मंगल कुंजम, TwoCircles.net
भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची में प्राप्त अधिकारों को बचाने के लिए हज़ारों की संख्या में आदिवासियों ने पहली बार बैलाडिला क्षेत्र, जिला दंतेवाड़ा, बस्तर संभाग, छत्तीसगढ़ में विशाल रैली निकाली । अपने पारंपरिक व सांस्कृतिक वेषभूषा से युक्त 25,000 ग्रामीण किरन्दुल के फुटबाल मैदान में सुबह से एकत्रित हुए और एन.एम.डी.सी परिक्षेत्र से होते हुए, मुख्य-मार्ग द्वारा ढोल, डाका के साथ नारे लगाते हुए बचेली हॉकी ग्राउंड में जन-सभा स्थल तक पद यात्रा कर के पहुंचे। जिस भी मार्ग से रैली निकली, पारंपरिक परिधान और नारे लगाते लोगों को देखने, आम नागरिक घरों से बाहर निकल पड़े तथा उस क्षण को मोबाईल में वीडियो और फोटो के माध्यम से कैद करते दिखे।
रैली में अहम् भूमिका निभा रहे आदिवासी संगठन – ‘सर्व आदिवासी समाज’ के अध्यक्ष सुरेश कर्मा ने बताया कि, “इस रैली में लोग अपने मर्जी से पहुंचे है और रैली को प्रांत से लेकर संभाग के सर्व आदिवासी समाज का सहयोग मिला है, आज लोग अपने अधिकार समझ रहे है और सरकार के द्वारा फर्जी ग्राम सभा लगा कर आदिवासीयो की ज़मीन लीज में दी जा रही है उसका पूरजोर विरोध इस रैली में कर रहे है।” ज्ञात हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। 1874 में अंग्रेजी शासनकाल दौरान ही ‘शेड्यूल्ड डिस्ट्रिक्स एक्ट,1874’ के तहत अनुसूचित जिलों की स्थापना हो चुकी थी, जिसका आजादी के बाद संविधान की पांचवी अनूसूची में उल्लेख किया। गोन्डी भाषा में एक कहावत है ‘मावा नाटे मावा राज’, अर्थात – हमारे गांव में हमारा राज; जो कि आज आदिवासी आंदोलनों का पर्याय बन चुका है।
उल्लेख की गई रैली में, पंचायत उपबंध विस्तार अधिनियम 1996 (PESA 1996), वनाधिकार एक्ट 2006 (FRA 2006) के तहत जिले के विभिन्न पंचायतों द्वारा विशाल ग्राम-सभा का सम्मेलन करने के उपरान्त – सांस्कृतिक, सवैंधानिक, अधिकार सशक्तिकरण आंदोलन के माध्यम से 4 सुत्री माँगो को लेकर ज्ञापन दिया गया। ज्ञापन में बताया गया है कि एन.एम.डी.सी. द्वारा ‘डिपॉजिट 13 नम्बर खदान’ को फर्जी ग्राम सभा आयोजित कर लीज में लेकर, वर्तमान में माइनिंग करने के लिए अदानी कंपनी को दिया गया है।
उसी तरह ही ग्राम पंचायत गुमियापल के आश्रित ग्राम – आलनार मे आरती कंपनी, रायपुर को फर्जी ग्राम सभा कर लीज में दिया गया है, इसके अलावा केशापुर पन्डेवार क्षेत्र मे जिंदल स्टील के द्वारा फर्जी ग्रामसभा कर लीज लिया गया है। फर्जी ग्राम सभा कर लीज आबंटित किये गए पंचायतों के लोगों को जब पता चला कि उनके जल, जंगल, ज़मीन को सरकार ने किसी कंपनी को दे रखा है तब उन्होंने 23 जनवरी 2019 को फिर से विशेष ग्राम सभा का आयोजन कर राष्ट्रपति और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। हालाँकि उसके बाद भी सरकार ने अभी तक कोई करवाई नही किया है। वनाधिकार क़ानून के उल्लंघन के अलावा 13 फरवरी, 2019 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट (अनादिकाल से जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी, जिनका दावा FRA के तहत नकारा जा चुका है को बेदखल करने) के फरमान के खिलाफ आदिवासी हुंकार रैली का आयोजन कर सड़कों पर उतर आए। इसी तरह कुछ दिन पूर्व ही अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम सभा को नगरीय क्षेत्र के नगरपालिका में सम्मिलित करने को लेकर ग्रामीणो द्वारा विरोध किया गया था। इन सबके अलावा 11 नम्बर 2018 को लौह खदान लीज नवीनीकरण के लिए विशेष ग्रामसभा आयोजित की गयी थी जो कि जिला प्रशासन और एन एम डी सी के अधिकारियों द्वारा रची गयी सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी।
