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रमज़ान को लेकर दारूल उलूम देवबन्द की हिदायत, बताया लॉकडाउन में क्या करें क्या न करें मुसलमान

तस्लीम क़ुरैशी
देवबन्द।अरब देशों के साथ भारत के केरल में आज जुमे (शुक्रवार) के दिन रमज़ान का पवित्र महीना शुरु हो रहा है। कल यानि शनिवार को देश के दूसरे हिस्सों में भी रमज़ान सुरु हो जाएगा। देश में पूरी तरह लॉकडाउन है। इसके हाल फिलहाल में खुलने के भी आसार नहीं हैं। ऐसे में इस्लामी तालीम के दुनिया भर में मशहूर दारुल उलूम देंवबंद ने बाक़ायदा मुसलमानों के लिए हिदायत जारी की है। दो पेज का यह हिदायतनामा हम यहां अपने पाठकों के लिए छाप रहे हैं।
दारूल उलूम देवबन्द ने रमज़ान के पवित्र महीने को ध्यान में रखते हुए 16 बिंदुओं पर देश के मुसलमानों को अपना मशवरा दिया। कोविड-19 कोरोना वायरस ने पूरी दुनियाँ को जहाँ की तहाँ जाम होने को विवश कर दिया है इस महामारी की रोकथाम के लिए सबसे सरल इलाज लॉकडाउन है। सोशल मेल मिलाप से बचना इसका सबसे बेहतर बचाव है।  इसी बीच पवित्र महीना रमज़ान भी है। हमें इस पवित्र महीने को लॉकडाउन के तरीक़ों को मानते हुए रमज़ान के रोज़े और इबादत करनी है हमें किसी को यह मौक़ा नहीं देना है कि कोई हम पर उँगली उठाए क्योंकि गोदी मीडिया देश में नफ़रत फैलाने का काम कर रहा है और हमें नफ़रत फैलाने वालों से भी सतर्क रहना होगा।
पहले तो दारूल उलूम देवबन्द ने मुसलमानों से अपील की है कि वह 24 अप्रैल को चाँद देखने की कोशिश करें क्योंकि शब-ए-बरात के चाँद दिखाई देने पर आम सहमति नहीं बन पायी थी। इस लिए रमज़ान के चाँद की तलाश 23 अप्रैल को भी करें क्योंकि अगर शब-ए-बरात के चाँद को लेकर आम राय नहीं वाले दुरुस्त हुए तो फिर चाँद एक दिन पहलें दिखाई दे सकता है। रमज़ान के महीने के दौरान सभी मुसलमान रोज़ों का ख़ास तरीक़े से अमल करें और अगर किसी मुसलमान को बीमारी की वजह से रोज़ा न रखना पड़े तो वह किसी मुफ्ती से मालूम कर उस पर अमल करें।
मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने को लेकर पहले से दी गई सलाहों पर ही अमल जारी रहेगा। जैसे पहले कहा जा चुका है कि मस्जिदों में नमाज़ फ़िलहाल अदा नहीं की जाएगी। यही नीति रमज़ान में भी जारी रहेगी। पूरे रमज़ान अपने-अपने घरों में रह कर ही नमाजे़ अदा करनी है और रोज़े रखने है। इमाम मुअज़्ज़िन के अलावा चार से पाँच लोगों को तय कर लिया जाए। उनके अलावा अन्य कोई मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की ज़िद न करे। यही हमारे और हमारे परिवार की बेहतरी के लिए ठीक है। इस पर अमल करना चाहिए। जिन लोगों के मस्जिद में नमाज़ अदा करने के नाम तय कर दिए गए हैं वो ही हज़रात मस्जिद में नमाज़-ए-तरावीह भी अदा करेंगे। इनके अलावा कोई नहीं।
बाक़ी मुसलमान अपने-अपने घरों में नमाज़ अदा कंरे और तरावीह का भी अपने घरों में ही अदा करने का इंतज़ाम करें। उसमें अपने परिवार के सदस्य के साथ मिलकर नमाज़ और तरावीह अदा करें। अगर जमात की शक्ल न बने तो अकेले भी अदा की जा सकती हैं। हाफ़िज़ न मिलने की सूरत में अलम त-र कैफ़ से तरावीह अदा की जा सकती हैं या जो सूरते याद हों। तरावीह को कम दिनों में यानी जल्दी ख़त्म न किया जाए एक पारा या सवा पारे के हिसाब से पढ़ा जाए ताकि पूरे महीने तरावीह की नमाज़ अदा होती रहे। मस्जिदों के क़रीब रहने वाले या किसी बिल्डिंग में हाफ़िज़ का इंतज़ाम कर माईक के ज़रिए घरों में नमाज़-ए-तरावीह अदा न की जाए।
