नई दिल्ली। COVID-19 महामारी के नियंत्रित होने तक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और संबंधित सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील अमित द्विवेदी ने यह याचिका दाख़िल की है।
याचिका में कहा गया है कि नोवेल कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में स्वास्थ्य सुविधाओं पर बहुत अधिक निर्भरता की आवश्यकता होगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र अकेले इस आवश्यकता को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से उपकरणों से लैस नहीं है। इसलिए द्विवेदी का तर्क है कि निजी क्षेत्र को भी सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, सभी 36 संस्थानों, सभी कंपनियों और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से संबंधित सभी संस्थाओं में शामिल होना चाहिए।
अपनी बात को पुख़्ता तरीक़े से रखने के लिए याचिकाकर्ता ने भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की ख़स्ता हालत का हवाला दिया है। अमित द्विवेदी ने इसके लिए स्वास्थ्य पर होने वाले कम ख़र्च को मुख्य रूप से ज़िम्मेदार बताया है।
याचिकाकर्ता ने कहा है, ‘2020 के बजट में भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अपने कुल अनुमानित बजट खर्च का केवल 1.6% आवंटित करने का फैसला किया। वर्षों से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कम रहा है। इसके परिणामस्वरूप भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा COVID-19 जैसी महामारियों के समय ज़्यादातर देशों की तुलना में घटिया और अपर्याप्त है। दुर्भाग्य से हम इस मोर्चे में ज्यादा विकास नहीं देख पाए।’
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने कहा कि भारत में निजी स्वास्थ्य सुविधाएं विश्व स्तर की हैं जिनका प्रमाण हमारे चिकित्सा पर्यटन की निरंतर वृद्धि के माध्यम से मिलता है। उन्होंने कहा कि ये सुविधाएं छोटे शहरों तक भी पहुंच गई हैं और केवल महानगरों तक सीमित नहीं हैं।
याचिका में कहा गया है, ‘यह तथ्यात्मक रूप से ग़लत और भ्रामक है कि भारत में सुसज्जित अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाएं नहीं हैं। हालाँकि, यह चिंता का विषय है कि निजी स्वास्थ्य सुविधाएं पाना अधिकतर भारतीयों के लिए मुश्किल है क्योंकि इसकी स्वास्थ्य सेवाएं बहुय महंगी हैं।’
याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र सरकार पर ही भारतीय जनता की भलाई की ज़िम्मेदारी है। कोरोना वायरस से दुनिया भर में फैल रही महामारी से देश के सामने छाए संकट में भारतीयों की रक्षा करना भारत सरकार का ही का कर्तव्य है।
केंद्र सरकार के साथ-साथ, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भी अपनी आबादी के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार हैं और यह इन सरकारों का सामूहिक दायित्व है कि वे महामारी के दुष्प्रभावों को कम करें।
इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 को लागू करते हुए, यह तर्क दिया गया है कि उपचार पाने का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से है।
याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 38 को भी संदर्भित करता है, जिससे राज्य को स्थिति, सुविधाओं और अवसरों से संबंधित असमानताओं को समाप्त करने की आवश्यकता होती है।
इस बात पर ज़ोर दिया है, ‘कोई अन्य बात किसी व्यक्ति की स्थिति और उसकी गरिमा को इतना कमजोर नहीं करती, जितनी कि यह कि यदि उसे स्वयं की / अपने परिवार में से किसी सदस्य की जांच या इलाज करवाने की आवश्यकता पड़े और वह वित्तीय रूप से असमर्थ हो।’
वर्तमान में भारत द्वारा उठाए गए उपायों के संदर्भ में, देशव्यापी लॉकडाउन और सामाजिक दूरी की तरह याचिकाकर्ता का दावा है कि हम अन्य देशों के अनुभव से सीख रहे हैं जो महामारी के सबसे बुरे चरण से निपटते रहे हैं।
इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए, यह प्रस्तुत किया जाता है कि कई देशों ने अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का राष्ट्रीयकरण करने का विकल्प चुना है। इस प्रकार, भारतीय संदर्भ में, यह आग्रह किया जाता है कि “यदि एक बार स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और संबंधित संस्थानों का राष्ट्रीयकरण हो जाता है, तो COVID-19 के ख़िलाफ़ संघर्ष प्रभावी हो जाएगा।
हेल्थकेयर क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के विकल्प के रूप में, याचिकाकर्ता ने COVID-19 बीमारी के संबंध में परीक्षण, बाद में होने वाले सभी टेस्ट, प्रक्रिया और इलाज का संचालन करने के लिए सभी स्वास्थ्य देखभाल संबंधित संस्थाओं को निर्देश देने की प्रार्थना की है, जो भारत के सभी नागरिकों के लिए COVID 19 महामारी के नियंत्रित होने तक नि: शुल्क हों।
सुप्रीम कोर्ट में दायर इसी याचिका पर संज्ञान लेकर सरकार को आदेश दिया कि निजी हेल्थ सर्विस को फ्री टेस्ट करने का आदेश निर्गत हो। उस याचिका को देखे सकते हैं।