एनआरसी की अंतिम लिस्ट से बाहर कर दिए गए 19 लाख 6 हज़ार 657 लोग खुद को भारतीय साबित करने की क़वायद में जहां अपनी नागरिकता को बचाने की जंग लड़ रहे हैं, वहीं ज़्यादातर लोगों में इस बात की भी ख़ुशी है कि चलो ‘घुसपैठिए’ और ‘बांग्लादेशी’ होने के लगे ठप्पे से तो बाहर निकलें. देश की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता साबित के लिए 120 दिन का वक़्त दिया है. लेकिन ये पूरी प्रक्रिया कितना मुश्किलों से भरा है. यहां के लोग एनआरसी, फॉरनर्स ट्रिब्यूनल और सिटीजनशिप बिल के बारे में क्या सोचते हैं, इसी को लेकर TwoCircles.net एक सीरिज़ की शुरूआत कर रही है. इसमें 5 कहानियों के ज़रिए इससे जुड़ी तमाम बातों को समझ सकेंगे. पेश इस सीरिज़ के तहत अफ़रोज़ आलम साहिल की पहली स्टोरी…
गुवाहटी: एनआरसी की अंतिम लिस्ट ने असम के सारे समीकरण बदल दिए हैं. जो लोग इस लिस्ट से अपार ख़ुश होने की उम्मीद पाले हुए थे, वो दुखी नज़र आ रहे हैं और जिनके दुखी होने की भविष्यवाणियां की जा रही थी, वो ख़ुशियां मना रहे हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यहां के मुसलमानों के लिए एनआरसी की ये लिस्ट अपने ऊपर लगाए गए ‘घुसपैठिए’ और ‘बांग्लादेशी’ के दाग़ से छुटकारा पाने का पहला और आख़िरी आधिकारिक तरीक़ा नज़र आ रहा है.
एनआरसी के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर लोगों के लिए काम करने वाले इंजीनियर अब्दुल बातीन कहते हैं कि एनआरसी असम के लिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि ज़्यादातर लोग यहां के बंगाली बोलने वाले हिन्दू-मुसलमानों को एक अलग नज़रिए से देखते थे. हमेशा उन पर विदेशी होने का शक किया जाता था. इससे जो असम में असल नागरिक थे, उनको बहुत परेशानी होती थी. अब वो उस ‘ठप्पे’ से बाहर निकल गए.
वो आगे कहते हैं, आगे ज़रूरत है कि फॉरनर्स ट्रिब्यूनल की जो कमियां हैं, उसको दूर किया जाए ताकि इस देश के असल ग़रीब नागरिक परेशान न हों. इसे राजनीतिक दख़ल से दूर रखना चाहिए. न्यायिक प्रक्रिया को थोड़ा आसान बनाना होगा क्योंकि हर आदमी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता.
एडवोकेट हाफ़िज़ रशीद अहमद चौधरी का कहना है कि मुसलमानों के बांग्लादेशी होने का प्रोपगेंडा लंबे समय से चला आ रहा है. पूर्व गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने 1997 में 40 लाख विदेशी नागरिक होने की बात कही. 2004 में एक अन्य पूर्व सांसद और मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने यही बातें दोहराई और कहा कि 50 लाख बांग्लादेशी असम में हैं. राज्यपाल एस.के. सिन्हा ने इसी आंकड़े को 75 लाख बता डाला. आगे फिर ये कहा गया कि हर दिन 6 हज़ार बांग्लादेशी भारत आ रहे हैं. अब सोचने की बात ये है कि एक गवर्नर के पद पर बैठा आदमी ऐसा सोच भी कैसे सकता है. क्या उन्हें बांग्लादेश की आबादी का पता नहीं है? अगर 6 हज़ार बांग्लादेशी हर दिन भारत आ रहे हैं तो अब तक बांग्लादेश ख़त्म हो चुका होता.
