वसीम अकरम त्यागी
स्वीडन में इस्लाम विरोधी नेता रैसमस पालुदन को गिरफ्तार किए जाने के बाद उसके समर्थकों ने कुरान जला दिया। कुरान की बेहुरमती की ख़बर के बाद स्वीडन मे दंगे भड़क गए। रैसमस पालुदन को गुरुवार को माल्मों शहर में ‘नॉर्डिक देशों में इस्लामीकरण’ पर आयोजित एक सेमिनार में हिस्सा लेना था। नार्डिक भूगोल का शब्द है जिसके मुताबिक़ उत्तरी यूरोप के कुछ देशों के नार्डिक देश कहा जाता है। इसमें डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, आइसलैंड और ग्रीनलैंड शामिल हैं।
रैसमस पालुदन स्वीडन की दक्षिणपंथी पार्टी स्ट्रैम कुर्स का नेता है। यह अक्सर इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ ज़हर उगलता रहता है जिसकी वजह से यह कई बार जेल भी जा चुका है, हाल ही में इसने एक नस्लभेदी टिप्पणी की थी, जिसके कारण इसे 14 दिन की जेल हुई थी। स्वीडन के अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपनी नफरत उजागर करके सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने के ख्वाब देखने वाला रैसमस पालुदन एक विवादित विषय पर आयोजित प्रोग्राम में हिस्सा लेने आया था, लेकिन क़ानून व्यवस्था के बिगड़ जाने के डर से स्थानीय प्रशासन ने उसे रोक लिया। जिसके बाद इसके समर्थकों ने क़ुरान की प्रतियों को शहर के चौराहों पर जला डाला, क़ुरान की बेहुरमती की ख़बर पूरे शहर में फैल गई, इसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए, देखते देखते इस विरोध ने दंगों का रूप अख्तियार कर लिया।
यूरोप में बढ़ रहा है दक्षिणपंथ यूरोप में इस्लाम के मानन वालों की संख्या बढ़ रही है। इसमें सीरिया जैसे संकटग्रस्त देशों से आने वाले शरणार्थियों भी मुस्लिम आबादी के बढ़ने कारण हैं। लेकिन इस आबादी के बढ़ने कारण यूरोप में ईसाई दक्षिणपंथ भी बढ़ रहा है। साल भर पहले न्यूज़ीलैंड के क्राईस्टचर्च में एक मस्जिद में नमाज़ अदा कर रहे नमाज़ियों पर एक ईसाई दक्षिणपंथी ब्रेंटन हैरिसन टैरंट ने गोलियां चला दी थी जिसमें 51 नमाज़ियों की मौत हो गई थी। ऐसे हमले क्यों हो रहे हैं? जब हम इसकी जड़ में जाते हैं तो पता चलता है कि यूरोप में बढ़ते दक्षिणपंथ की जड़ में ज़ायनिज़्म है, जो दुनिया भर के दक्षिणपंथी दड़ों को अपने साथ लेकर चलता है। श्रीलंका में कोई वजह नहीं थी कि मुसलमान और सिंहली आपस में लड़ें, लेकिन उन्हें लड़वाया गया, न्यूज़ीलैंड का इतिहास ही नहीं है कि ईसाई और मुसलमान कभी आपस में लड़े हों, लेकिन वहां भी नमाज़ियों पर गोली चलवाई गई, नार्वे में थोड़े से दक्षिणपंथी ज़रूर है लेकिन वे भी इतने ताक़तवर नहीं हैं, कि क़ुरान की प्रतियां जला सकें। लेकिन स्वीडन में ऐसा किया गया, क़ुरान जलाया गया, ये सारी ख़ुराफात ज़ायनिज़्म के कारण ही है।
ज़ायनिज़्म का ‘कनफ्लिक्ट’ को ज़िंदा रखने, उसे पैदा करने में में दक्षिणपंथ के साथ गठजोड़ है। फिर चाहे वह दक्षिणपंथ/ कट्टरपंथ किसी भी धर्म के मानने वाला क्यों न हों। दुनिया भर के दक्षिणपंथी ग्रुप का ज़ायनिज़्म के साथ गठजोड़ है, फिर चाहे वह श्रीलंका के सिंहली हों, म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों का जनसंहार करने वाला बौद्घ चरमपंथी अशीन विराथु हो, सीरिया का आईएसएस, नाईजीरिया का बोकोहरम पाकिस्तान में हाफिज़ सईद या उसके जैसे दूसरे दक्षिणपंथी नेताओं के नेतृत्व में चलने वाले संगठन हों, या भारत के दक्षिणपंथी हिंदुवादी संगठन क्यों न हों। इन सबका ज़ानिज़्म के साथ गठजोड़ है। उसी तरह नॉर्डिक देशों के प्रोटेस्टेंट संप्रदाय का भी ज़ायनिज़्म के साथ गठजोड़ है।
यहां बताना जरूरी है कि यूरोप में ब्रिटेन के अलावा बाक़ी तमाम देश कैथोलिक हैं, प्रोटेस्टेंट नहीं हैं। यही कारण है कि यूरोप से इजरायल को कोई खास समर्थन भी नहीं मिल पाता, क्योंकि यूरोप में ब्रिटेन ऐसा इकलौता देश है जहां प्रोटेस्टेंट बहुमत में हैं। यही कारण है कि यूरोप में ज़ायनिज़्म को ज़िंदा करने के लिये ज़ायनिज़्म को समाज का समर्थन नहीं मिलता, एक आम फ्रांसीसी, एक आम ऑस्ट्रेलियन, एक बेल्जियम, एक आम मैसोडोनियन इन्हें कोई मतलब नहीं है कि यहूदी उनसे क्या चाहता है। इसलिये यहां अलग अलग प्रोटेस्टेंट के दक्षिणपंथी संगठन खड़े किये गए हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ज़ायनिज़्म को कैथोलिक से डर लगता है, उसे लगता है कि कैथोलिक कभी कभी उनके ख़िलाफ खड़े हो सकते हैं, इसलिये अलग अलग दक्षिणपंथी संगठन तैयार करके कैथोलिक ईसाईयों को मुसलमानो के ख़िलाफ खड़ा करने की पटकथा तैयार की जा रही है।
कैथोलिक का मुसलमान से नहीं है कोई विवाद कैथोलिक ईसाईयों का मुसलमानों के साथ कोई झगड़ा नहीं है।
यह संप्रदाय इसी पर खुश है कि मुसलमान भी ईसा मसीह को हज़रत ईसा पुकारते हैं, उन्हें नबी मानते हैं, हज़रत मरियम को भी अदब से पुकारते हैं, उन्हें गालियां नहीं देते जबकि ज़ायनिस्ट यहूदी उन्हें गालियां देते हैं। कैथोलिक इस बात पर भी खुश हैं कि हज़रत ईसा के दोबार ज़मीन पर लौटने के विचार का इस्लाम भी समर्थन करता है। जबकि प्रोटेस्टेंट को इन बातों से कोई सरोकार नहीं है, वह खुद को ‘शुद्धतावादी’ बताता है। क्योंकि वह पोप कल्चर के ख़िलाफ आया था, और उसने अपना एक अलग कल्चर ईजाद किया, इसीलिये उसने ज़ायनिज़्म से गठजोड़ किया हुआ है।
ज़ायनिज़्म की इस्लाम और मुसलमानों से सदियों पुरानी लड़ाई है। क्योंकि वह फ़लिस्तीन पर क़ब्ज़ा करके मस्जिद ए अक़्सा को अपने अधीन करना चाहता है। इसके अलावा उसकी लड़ाई कैथोलिक के साथ भी है, लेकिन वह लड़ाई अंदरखाने लड़ी जा रही है। जिसमें उसे प्रोटेस्टेंट का समर्थन हासिल रहता है। इसीलिये फ़लिस्तीन के मुद्दे पर भी अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन को कोई खास समर्थन नहीं मिल पाता। यह भी दिलचस्प है कि दुनिया के जिन पांच देशों को वीटो पॉवर हासिल है उनमें से दो देश वे हैं जहां प्रोटेस्टेंट बहुमत में है, उनमें एक है अमेरिका तो दूसरा ब्रिटेन। यूरोप में बीते कुछ वर्षों में मुसलमानों पर जो हमले हुए हैं, उनकी धार्मिक पुस्तक जो अपमान हुआ है उसकी सूत्राधार ज़ायनिस्ट लॉबी है जिसने कनफ्लिक्ट क्रिएट करने के लिये प्रोटेस्टेंट को आगे किया है। इन हमलावरों में शामिल अधिकतर हमलावर प्रोटेस्टेंट संप्रदाय से हैं।
