Home India Politics ओवैसी और भाजपा की राजनीति ‘टू पार्टी नेशन’ की संभावनाएं!

ओवैसी और भाजपा की राजनीति ‘टू पार्टी नेशन’ की संभावनाएं!

Asaduddin Owaisi

वसीम अकरम त्यागी, Two circles.net के लिए

11 नवंबर को आए बिहार चुनाव के नतीजे में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, और बिहार में एक बार फिर एनडीए सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में सफल रहा है। इन चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने हार का ठीकरा ओवैसी के सर फोड़ा, दरअस्ल बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल में पांच सीटों पर दर्ज की है। बिहार के चुनाव नतीजों के बाद ओवैसी पर आरोप प्रत्यारोप को अभी सही से विराम भी नहीं लगा था कि ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसपल कॉर्पोरेशन के चुनाव के नतीजे आ गए। इन चुनाव नतीजों में तेलंगाना प्रदेश में सत्तारूढ़ टीआरएस ने 55 सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि भाजपा ने 48 एआईएमआईएम ने 44 और कांग्रेस ने मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज की है। साल 2016 के निगम चुनाव में भाजपा ने मात्र चार सीटें जीतीं जबकि 99 सीट जीतकर टीआरएस पहले पायदान पर और ओवैसी की एआईएमआईएम 44 सीट जीतकर दूसरे पायदान पर रही थी। लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा ने टीआरएस का खेल बिगाड़ दिया है। एआईएमआईएम तो फिर भी अपना पुराना प्रदर्शन दोहराकर 51 सीटों पर लड़कर 44 सीटों पर बरकरार रही लेकिन टीआरएस का 55 सीटों पर आना हैदराबाद में भाजपा को संजीवनी दे गया।

तो….भाजपा से गठबंधन करे AIMIM

अब हैदराबाद में मेयर चुनने के लिये जोड़ तोड़ जारी हैं, ऐसे में ओवैसी किंगमेकर भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के नेताओं द्वारा उन पर लगाए जा रहे आरोपों पर अभी भी विराम नहीं लग पाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री तारिक़ अनवर ने भाजपा और ओवैसी की पार्टी की वैचारिक रूप से समान बताते हुए एक बार फिर शब्दबाण छोड़ा है। तारिक़ अनवर का कहना है कि हैदराबाद नगर निगम के परिणाम त्रिशंकु आए  हैं। अकेले निगम बनाने में कोई सक्षम नहीं है। बेहतर तो यही होगा ओवैसी की MIM और भाजपा मिल कर निगम बनाए क्योंकि दोनों वैचारिक रूप से एक ही हैं। जब कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती के साथ BJP सरकार बना सकती है तो MIM से साथ क्या परेशानी?

कांग्रेस नेता के इस तंज पर AIMIM के लोकसभा सांसद इम्तियाज़ जलील पलटवार करते हुए कहते हैं कि इनकी पार्टी (कांग्रेस) के पास अब कोई और काम नहीं हैं, जिसकी वजह से इनकी दुकानें बंद हो रही हैं। कांग्रेस के नेता इसलिये औरों को मश्विरा दे रहे हैं। इम्तियाज जलील तंजिया अंदाज़ में कहते हैं कि अच्छा है ऐसे मश्विरे आते रहने चाहिए, वैसे भी इनकी राजनीति सिर्फ सोशल मीडिया तक सिमटकर रह गई है। हम जीते हैं और जीत का जश्न मना रहे हैं, कांग्रेस हार का मातम मनाए। इम्तियाज़ जलील सेक्युलर पार्टियों की नाकामी और AIMIM के उभार पर सवाल करते हुए पूछते हैं कि आप बताईए कि हैदराबाद की एक पार्टी बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़कर पांच सीटों पर जीत रही है तो इसका ज़िम्मेदार कौन है? इम्तियाज़ के मुताबिक़ अगर सेक्युलर पार्टियों ने मुसलमानो के साथ इंसाफ किया होता, उन्हें उचित भागीदारी दी होती, उनके मुद्दों को उठाया होता तो AIMIM की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, मुसलमान हमसे खुद सवाल करते कि हमारे मुद्दे जब कांग्रेस, जदयू, राजद उठा रही है, तब आपकी क्या जरूरत है? लेकिन सेक्युलर पार्टियों की राजनीति भी लगभग भाजपा की विचारधारा के इर्द गिर्द रही है। इसलिये लोगों ने हम पर (AIMIM) पर विश्वास जताया है।

खुद को मुस्लिम पार्टी के रूप में स्थापित करना चाहती है AIMIM?