जिन इलाक़ों में क़दीम या जदीद (नई पुरानी) जंतरी (कैलंडरों) से ख़त्में सहर हो दोनों को लेकर आम सहमती नहीं है और जंतरी के हिसाब से होता है तो वहाँ पुरानी जंतरी के हिसाब से किया जाए। फ़जर की अंजान दस मिनट पहले की जाए। मस्जिदों में इफ़्तार का प्रबंध भी न किया जाए और इस तरह का कोई आयोजन अपने निजी तौर पर भी न किया जाए। रमज़ान के महीने में जिस तरीक़े से हम लोगों को सहर और इफ़्तार की जानकारी देते थे उसी तरह दे कही सायरन बजने की व्यवस्था है तो कही घंटी बजाकर तथा माइक से लोगों को ख़त्म-ए-सहर और इफ़्तार की सूचना दी जाती हैं वह जारी रहेंगी।
दारूल उलूम देवबन्द ने लोगों से यह भी अपील की है कि ख़त्म-ए-सहर में बार-बार जानकारी देने से परहेज़ किया जाए। इससे लोगों की निजी ज़िंदगी में ख़लल पड़ता है जो ठीक नहीं है। इबादत करने वालों को और घरों में मरीज़ों को भी दिक़्क़त होती है। इस लिए ऐसा न किया जाए। बस एक बार ही ऐलान किया जाए। रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में अपने-अपने घरों में रहकर व्यक्तिगत ही इबादत कंरे। मस्जिदों या किसी के मकान में जमा न हो।
लॉक डाउन के चलते खाने पीने के सामान की ख़रीदारी प्रशासन की ओर से जारी सुझावों के आधार पर ही करें। अगर खाने पीने के सामान में कोई परेशानी हो तो सब्र से काम लें। वैसे प्रशासन यह कोशिश करेगा कि आम जनता को कोई दिक़्क़त न हो। लेकिन फिर भी अगर आए तो हमें सब्र से काम लेना है। इसे नहीं खोना हैं। रमज़ान के महीने में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करें मोबाइल पर टाईम बर्बाद न करें। इस महीने की फ़ज़ीलत को देखते हुए हमें अपने गुनाहों से माफ़ी माँगनी चाहिए और देश दुनियाँ में इस महामारी या अन्य परेशानियों से बचाने की दुआएँ करें। मुसलमान अपने बच्चों को घरों में रहने की नसीहत दें। बल्कि बाहर न जाने दे। दारूल उलूम देवबन्द ने दो पेज की हिदायत पत्र जारी किया है। जिसमें दारूल उलूम देवबन्द के कुलपति (मोहतमिम) हज़रत मौलाना मुफ्ती अबुल क़ासिम अन्सारी नौमानी के हस्ताक्षर हैं। बहुत ही विस्तार से लोगों को समझाया गया इसका बहुत ही सकारात्मक संदेश जाएगा।
दरअसल दारूल उलूम देवबन्द का यह हिदायतनामा उन सांप्रदायिक ताक़तों का मुहं बंद करने की कोशिश है जों देश मे नैरेटिव तायार करने में जुटी हैं कि लॉकडाउन तोड़ने में मुसलमान सबसे आगे हैं। ऐसे में दारुल उलूम देवबंद ने यह सराहनीय पहल की है। जब-जब देश-दुनियाँ में इस बात की ज़रूरत को महसूस किया गया कि मौक़े नी नज़ाकत देखते हुए मुसलमानों का रहनुमाई करने के लिए किसी ऐसे संस्थान या व्यक्ति को आगे आना चाहिए तो दारूल उलूम देवबन्द ने हमेशा अपना फ़र्ज़ को निभाया है। गोदी मीडिया लगातार दारूल उलूम देवबन्द और मुसलमान को टारगेट करता रहता है क्योंकि उसे साम्प्रदायिक संगठनों की तरफ़ से नफ़रत फैलाने का ठेका मिला हुआ है। इसी लिए वह ऐसा कर रहे हैं। दारुल उलूम देवबंद ने मुसलमानों के लिए हिदायतनाम पेस करके सांप्रदायित ताक़तों और गोदी मीडिया के एजेंडे की हवा निकालने की कोशिक की है।
देवबंद की तरह बाक़ी इस्लामी इदारों और मुसलमानों के सामाजिक संगठनों की तरफ से भी ऐसी ही हिदायतें जारी की गआ हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि देशभर के मुसलमान इन हिदायतों को गंभीरती से लेकर इन पर अमल भी करेंगे।