रैसमस पालुदन स्वीडन के भारतीय ‘भक्त’ स्वीडन में होने वाले दंगों की ख़बर जैसे ही भारत पहुंची तो रैसमस पालुदन के भारतीय ‘समर्थकों’ को अपने देश के मुसलमानों को गरियाने इस्लाम को बुरा भला कहने का मौका मिल गया। अब वे सोशल मीडिया और ह्वाटसप यूनीवर्सिटी के माध्यम से अपनी कुंठा निकाल रहे हैं। ट्विटर पर ट्रेंड चलाए जा रहे हैं। मुसलमानों पर फब्तियां कसी जा रही हैं, तंज करते हुए कहा जा रहा है कि स्वीडन में कपिल मिश्रा, आरएसएस नहीं गया, न स्वीडन सरकार द्वारा एनआरसी, सीएए जैसा कोई क़ानून लाया गया फिर भी वहां पर ‘आसमानी किताब’ वालों ने दंगे कर दिए। भारत के छद्म राष्ट्रवादियों ने स्वीडन के राष्ट्रवादियों की करतूत को भी मुसलमानों के मत्थे मढ़ दिया। भारत समेत दुनिया भर के मीडिया में कहा गया है कि स्वीडन में कुरान की प्रतियां जलाए जाने के बाद हिंसा हुई। लेकिन भारत के छद्म राष्ट्रवादियों ने कुरान जलाए जाने की बात को गोल करके आगजनी की कुछ तस्वीरों के साथ कहना शुरू कर दिया कि मुसलमानों ने आगजनी की और दंगा भड़काया।
भारतीय समाज में नफरत की यह खेती बीते कई वर्षों से की जा रही है। जो लोग स्वीडन की घटना पर मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं वे वही हैं जिन्होंने न्यूज़ीलैंड की एक मस्जिद में एक आतंकवादी द्वारा नमाज़ियों को गोलियों से भून दिए जाने पर खुशी ज़ाहिर की थी, जिन्होंने म्यांमार में बौद्ध चरमपंथियो द्वारा रोहिंग्या को मारे जाने पर खुशी मनाई थी। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थय, बेरोजगारी, मंहगाई, ग़रीबी, भुखमरी जैसे मुद्दों से इस वर्ग को कोई सरोकार नहीं है। मौजूदा सत्ताधारी दल की सबसे बड़ी उपलब्धी यही है कि इसने एक बहुत बड़े वर्ग को एक धर्म विशेष से नफरत करना सिखा दिया है। स्वीडन में हिंसा होना निंदनीय है, लेकिन एक धर्म विशेष की पवित्र पुस्तक का अपमान करना भी निंदनीय है। स्वीडन की घटना पर जो ‘धार्मिक मजदूर’ मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं क्या ये वही नहीं हैं जिन्होंने गाय के नाम पर की जाने वाली लिंचिंग को जायज़ बताया है? लेकिन बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त यह वर्ग स्वीडन के बहुसंख्यक वर्ग के दक्षिणपंथी नेता एंव उसके समर्थकों के कुकृत्यों को नज़रअंदाज़ कर एक समुदाय विशेष के प्रति कुंठा निकाल रहा है।
बहुत भाते हैं मुस्लिम विरोधी चेहरे भारत के छद्म राष्ट्रवादियों को मुसलिम दुश्मन नेता और देश बहुत भाते हैं। स्वीडन की सरकार ने रैसमस पालुदन के नफरत का प्रचार करने और इसलाम के खिलाफ की गई पोस्टों के लिए सख्त एक्शन लिया है। उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। लेकिन अब इन छद्म राष्ट्रवादियों को एक और ऐसा नेता मिल गया है, जिसके कंधों पर चढ़कर वे अपना एजेंडा चलाएंगे। इस्राइल के बाद रैसमस पालुदन उनका नया मसीहा है। जैसे-जैसे नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता गिरेगी अपने देश के दक्षिणपंथी वो सब काम करेंगे, जिससे मोदी की लोकप्रियता कायम रहे। लेकिन वक्त एक सा नहीं रहता। इजरायल, म्यांमार के बौद्ध चरमपंथी अशिन विराथू, और अब पालुदन के समर्थन में वाह वाही इसी एक कड़ी का हिस्सा है।
नफरत का यह ज़हर भारतीय समाज और देश के लिये बहुत घातक साबित होगा, बेहतरी इसी में है कि नफरत को त्याग कर मूल मुद्दों की तरफ लौटा जाए। ह्वाटसप यूनीवर्सिटी को छोड़कर ज़मीन पर बने विश्विद्यालयों की तरफ लौटा जाए।