By मीना कोटवाल, TwoCircles.net

Photos by Chandan Saroj


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महाराष्ट्र का केन्द्रीय विश्वविद्यालय वर्धा में 9 अक्टूबर को एक कार्यक्रम किया गया था, जिसमें हिस्सा लेने वाले छह छात्रों को निष्कासित कर दिया गया था.

निष्कासित किए गए छात्रों के नाम हैं चंदन सरोज, नीरज कुमार, राजेश सारथी, रजनीश अंबेडकर, पंकज वेला, वैभव पिंपलकर. 9 अक्टूबर को कार्यक्रम उन 49 हस्तियों के समर्थन में रखा गया था जिन्होंने लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को लेकर पीएम मोदी को खुला पत्र लिखा था. 180 हस्तियों में से 49 नामी लोगों के खिलाफ़ 3 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर में केस दर्ज़ किया गया था. इसमें रामचंद्र गुहा, मणिरत्नम और अपर्णा सेन समेत कई हस्तियों के नाम शामिल हैं. स्थानीय वकील सुधीर कुमार ओझा की ओर से 2 महीने पहले जुलाई में दायर याचिका पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के आदेश के बाद मामला दर्ज किया गया था. उन सब देशद्रोह का केस दर्ज़ किया गया था. हालांकि वो केस बेबुनियाद निकलने के बाद केस को ख़ारिज कर दिया गया. जिन छात्रों को निष्कासित किया गया था उन सभी छात्रों को 13 अक्टूबर के दिन निष्कासन वापस ले लिया गया है.

विश्वविद्यालय के पीआरओ बीएस मिरगे बताते हैं कि सभी छात्रों का निष्कासन शांतिपूर्ण वापस ले लिया गया है. उनके द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज़ में बताया गया है कि विश्‍वविद्यालय के समस्‍त अधिष्‍ठाताओं, कुलानुशासक, छात्रावास अधीक्षकों व अन्‍य संबंधितों के साथ एक बैठक की गई. जिसके निष्कर्ष में दिनांक 09.10.2019 को निष्कासित विद्यार्थियों का निष्‍कासन छात्रों के भविष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए और अनुशासन तथा पठन-पाठन के वातावरण को बनाए रखने के लिए वापस लिया गया. कुलपति ने कहा कि शैक्षणिक संस्‍थान में अपने विद्यार्थियों को यदि हम उनकी गलतियों के लिए दंडित करते हैं तो उनमें सुधार लाने और अध्‍ययन के अधिकतम अवसर उपलब्‍ध कराने का यत्‍न भी करते हैं.

इन छात्रों में चंदन सरोज वर्धा विश्वविद्यालय से एमफिल कर रहे हैं वे बताते हैं कि सात तारीख़ को ही हमने वाइस चांसलर को एक पत्र लिख कर नौ तारीख़ को होने वाले कार्यक्रम से अवगत करवाया था. लेकिन वहां से उनका कोई जवाब नहीं आया था. हम चाहते थे कि वो हमें प्रोगर्म करने की अनुमति दें. वे कहते हैं, ‘जब दो दिन तक उनका कोई जवाब नहीं आया तो हम एक बार फिर उनके ऑफिस गए. लेकिन वहां हमें बड़ा अजीब सा कारण बताया गया कि हमने स्वीकृत्ति वाल पत्र में दिनांक का ज़िक्र नहीं किया था, जबकि पत्र में साफ-साफ तारीख़ लिखी हुई थी. उन्होंने तब भी कोई वाज़िब जवाब ना मिलने पर हमने उनकी मौन स्वीकृति मान ली. तय समय और स्थान के अनुसार मैं और अन्य विद्यार्थी सभी लोग ‘पोस्ट टू पीएम’ प्रोग्राम में शामिल हुए. हमने देश में घट रही घटनाओं और समस्याओं पर चर्चा की और देश में घट रही घटनाओं दलितों-मुस्लिमों के मॉब लिंचिंग, बलात्कार व यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं, कश्मीर को कैद करने, एनआरसी, रेलवे व बीएसएनएल के निजीकरण जैसे देश बेचने के जारी अभियान तथा लुटेरे कॉर्पोरेट के हित में बैंकों को बर्बाद करने आदि समेत संविधान व लोकतंत्र पर जारी हो रहे हमले को लेकर पीएम मोदी को सामूहिक रूप से पत्र लिखा था. हम कुछ साथियों ने 50 पोस्टकार्ड तैयार किए थे. वे तो इस्तेमाल हुए ही साथ ही कई और भी लोगों ने खुद से पत्र लिखे.’