इस पदयात्रा में आदिवासी अपने पारंपरिक तीर धनुष और ढोल नाचा के साथ हज़ारों की भीड़ में पूरे 15 किमी तक आवाज़ बुलंद करते रहे। हज़ारों की तादात में उपस्थित जनसभा को, प्रदेश स्तर से पधारे वक्ताओ ने संबोधित किया जिसमें मनीष कुंजाम, सोहन पोटाई, छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के अध्यक्ष, छ.ग बचाओ आँदोलन के सचिव व बस्तरिया समाज, और प्रांतीय सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी शामिल थे। सर्व आदिवासी समाज दन्तेवाडा की अगुवाई में यह जनसभा आँदोलन सम्पन्न हुआ और तहसीलदार के द्वारा जनसभा स्थल पर आकर ज्ञापन स्वीकार किया गया।
संविधान की पांचवी अनुसूची व वनाधिकार कानून के जानकार वक्ताओं ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब ग्राम सभा के द्वारा नियमगिरी के पहाड़ पर खदान के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया तो सर्वोच्च न्यायलय ने वेदान्ता की खदान चालू करने की अर्जी को खारिज कर दिया था, और निजी कंपनी की मंशा पर कोंध आदिवासीयो द्वारा विराम लगा दिया गया। वैसे ही बैलाडिला के पहाड़ पर फरसपाल से लेकर 13 नम्बर पहाड़ी तक ग्रामों के देवी-देवता व छन्द मौजूद हैं, ऐसे में एन.एम.डी.सी. की इस परियोजना को बंद कर देना चाहिए क्यो कि यह पहाड़ व जंगल आदिवासियों की आस्था व परम्पराओं से जुड़े हुए हैं।
रूढीगत परम्पराओं पर आधारित – ग्राम सभा या आदिवासी समाज द्वारा बनाए गए नियम क़ानून को वनाधिकार कानून में पुर्णत: संरक्षण दिया गया है, जो स्वत: अपने ग्रामक्षेत्र के नियमों को तैयार कर सकता है। इसीलिए वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी समाज समाजिक संबंधों का जाल है, और ग्राम सभा के प्रस्ताव के बिना अनुसूचित क्षेत्र में शासन प्रशासन और सरकार एक इंच भी ज़मीन को छु नही सकता, जैसा कि उच्चतम न्यायलय के निर्णय समता जजमेंट मे भी दिया गया है।
ग्राम सभा के संबंध में सूचना के अधिकार कानून के तहत माँगी गई जानकारी में गिने चुने लोगों के हस्ताक्षर पंजी पर उपलब्ध हैं, जबकि अनुसूचित क्षेत्रो की ग्राम सभा छ.ग पंचायती राज अधिनियम संशोधन 1993, में उल्लेखित धारा 129 (ख) लिखित दस्तावेज़ के अनुसार, कुल व्यस्क मतदाताओं के एक तिहाई स्थानीय पुरूष व महिला के हस्ताक्षर व पंचों के हस्ताक्षर, होने के बाद ही उस ग्राम सभा के कोरम को माना जाता है। वहीं खनिज विभाग के द्वारा प्रदान की गयी जानकारी के अनुसार जब पन्डेवार ग्राम सभा का परीक्षण किया गया तो ज्ञात हुआ कि ग्राम सभा तो हुई नहीं, परन्तु आदेश में कार्य प्रगति पर होने की जानकारी दी गयी है। वहीं ऐसा भी लिखा है उस जानकारी में ग्रामसभा की बैठक होने पर आवेदन को जानकारी दी जाएगी।
वैसे ही गौण खनिज खदान गुमडा, टिन खदान नेरली में गिनती के लोगों के हस्ताक्षर हैं व परचेली मे टिन खदान की उत्खन्न के लिए बुलाई गयी ग्राम सभा की जानकारी जनपद पंचायत तक को उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा 3 नम्बर के खदान की ग्राम पंचायतों तक को जानकारी नहीं है। 700 व्यस्को की जनसंख्या वाले ग्राम की पंजी पर सिर्फ 106 लोगों के ही हस्ताक्षर हैं जो कोरम को पूरा नहीं करता है।
