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रवायतों की सफे तोड़कर दौड़ रही है लखनऊ की बुर्का राइडर आयशा अमीन

By आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

लखनऊ- नवाबी शहर लखनऊ की एक लड़की रवायतों की सफे तोड़कर आगे बढ़ गई है।न केवल वो आगे बढ़ी है बल्कि यूं कहिए कि दौड़ गई है।बात तो यह है कि मोहतरमा के दौड़ने की गति भी 150 किमी प्रति घण्टा है। लखनऊ के राजा जी पुरम की रहने वाली 22 साल की लड़की आयशा अमीन सूबे की राजधानी की सड़कों पर दनादन बुलेट मोटरबाइक दौड़ाते हुई दिख जाती है।

बेहतरीन नियंत्रण और स्पीड के सामंजस्य वाली आएशा अमीन इसलिए भी आश्चर्यचकित करती है क्योंकि वो मुस्लिम ख़्वातीन के पर्दे के लिए पारंपरिक पोशाक बुर्का पहनकर स्पोर्ट्स बाइक दौड़ाती है।लखनऊ की सड़कों पर बमुश्किल लड़कियों को बाइक चलाते हुए देखा जा सकता है और बुर्का पहनकर स्पोर्ट्स बाइक चलाने वाली तो आयशा सम्भवतः पहली लड़की है।दिल्ली की सड़कों पर  जरूर एक दूसरी लड़की रोशनी मिस्बाह ‘हिजाब वाली राइडर’के तौर पर मशहूर है।रोशनी मिस्बाह ईस्ट दिल्ली में रहती है और पंजाबी मुस्लिम परिवार से आती है।23 साल की रोशनी मिस्बाह को दिल्ली में काफी मक़बूलियत हासिल है।वो 2016 से बाइक राइडिंग कर रही है।रोशनी को हिजाब राइडर कहा जाता है।अब लखनऊ से बुर्का राइडर के तौर पर आयशा अमीन भी चर्चा में है।

बुर्का राइडर आयशा कहती है”बुर्के वाली राइडर मैं हूँ और मुझे यह भी साबित करना था कि बुर्का कोई पाबंदी नही है मैं चाहती तो बिना बुर्के के भी बाइक चलाती मुझपर कोई पाबंदी नहीं है मगर बुर्का मेरी खुद की चॉइस है”।

आयशा के मुताबिक यह लड़ाई है ख़्वातीनो  को मर्दो से कमतर समझने वालों को जवाब देने की है कि वो कहती है” मुझे मिथ तोड़ने है,जैसे लड़की भारी मोटरबाइक नही चला सकती और बुर्का मुख्यधारा में आने से रोकता है, मैंने दोनों तोड़ दिए हैं, मैं बुर्का भी पहनती हूँ और मर्दो के कथित आधिपत्य वाली बुलेट और स्पोर्टस बाइक भी दौड़ाती हूँ,

कुछ मुझे हैरत की नजर से भी देखते हैं मगर सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब लड़कियां मुझे देखकर चीयर करती है वो मुझे देखकर हाथ हिलाती है,खुश होती है फ्लाइंग किस उछालती है और शोर मचाती है,मैं आधुनिक हूँ और बुर्का मेरी ताक़त है।

लखनऊ के राजाजी पुरम की आयशा बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार करने वाले मोहम्मद अमीन और आसिया की पांच संतानों में से एक है।आसिया बताती है कि उनकी बेटी आयशा की पैदाइश जेद्दा में हुई जहां उनके अब्बू बिल्डिंग मैटीरियल का काम करते थे।आएशा बचपन मे खिलौनों में बाइक लेती थी वहां हमारे एक पड़ोसी के पास हार्ले डेविडसन जैसी बड़ी बड़ी बाइक थी।आयशा 10 साल तक वहीं रही है वो उनकी उस बाइक पर जाकर बैठ जाती थी। “उसमें शुरू से से ही मोटरबाइक को लेकर लगाव रहा है,” आसिया कहती हैं।

आयशा के अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि वो खुद को लडको से कम नही समझती है जो काम लड़के कर सकते है वो लड़कियां भी कर सकती है।वो कहती है, “अब स्कूटी के विज्ञापन पर लिखा हुआ होता है “फ़ॉर गर्ल्स” बुलेट के विज्ञापन पर तो नही लिखा है ‘फ़ॉर बॉयज’।हम हर वो काम कर सकती है जिसे करने में बॉयज अपना एकाधिकार समझते हो।इससे हमारे आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है।

इसी साल आयशा ने लखनऊ से वाराणसी तक बाइक रैली में शिरकत की जिसमे वो अकेली बुर्का राइडर थी और कौतूहल का विषय बनी।सूबे की महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने इसके लिए उसकी खासी प्रशंसा की।

लखनऊ के बाबू बनारसी दास विश्वविधालय से पत्रकारिता में स्नातक आयशा अब बुर्के में ही भारत दर्शन पर निकल रही है वो कहती है “बुर्का अक्सर आलोचनाओं के केंद्र में रहता है और इस्लाम के आलोचक इसे पिछड़ेपन की एक वजह बताते हैं जबकि ऐसा नही है बुर्का हमारी सेफ्टी के लिए है और यह हमें जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने से नही रोकता”।

आयशा ने पहली बार 2010 में अपने भाई की स्पलेंडर बाइक चलाई थी और उसके बाद से वो अलग अलग 30 बाइक चला चुकी है।इस समय आयशा के पास रॉयल एनफील्ड क्लासिक और केटीएम बाइक है।

लखनऊ की कशिश अली कहती हैं कि “मैं उनका नाम नही जानती मगर अक्सर गोमती के आसपास वो बाइक चलाती हुई दिखती है उन्हें बुर्के में देखकर और भी अच्छा लगा,उनसे काफी हिम्मत मिली,बात दरअसल सिर्फ बाइक की नही है बल्कि इससे पता चलता है कि लड़कियों को उन तमाम फील्ड में आगे आना चाहिए जिनमे उनके लिए पाबंदियां है और वो जायज़ है।”