इस मामले के बाद देर रात विश्वविद्यालय प्रशासन से छह लोगों को एक मेल आता है जिसमें उन्हें उनके निष्कासन की ख़बर मिलती है. जिन छात्रों को निष्कासित किया जाता है. उनमें तीन छात्र दलित और तीन ओबीसी हैं.

ये कार्यक्रम गांधी हिल पर रखा गया था, जो एक ओपन एरिया है और वहां किसी भी छात्र को जाने की अनुमति है. चंदन सरोज साथ ही ये भी बताते हैं कि उसी दिन कुछ अन्य छात्रों ने एक और प्रोग्राम रखा हुआ था, जो माननीय कांशीराम की पुण्यतिथि पर रखा गया था. बाद में जब उन छात्रों को पता चला कि पहले हमारा भी प्रोग्राम है तो उन्होंने और हमने दोनों प्रोग्राम मिलकर किया.

निष्कासित छात्रों में से एक छात्र ऐसे भी थे जो यहां विद्यार्थी रह चुके हैं लेकिन अभी वे वर्धा के विद्यार्थी नहीं हैं.. राजेश सारथी ने वर्धा विश्वविद्यालय से एमबीए किया हुआ है. वे बताते हैं, ‘मैं तो अपना एमबीए पूरा कर चुका हूं. वहां से माइग्रेशन लेटर लेने गया था. लेकिन मुझए भी निष्कासित कर दिया गया.’ साथ ही वे ये भी कहते हैं कि मैं सात तारीख़ को ही वर्धा पहुंचा था. मैं दिल्ली में रहता हूं और वहां सात तारीख़ से अपने दोस्तों के पास रह रहा था जो पास ही में पीजी में रहते थे. नौ तारीख़ को जब में कैम्पस में जाता हूं और ‘पोस्ट टू पीएम’ प्रोग्राम देखता हूं तो मैंने भी हिस्सा लिया. लेकिन निष्कासन के बाद से मुझे कैम्पस में ही जाने नहीं दिया जा रहा. वे कहते हैं, ‘जब से निष्कासन मिला था तब से कैम्पस के अंदर जा ही नहीं सकते हैं, ना किसी प्रशासन या टीचर से मिल सकते हैं. हमें तो समझ ही नहीं आ रहा आख़िर हमने ऐसा क्या कर दिया.’

चंदन और राजेश एक और वाकया से रू-ब रू करवाते हैं कि हमें जो निष्कासन पत्र मिला है. उसमें हमारा असली नाम तक नहीं है. यानि जो नाम उसमें लिए गए हैं वो फेसबुक पर मौजूद नाम के आधार पर निष्कासन किया गया है. उन्होंने हमारे असली नाम जानने के जहमत भी नहीं उठाई. वहां और भी कई लोग मौजूद थे लेकिन वहां सिर्फ़ हम दलित और ओबीसी ही नज़र आए.

हालांकि अब विश्वविद्यालय ने निष्कासन वापस ले लिया है और इस पर सभी निष्कासित छात्र काफ़ी खुश हैं. उनका मानना है कि हमें पता था कि न्याय में देर हो सकती है लेकिन न्याय होता जरूर है.

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