एक रात पहले मुसलमान होकर हार जाते हैं इमरान

आस मोहम्मद कैफ | TwoCircles.net

सहारनपुर


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सहारनपुर से 25 किमी दक्षिण दिशा में भांकला नाम वाले गांव में हिन्दू गुर्जरो का वर्चस्व है. यहाँ एक घेर (गांव में एक बड़ी जगह जहां जानवर भी बांधे जाते हैं) में दूर चारपाई पर कुछ बुजुर्ग हुक्का गुड़गुड़ा रहे हैं. इनमे से 76 साल के धर्मपाल सिंह अचानक जोर से हंसते हुए कहते है, “ये बेचारा (इमरान मसूद) सही कह रहा है, पूरे पांच साल यह बिना भेदभाव के काम करता है और चुनाव से एक रात पहले यह मुसलमान बन जाता है उसके बाद हार जाता है”.

 कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद खुद इस बात की पुष्टि करते हैं वो कहते है “वो कई चुनाव एक रात में हार गए उनके खिलाफ साम्प्रदयिक प्रचार हुआ जबकि हमने गुर्जर, दलित और सैनी समाज को लोगो को विधायक बनवाने का काम किया”.

यहां के नवीन चौधरी गुर्जरों के उभरते हुए नेता है उनकी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी है. डेढ़ साल पहले वे इमरान मसूद के दल कांग्रेस में आ गए थे.नवीन चौधरी अपनी ही बिरादरी के सुशील चौधरी, प्रदीप चौधरी और नरेश सैनी की तरह विधायक बनने की ख्वाईश रखते है.वो जानते हैं कि सहारनपुर में यह इन नेताओं को तरह इमरान उन्हें भी विधानसभा में भिजवा सकते है.सिर्फ इमरान ही मुस्लिम वोट ट्रांसफर कराने की कुव्वत रखते हैं.

 यही कारण है कि नवीन चौधरी गुर्जरों में इमरान मसूद के साथ जी जान से जुटे हैं.भांकला के इस गांव में शनिवार को सुबह 11 बजे सैकड़ो लोग जुटे है इनमे अधिकतर गुर्जर है.

इमरान की इस दिन की यह पहली नुक्कड़ सभा है.इमरान सरकार की कमियां को एक एक करके गिना रहे हैं और अपना संघर्ष गभी बता रहे है.वो बताते है कि कैसे मसूद घराने के हमेशा गुर्जरो से अच्छे ताल्लुक रहे हैं और उनके परिवार के लोगो ने गुर्जर नेताओं को सहारनपुर में विधायक बनने में मदद की है।इमरान कहते हैं कि उनके अलावा सहारनपुर में एक भी नेता नही है जिसकी कुंडी रात में 12 बजे भी बेहिचक बजाई जा सके वो पांच साल जनता की सेवा करते हैं और बस एक बार वोट मांगने आए हैं.इमरान के लिए तालियां बज रही है.उनके जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं.खुश होकर इमरान कहते है कि अब चुनाव से एक दिन पहले बदल मत जाना.

 2007 में मुजफ्फराबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक बनने वाले इमरान मसूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब मुसलमानों के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक है.

2014 में वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देकर चर्चा में आए थे. इसके बाद वो जेल भेज दिए गए.कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जमानत पर बाहर आएं और भाजपा के राघव लखनपाल से 64390 वोटों से चुनाव हार गए.इमरान को 407909 और उनके चचेरे भाई शादान मसूद को 52 765 वोट मिली जो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे.

शादान इस बार इमरान के साथ आ गए हैं और परिवार अब एक प्लेटफॉर्म पर है.

 2007 मुजफ्फराबाद के विधायक बनने के बाद इमरान मसूद दो बार विधानसभा और एक लोकसभा का चुनाव हार चुके है उनके चाचा रशीद मसूद सहारनपुर से पांच बार सांसद रहे हैं और पांच बार दूसरे स्थान पर रहे यह अलग बात है कि हर बार उन्होंने पार्टी बदल ली.

 

17 लाख वोटरों वाली सहारनपुर लोकसभा में 6 लाख से ज्यादा वोटर सिर्फ मुसलमान है. ये 6 लाख वोट ही इमरान की सबसे बड़ी ताकत है.मगर इस सबके बावूजद इमरान की राह बेहद मुश्किल में है.