यह ऐसा सवाल है जो बीते कुछ दिनों में उठाया जाता रहा है। लेकिन लोकसभा सांसद इम्तियाज़ जलील इस सवाल को पूरी तरह ख़ारिज कर रहे हैं। इम्तियाज़ जलील के मुताबिक़ “यह बात भाजपा के लिये तो कही जा सकती है कि उसने खुद को ‘हिंदुत्तव’ पार्टी के तौर पर स्थापित किया है, लेकिन AIMIM के बारे में ऐसा कहना कि वह खुद को मुस्लिम पार्टी के तौर पर स्थापित कर रही है यह पूरी तरह गलत है। इम्तियाज़ जलील हाल ही में जीएचएमसी चुनाव में जीते हुए अपने हिंदू पार्षदों के नाम गिनाकर सवाल करते हैं कि भाजपा बताए कि उसने कितने मुसलमानों को टिकट दिया था”? इम्तियाज जलील AIMIM के उस हिंदू पार्षद का नाम भी बताते हैं जिसने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार को हराया है। इम्तियाज जलील कहते हैं कि AIMIM ने कभी नहीं कहा कि वह सिर्फ मुसलमानों की पार्टी है, हमारी पार्टी सभी वर्गों की पार्टी है, सभी को टिकट देती है। अगर हमारी पार्टी सिर्फ मुसलमानों की पार्टी होती तो हाल के जीएचमसी चुनाव में AIMIM के प्रत्याशी राजमोहन द्वारा कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार को न हराया जाता। यहां यह बताना दिलचस्प है कि जीएचएसी चुनाव में स्वामी यादव और राजमोहन ने AIMIM के टिकट पर जीत दर्ज की है।

संवैधानिक भाषा बोलते हैं ओवैसी

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पर विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा अक्सर वोटकटुवा पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों को सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. हिलाल अहमद खारिज़ करते हुए कहते हैं कि किसी दल को वोटकटुवा कहना उचित नहीं है, यह फिज़ूल की बहस है। डॉ. हिलाल कहते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी संवैधानिक दायरे में रहकर क़ानून का हवाला देते हुए अपनी बात रखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि वे एक मीडिया पर्सनालिटी हैं, जिसे अंग्रेज़ी, हिंदी और संविधान के साथ-साथ इस्लाम की भी जानकारी है। इसलिये सरकार की पॉलिसी और समाज में घट रही हर छोटी बड़ी घटना पर मीडिया का माईक ओवैसी की ओर जाता है। डॉक्टर हिलाल बताते हैं कि अक्सर पीएम मोदी या भाजपा के अन्य नेताओं द्वारा दो लोगों का नाम ही लिया जाता है, जिनमें एक राहुल गांधी हैं, दूसरे असदुद्दीन ओवैसी हैं। ऐसा क्यों है? डॉ. हिलाल के मुताबिक़ भाजपा ने मोदी के सामने राहुल गांधी को रखा है और ओवैसी को जिन्ना की विचारधारा की पार्टी का नेता AIMIM से मुक़ाबला दिखाने की कोशिश की है। लेकिन सवाल यह है कि भाजपा द्वारा अरविंद केजरीवाल का नाम क्यों नहीं लिया जाता? जबकि वे तीन बार से लगातार सीएम होने के साथ साथ पंजाब में भी अपना जनाधार रखते हैं। ओवैसी की AIMIM अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ कहीं भी नहीं टिकती फिर भी बार बार ओवैसी की नाम इसलिये लिया जाता है क्योंकि यह भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को सूट करता है।

इम्तियाज़ जलील की तरह डॉ. हिलाल भी ओवैसी के उभार का ज़िम्मेदार ग़ैर भाजपाई दलों को ही बताते हैं। डॉ. हिलाल राममंदिर के शिलान्यास का उदाहरण देकर बताते हैं कि सेक्युलर पार्टियां शिलान्यास पर कोई स्टैंड नहीं ले पाईं, बल्कि भाजपा की विचारधारा के इर्द गिर्द ही नज़र आईं ऐसे में ओवैसी का ‘खुलकर’ मस्जिद के पक्ष में बोलना उन्हें मुसलमानों में लोकप्रिय बनाता है। हालांकि इसका फायदा भाजपा और AIMIM दोनों को होना है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि देश में सिर्फ दो पार्टियां ही रहेंगी। क्षेत्र, और हालात के आधार पर समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं।