आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles.net
सोमवार को अक्षय शर्मा (30) का फोन आया था। मुजफ्फरनगर से हैंं। यहां के एक कॉलेज का पत्रकारिता का टॉपर छात्र रह चुका है। माखनलाल विश्वविद्यालय से आगे की पढ़ाई की है। अच्छा लड़का है। बतौर ट्रेनी साथ काम किया है। अक्षय के बातचीत में भविष्य को लेकर गहरी चिंताएं थी। उसकी पूरी बात सुन नही पाया। अक्षय शर्मा के दिल्ली और नोयडा के पिछले 4 साल पत्रकारिता के लिए काफी हद तक सबक सिखाने वाले रहे हैं। इस दौरान उसने कई समाचार चैनलों के अलावा आरएसएस के एक दफ़्तर के पीआरओ और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मीडिया टीम के हिस्से के तौर काम किया है।
अक्षय मुजफ्फरनगर के निम्न मध्यम वर्ग से आता है और उसने अपनी पढ़ाई भी खुद काम करते हुए अपने कमाए हुए पैसे से की है। अक्षय अक्सर बात करता रहता है। ख़ासकर जब वो कोई नौकरी पा लेता है, अथवा पुरानी छोड़ देता है। फिलहाल वो स्वराज एक्सप्रेस में काम करता है जिसे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता राय नियंत्रित करती है। अपने ख़ास स्वभाव के चलते अक्षय शर्मा हर तरह की विचारधारा में एडजेस्ट हो जाता है। वो बता रहा था इस बार फिर नौकरी जाने वाली है। चैनल बंद करने पर विचार हो रहा है। कोरोना के चलते भारी आर्थिक संकट के बीच अब सिर्फ डिजिटल संस्करण जारी रखा जा सकता है। मध्यप्रदेश में सरकार बदल जाना भी एक कारण हो सकता है।
तब अक्षय से कहा कि तब तो उसे घर आना पड़ेगा क्योंकि उसे नहीं लगता कि उसके बहुत अधिक फ्लेक्सिबल होने के बावूजद भी उसे कोई मीडिया समूह इस समय उसे नौकरी दे पाएगा। अक्षय का कहना था कि देने की बात छोड़िये भैया जो काम कर रहे हैं वो अपनी ही बचा लें। बेहद मेधावी छात्र रहा अक्षय शर्मा तनावग्रस्त लग रहा था जाहिर है यह चिंता भविष्य को लेकर थी।कहीं से उसे लग रहा था कि पत्रकारिता में कैरियर बनाने की उसकी सोच ग़लत तो नही हो गई।
श्रीराम कॉलेज मुजफ्फरनगर में उसका विद्यालय के गौरव के रूप में फ़ोटो लगा है और उसके तमाम अध्यापक उसे आने वाले कल का भविष्य बताकर दूसरे छात्रों का उत्साहवर्धन किया करते थे। निजी तौर पर अक्षय की इस बात ने तक़लीफ़ पहुंचाई। ऐसा लगा कि उसके सपने का क़त्ल हुआ है। अब पत्रकारिता एक बड़ा स्वप्न तो दौर परिवार का खर्च चलाने तक में भी सफल नही हो पा रही है।
अक्षय ने बताया, ‘भैया इस पत्रकारिता के लिए मैंने सपने नही संजोय थे। एजेंडा सेट है सबका। एक पक्ष का दूसरा विपक्ष का। मोदी सरकार के पक्ष वाले अभी सर्वाइव कर पाएंगे। दूसरे के पास संसाधन नष्ट हो रहे हैं अब तो ट्रोलर बन सकते हैं। पत्रकार बनने पर तो नौकरी मिलना अब मुश्किल है।’
