में हुमा के एक भाई अहसान का क़त्ल कर दिया गया था.पुलिस अब तक यह पता नहीं लगा पाई यह किसने किया.यह अलग बात है ‘पब्लिक ‘सब जानती थी.

हुमा कहती है “मीडिल क्लास लोगो की जिंदगी में बहुत परेशानियां होती है उन सब मामलों में इंसाफ भी नही मिल पाता मुझे लगा मुझे इतना ताक़तवर होना चाहिए कि कल फिर हमारे साथ कोई नाइंसाफी न हो सके.शक्ति को अर्जित करने का हमारे पास एकमात्र रास्ता ज्ञान है.वो खूब मेहनत कर पढ़ने से मिलता है इसलिए मैं अपनी किताबों को अभी भी खुला रखना चाहती हूं”.

एक समय था जब हुमा के पास पढ़ने,किताबें खरीदने और कोचिंग करने जैसी चीजों के लिए पैसे के लिए किसी अन्य पर निर्भर होना पड़ता था.उनके पिता और बड़े भाई ने हालांकि उन्हें कभी यह अहसास नही होने दिया हुमा कहती है “मुझे मेरी बहनों ने कभी यह अहसास नही होने दिया मेरे दो भाई और भी है.उन्होंने भी मदद की.मेरी एक बहन गवर्मेंट टीचर है.

मेरे दिल मे अक्सर यह जरूर आता था कि मुझे जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो जाना चाहिए.यह मेरा तीसरा प्रयास था।मैंने हिम्मत कभी नही हारी.”

हुमा की बहन रेशमा बताती है कि “हुमा को जुनून था और वो आज भी है.इस लड़की को कुछ बनने की जिद थी. इसने शादियों में जाना छोड़ दिया था।शादी के लिए आने वाले रिश्तों को इंकार करने लगीं थी.

कमरे में खुद को किताबों तक सीमित रखती थी।हमनें इसके अंदर जज बनने के लिए पागलपन देखा है”.

हुमा की जिंदगी तक़लीफ़ से भरी हुई है.उसने हर तरह के हालात का सामना किया है ताने झेले है,पैसे की तंगी का सामना किया है.भाई के कत्ल के बाद कानून को पैसे वालों के सामने झुकते देखा है।रिश्तेदारों को पलटते देखा है.मां और बाप की बीमारी देखी है.

नतीजे आने के बाद से अब तक हुमा अपनी मां से गले मिल कर कई बार रो चुकी है वो अपनी अम्मी के नजदीक रहती है.उनका हाथ पकड़ कर बैठी रहती है उनको सहलाती रहती है.

हुमा की करीबी दोस्त मानवी चौहान हमें बताती है कि “अच्छा लग रहा है कि आज हुमा खुश है.वरना तो अक्सर दोस्तों में इस बात को लेकर डिस्कस होता रहा है कि यह लड़की इतना शांत क्यों रहती है”

हुमा कहती है “तो अगर मैं दर्द सब को सुनाती तो मुझे क्या मिल जाता.मैं जानती थी कि मुश्किलों को मेरा जवाब सिर्फ कामयाबी है और वो कामयाबी मैंने पीसीएस (जे)के एग्ज़ाम को पास करने में देखी थी.

अब भी मैं ठहरने नही जा रही हूँ,अगली बारी एचजेएस की है इंशाल्लाह मैं इसे भी पास करूँगी”.

हुमा ने मेरठ से ही कोचिंग की है उनके टीचर रहे सरफ़राज़ राणा कहते हैं “हम स्टूडेंट के मनोविज्ञान को समझ लेते है.हमारे यहां से इस बार 7 बंदों ने पीसीएस (जे)क्वालिफाई किया है.मगर जो बात हुमा में थी वो किसी भी नही थी वो हर हाल बस जज बनना ही चाहती थी ऐसी ललक मैंने कम देखी है”.

जानसठ के दानिश अली खान बताते हैं इस लड़की ने ना केवल जानसठ का नाम रोशन किया है बल्कि यह सबक भी दिया है कि हालात कैसे भी हो मगर अगर इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो कोई भी लक्ष्य मिल सकता है!

हुमा कहती है ‘हमें पढ़ना ही होगा हम जैसे लोगों पर कामयाब होने का दबाव है इसके अलावा कोई और रास्ता नही है”.

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