 इसकी वजह गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हाजी फजरूरह्मान है वो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में है.सहारनपुर के बड़े मीट व्यापारी फजरूरह्मान हाल ही मेयर के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी संजीव वालिया से 1800 वोटों के नजदीकी अंतर से चुनाव हार गए थे. दलित वोटों का उनकी तरफ झुकाव है जिसके चलते बड़ी संख्या में मुसलमानों का झुकाव भी उनकी तरफ बढ़ रहा है. जाहिर है इस सबसे 44 डिबेट में हिस्सा लेकर संसद में सिर्फ 3 अर्ज़ी लगाने वाले जनता से पूरी तरह दूर रहे भाजपा के  एमपी राघव लखनपाल की बांछे खुल गई है.

 सहारनपुर लोकसभा सीट पर 3 लाख दलित वोट है.समाजवादी पार्टी के पूर्व लोकसभा प्रत्याशी रहे फ़िरोज आफताब के अनुसार यहां मुसलमान बेहद हिकमत ए अमली से वोट करेगा क्योंकि वो जानता है कि बैलेंस वोट बैंक गठबंधन के पास है और सिर्फ वो भाजपा को हराने की स्थिति में है.

 

इसी लोकसभा के भीम आर्मी के प्रभुत्व वाले क्षेत्र रामनगर में भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव कमल सिंह वालिया भी यही बात दोहराते है वो कहते हैं भीम आर्मी का पूरा समर्थन गठबंधन के साथ है हालांकि इमरान मसूद अच्छे और मेहनती नेता है मगर हमारा पहला वोट भाजपा को हराने के लिए होगा और सिर्फ गठबंधन ही इस स्तिथि में है.

 इमरान मसूद हालांकि यह दावा करते हैं कि उन्हें सब वर्गों का भारी समर्थन मिल रहा है और उनके पास पांच लाख वोट है.सहारनपुर के राजनीतिक मामलों के जानकार फ़याज़ अहमद हमें बताते हैं कि इमरान मसूद को पिछली तीन चुनावों में (विधानसभा-2012 & 2017 और लोकसभा 2014 ) में मुसलमानों में दिल खोलकर वोट की है जैसे 2017के विधानसभा चुनाव में उन्हें रिकॉर्ड 90 हजार वोट मिली मगर वो चुनाव हार गए क्योंकि भाजपा के धर्म सिंह सैनी को 4375 वोट ज्यादा मिल गई.इसी तरह उनके साथ 2012 में हुआ जब वो इससे भी ज्यादा 36.71 फीसद वोट लेकर भी हार गए थे.इसका यह मतलब है इमरान के चुनाव में मुसलमान तो उन्हें दिल खोल कर वोट करता है मगर उनके विरोध में बहुसंख्यक समाज एकजुट हो जाता है.उनकी लाख कोशिशों के बाद भी उनकी छवि को कट्टर पेश कर दिया गया है.

 गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हाजी फजरूरह्मान सुबह पांच बजे चुनाव प्रचार से लौटे हैं. समाजवादी पार्टी के पूर्व एमएलसी उमर अली खान उनके चुनाव के मुख्य कर्ताधर्ता है वो बताते हैं कि”लोग बीजीपी सरकार से बुरी तरह त्रस्त है मोदी जी ने झूठे वादों की बारिश की है वो लगातार जुमलेबाजी करते रहे नोटबंदी जीएसटी से लोग अब तक उबर नही पाएं है.लोगो मे सरकार के प्रति नाराजगी है और वो इसे बदलना चाहते हैं जाहिर है उत्तर प्रदेश में यह काम गठबंधन कर रहा है इसलिए गठबंधन दौड़ में सबसे आगे है”.

 सवाल जनता के पास भी है जैसे छिपियान हाफिज इस्लाम पूछते है “पांच साल बाद भी एक ऐसा सांसद जो जनता के बीच ही नही आया.उससे उसके काम की रिपोर्ट क्यों नही मांगी जा रही है.! यहां एक पुल 6 महीने से  टूटा पडा है,उसके जाल के नीचे दबकर दो मजदूर मर गए.मगर उसकी कोई सुध नही है.एक बार फिर धर्म जाति पर चुनाव आकर सिमट गया है आखिर क्यों मुद्दों पर बात नही हो रही हैं!.सांसद से उसके काम पूछे जाने चाहिए.

चुनाव पर पैनी नजर रखने वाले स्थानीय व्यवसायी मोहसीन राणा कहते है गठबंधन और कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद की आपसी खींचतान से एक बार फिर वही नकारा सांसद मिल सकता है.

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