जब अक्षय यह बता रहा था ठीक उसके आसपास देश भर के मीडिया संस्थानों में छंटनी की जा रही थी। यह भी जब लोकडाऊन में मीडिया को अनिवार्य सेवा माना गया है। जैसे पिछले तीन दिनों में मीडिया सेक्टर में नौकरियों में भारी भूचाल आया है। इंडियन एक्सप्रेस और बिजनेस स्टेंडर्ड ने अपने स्टाफ की सैलरी घटा दी। न्यूज नेशन ने अपने अंग्रेजी डिजिटल सेवा में काम करने वाले 16 लोगो को नौकरी से निकाल दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने संडे मैगज़ीन बंद कर दी। डिजिटल प्लेटफार्म क्विंट ने अपने आधे कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दिया। ठीक इसी समय सरकारी विज्ञापन ना मिलने की आशंका के बीच उत्तर प्रदेश में सैकड़ों अखबार बंद हो गए और सिर्फ डिजिटल संस्करण में आ गए। हजारों मीडियाकर्मी अचानक से वित्तीय संकट में आ गए। इनमे से किसी को नोटिस नहींं दिया गया। मजीठिया कमीशन वाली बात कहीं नही दिखाई दी।मीडियाकर्मियों को कुछ संस्थानों ने एक माह का वेतन जरूर दिया। विभिन्न मीडिया संस्थानों में इसकी वजह कोरोना के बीच पनपे आर्थिक संकट को बताया।
यह सब देखकर देश के पूर्व सूचना मंत्री रहे मनीष तिवारी ने इस सबके बाद वर्तमान सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को एक चिट्ठी लिखी जिसमे उन्होंने अनुरोध किया कि मंत्रालय इन सभी पत्रकारों को नौकरी से न निकाले। मनीष तिवारी ने संकेत दिया यह एक ट्रेंड जैसा है जिसमे इस दौरान इन्हें नौकरी से निकालना अथवा पैसे कम करना इनकी हिम्मत को तोड़ेगा और महामारी से लड़ने की हमारी लड़ाई कमज़ोर पड़ जाएगी। 14 अप्रैल को देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी को भी नौकरी से न निकालने की अपील की।
उत्तर प्रदेश के बड़े मीडिया व्यव्सायी रियाज़ राणा कहते हैं, ‘आर्थिक संकट गहरा रहा है और अब अख़बार बन्द करने के अलावा कोई रास्ता नही बचा है। बाज़ार होता है तो विज्ञापन आता है। अब बाजार नही है। तो धंधा भी नही है। कोई भी मीडिया संस्थान अब नुकसान उठाकर तो चला सकता है मगर जब उसके पास ही कुछ नही बचेगा तो वो क्या करेगा! प्रधानमंत्री की बात का स्वागत है। मीडियाकर्मी कोरोना योद्धा हैंं। सरकार मीडिया संस्थानों को इस समय सुविधाएं दें, उनकी सहायता करे। कोई भी मीडिया संस्थान अपने किसी आदमी को नौकरी नही निकालना चाहता। इस मुश्किल वक़्त में मीडिया की जरूरत है।’
समाजवादी पार्टी के सचिव मनीष जगन इस संकट पर अपनी अलग राय रखते है वो कहते हैं”देखिए मैंने आज एक फ़ेसबुक पोस्ट की है,इसमे एक कोलाज बना हुआ है।आप इसमे देख सकते हैं कि 9 अलग अलग पत्रकारों ने एक जैसा ही ट्वीट किया है इसमें लिखा है कि 1 मई को पब्लिक हॉलिडे है,2 मई को शनिवार और 3 मई को रविवार।इन पत्रकारों का कहना है कि यह मोदी जी का मास्टरमाइंड है कि उन्होंने लोकडाउन के तीन दिन ऐसे बढ़ाए है जिस दिन कोई काम नही होता।यह समान ट्वीट है जिन पत्रकारों ने किया है वो अब बड़े नाम है। ऐसा लगता है कि इन सभी को एक व्हाट्सएप मेसेज मिला और इन्होंने उसे पोस्ट कर दिया।अब इतने आज्ञाकारी लोगो की नौकरी पर खतरा कैसे हो सकता है! डर इस बात है मोदी सरकार की खामियां लिखने वाले और जनता की बात कहने वाले मीडिया संस्थानों पर ताले न लटक जाएं,फिर जो बेचेगा वो अपनी वफादारी सिद्ध करने के लिए ‘खुला खेल फर्रुखाबादी(मनमर्ज़ी ) खेलेगा,ज़ाहिर बची खुची पत्रकारिता भी मर जाएगी।”