इसी बीच एन.एम.डी.सी.और सी.एम.डी.सी जॉइंट वेंचर के CEO ने NDTV के एक इंटरव्यू में आरोप लगाया है कि उनको 2014 में ग्राम सभा का प्रस्ताव मिला है। जबकि वहां की सरपंच बुधारी कुंजाम और ग्रामीणों ने इस ग्राम सभा को फ़र्ज़ी बताते हुए विरोध प्रस्ताव पास किया। ग्रामीणों के अनुसार शासन के द्वारा जिस ग्राम सभा का प्रस्ताव दिखाया जा रहा है, उसमें कोरम भी पूरा नही है। गाँव की संख्या 700 से अधिक है जबकि ग्राम सभा के बारे में पंचायत के किसी भी ग्रामीण और जन प्रतिनिधियों तक को मालूम नही है।
सूचना के अधिकार कानून से प्राप्त की गयी ग्राम सभा की पंजी का अवलोकन करने से, केवल एक ही व्यक्ति द्वारा अँगूठा लगाए जाने की तरह प्रतीत होता है। जिस कारण 4 जुलाई 2014 की ग्राम सभा संदेहास्पद दिखाई पड़ती है। वहीं आरती स्पंज, रायपुर की कंपनी को भी सिर्फ 9 लोगों के हस्ताक्षर पर प्रस्ताव पारित दिखाया गया है जो संदेहास्पद है। इस तरह ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार आदिवासियों की ज़मीन को संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए उद्योगपतियों को दे रही है।
“केंद्र और राज्य की सरकारें लगातार आदिवासियों के लिए बनाए गए कानून को संशोधन कर खत्म करने का साज़िश चला रहे हैं। लेकिन आदिवासी किसी भी क़ीमत पर दंतेवाड़ा में बैलाडीला लोह खदानों को नही देंगे। पूरे पहाड़ के जल, जंगल, ज़मीन से आदिवासियों का जीवन यापन चलता है, यही हमारा जीवन जीने का सहारा है इसे किसी को नहीं देना है…” राज कुमार ओयामी, रैली में शामिल, ग्राम कडपाल के युवा ग्रामीण ने कहा। “यह रैली एक संकेत था कि संविधान में आदिवासियों के अधिकारों का कडाई से पालन हो, इसी विषय को लेकर स्वेच्छा से इस रैली में हजारों की संख्या में लोग आए। ऐसा नहीं होने पर आने वाले समय मे इससे भी उग्र आन्दोलन किया जाएगा।”
वहीं सर्व आदिवासी समाज के महासचिव ने बताया कि, “पूरा बस्तर संविधान की पांचवी अनुसूची वाला क्षेत्र है जहां पंचायत राज्य अधिनियम 1996 (PESA) लागू है और विशेष ग्राम सभा की मान्यता है जिसमें गांव के गायता, पेरमा, पुजारी को पूरे ग्राम सभा में शामिल होकर निर्णय लेने का अधिकार है। जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (3)क में स्पष्ट है कि परम्परागत विधि के बल अनुसूचित क्षेत्रो में अधिकार मिला है और परम्परागत रूप से अपने ही गांव में ग्राम सभा करने का अधिकार है। लेकिन शासन, प्रशासन पांचवी अनुसूची और पेसा कानून का उल्लंघन करती रही है। वह गांव में ग्राम सभा न करा कर नगरीय क्षेत्र में गांव के नाम से फर्जी ग्राम सभा करवाती है, निजी कंपनियों को केंद्र की सरकार और पूर्व में रही बीजेपी की छत्तीसगढ़ सरकार, हमारे अनुसूचित क्षेत्रो में माइनिंग करने के लिए अडानी और आरती स्पंज, रायपुर को हिरोली और आलानार की ज़मीन लीज में दे रखी है। आज हम पूरजोर विरोध के साथ इस रैली के माध्यम से राष्ट्रपति और राज्यपाल के नाम ज्ञापन दे रहे है और इसमें कार्यवाही नही होगी तो हम न्यायालय जाने को भी तैयार है ।”
https://www.youtube.com/watch?v=ijISVO8j1M8&feature=youtu.be