वो आगे कहते हैं कि जो लोग इस एनआरसी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, वो राजनीति से प्रेरित लोग हैं. उन्हें ये अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि एनआरसी की प्रक्रिया साईंटिफिक तरीक़े से सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में ख़त्म हो चुकी है. हमें इसे हर हाल में स्वीकार करना चाहिए.
असम में जैसे ही आप गुवाहटी को पार करते हैं, यहां बसने वाले मुसलमान जिनके नाम एनआरसी में आ गए हैं, वो काफ़ी सकारात्मक जवाब देते हैं. उनका ये जवाब कईयों को हैरान और कईयों को परेशान कर देगा, लेकिन ये सच है.
दरांग ज़िले के खारूपेटिया में रहने वाली इमराना बेगम बताती हैं कि “भले ही एनआरसी लिस्ट में मेरा नाम नहीं आया है, लेकिन मैं फिर भी ख़ुश हूं. हम मुसलमान जहां भी जाते हैं तो हमें ये सुनना पड़ता था कि हम बांग्लादेशी हैं, घुसपैठिए हैं. लेकिन अब कोई ऐसा नहीं कह पाएगा”.
वो कहती हैं, जो विदेशी हैं, घुसपैठिए हैं, उन्हें बिल्कुल देश से निकाल देना चाहिए लेकिन सरकार को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं इसके चक्कर में अपने देश का ही नागरिक परेशान न हो. क़ानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. वो ये भी कहती हैं कि जिन 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए हैं, उनमें भी ज़्यादातर लोग भारतीय ही हैं. अब आप ही सोचिए जब मेरे मां-बाप, भाई-बहन सब भारतीय हैं तो मैं बांग्लादेशी कैसे हो गई?
सामाजिक कार्यकर्ता मोतिउर रहमान कहते हैं कि इस एनआरसी से हमलोग ख़ुश हैं. इस पर सवाल इसलिए भी नहीं उठाया जाना चाहिए क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उसकी देख-रेख में हुआ है. लेकिन जो 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गए हैं, उनके लिए एक विकल्प है. वो फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं. लेकिन हमारी मांग है कि ये प्रक्रिया भी सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में ही हो.
हर चुनाव में बीजेपी व अन्य राजनीतिक पार्टियों की ओर से ये दुष्प्रचार चला करता था कि मुसलमान घुसपैठिए हैं. यानी यहां के मुसलमान हर चुनाव में इस कलंक को झेलते आ रहे थे, लेकिन एनआरसी ने उनके ऊपर लगे इस कलंक को धो डाला है. ये अलग बात है कि आज असम में एनआरसी के ऊपर वही लोग सवाल खड़े कर रहे हैं, जो अब तक इसकी मांग करते आ रहे थे.
एक ख़बर के मुताबिक़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने भी एनआरसी के फ़ाईनल लिस्ट पर सवाल खड़े किए हैं और इनमें गड़बड़ियां बताई हैं. साथ ही फिर से घुसपैठियों को बाहर करने की अपनी मांग दोहराई है. लेकिन केन्द्र सरकार का ऐसा कोई इरादा फिलहाल नहीं दिख रहा है. वो बांग्लादेश की सरकार को ये पहले ही कह चुकी है कि ये हमारे देश का आंतरिक मामला है. इस परिस्थिति में ऐसे तमाम लोगों को देश के ही डिटेंशन सेन्टर में रखे जाने की योजना है.
बता दें कि असम में 31 अगस्त को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी हुई है. 19 लाख लोग ऐसे पाए गए, जिनके नाम इस लिस्ट में नहीं हैं. इन 19 लाख लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौक़ा दिया जाएगा. ऐसे लोग 120 दिन की समय सीमा के अंदर अपनी नागरिकता साबित कर सकेंगे. नागरिकता साबित करने के लिए इन लोगों को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल का दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा. इस वक़्त असम में 84 फॉरनर्स ट्रिब्यूनल हैं, जबकि ऐसे 200 ट्रिब्यूनल और शुरू करने की तैयारी चल रही है.