दिल्ली से एम. रियाज हाशमी Twocircles.Net के लिए
राष्ट्रीय राजधानी को हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू काश्मीर से जोड़ने वाले हाइवे पर चौबीस घंटे फर्राटा भरती गाड़ियों का शोर किसान आंदोलन के चलते वैकल्पिक मार्गों का रुख कर गया है। फोरलेन सड़क के एक तरफ किसानों का डेरा है और दूसरी तरफ इनकी ट्रैक्टर ट्रालियां और दूसरे वाहन खड़े हैं। यह कारवां हर रोज बढ़ रहा है और राजधानी की सीमा पर आंदोलन के 13वें दिन मंगलवार को भारत बंद के आह्वान के दौरान यह करीब बीस किमी हरियाणा के मुरथल तक जा पहुंचा है। भोर के साढ़े 5 बजे दूर कहीं एक तरफ से आती अजान की आवाज तो दूसरी तरफ से मंदिर के लाउडस्पीकर पर ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है/ जो सोवत है वो खोवत है, जो जागत है वो पावत है’ भजन सुनाई दे रहा है। नहा धोकर तैयार हो रहे किसान जपजी साहेब ‘एक ओंकार, सतनाम, वाहेगुरु’ का पाठ करने और ‘जो बोले सोनिहाल, सतश्री अकाल’ के जयकारे से दिन की शुरूआत करने में व्यस्त हैं।
बुजुर्ग, नौजवान, किशोर, बच्चे और महिलाएं सभी आंदोलन में अपने हिस्से की जिम्मेदारी को पूरा करने में जुटे हैं। जो रातभर आंदोलन में जागते रहे, वे अब अस्थाई टेंटों व ट्रैक्टर ट्रालियों में लगे बिस्तरों पर लेट रहे हैं। सबकुछ ठीक वैसे ही हो रहा है, जैसे चांद से सूरज को सत्ता का हस्तांतरण। दूर तक जहां भी नजर दौड़ाइये सड़कों पर किसानों का मेला दिखता है। मामूली फासले पर चौबीस घंटे निरंतर लंगर चल रहे हैं। फाइव लेयर आरसीसी के बोल्डर, उनके आगे लोहे के बैरीकैड्स और उन पर कंटीले तारों की फेंसिंग कर किसानों को रोका गया है। इसके ठीक पीछे धरना स्थल है। उस पार भी ऐसी ही रुकावटों से इसे करीब 500 मीटर में सीमित कर दिया था, लेकिन इसके पार अथाह किसानों का डेरा है और इसमें हरियाणा व पंजाब की ओर से हर रोज आने वाले किसान इसे विस्तार दे रहे हैं।
इस आंदोलन के सिंघू बॉर्डर वाले सिरे पर सभा चल रही है और हजारों किसान बैठे हैं। कुछ नौजवान अपने अपने अंदाज में छोटे छोटे बैनर लेकर मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करते नजर आते हैं। सारे वक्ता समान रूप से दोहराते हैं कि तीनों कृषि कानून रद्द किए जाने से पहले आंदोलन खत्म नहीं होगा। पहलवान और ट्रांसपोर्टर्स अपने संगठनों का समर्थन देने धरनास्थल पर पहुंचते हैं तो खासतौर पर युवाओं में जोश भर जाता है। हरियाणा के बॉक्सर विजेंद्र सभी को हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं। किसान संगठनों के झंडे लगी थार और दूसरी महंगी एसयूवी गाड़ियों में किसान परिवारों के युवा हरियाणा और पंजाब से दूध, फल, सब्जियां, दवाइयां और खाद्य सामग्री लेकर लगातार पहुंच रहे हैं।
एक आइटी कंपनी में निदेशक पटियाला के लवली सिंह (28), फतेहगढ़ साहेब से बीटेक रमनप्रीत सिंह (24) और बीटेक हरमनजीत सिंह (23) अपने हाथों में ‘हम आतंकवादी नहीं, किसान हैं’ नारे लिखी तख्तियों से सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। रमनप्रीत बताते हैं कि उनके पिता दिलबाग सिंह टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन का मोर्चा संभाले हुए हैं। लवली सवाल उठाते हैं, ‘पहले कृषि कानून का नुकसान पूरे देश को होगा। सरकार के गोदामों में अनाज भरा था, इसलिए लॉकडाउन में देश की जनता को आसानी से बांट दिया गया। इस कानून के बाद कार्पोरेट घरानों के गोदाम में अनाज होगा। दस, बीस साल बाद यदि फिर से कोई आपदा आ गई तो क्या आप कार्पोरेट घरानों से उम्मीद करेंगे कि वे देश की जनता को मुफ्त अनाज बांटेंगे?’
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी पंजाब राज्य के संगठन सचिव सुखविंदर सिंह सबराह (तरनतारन) कहते हैं, ‘यह पूरे देश का आंदोलन है और सरकार इसे पंजाब का आंदोलन प्रचारित कर रही है। हमारे साथ 507 किसान संगठन हैं और सरकार सबसे बात करे। कानून रद्द होने से कम पर हम मानेंगे नहीं और शांति से अपना आंदोलन जारी रखेंगे।’ पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘तीनों कानूनों में 34 खामियां तो सरकार ही मान चुकी है। हम संशोधन नहीं, बल्कि तीनों कृषि कानूनों और बिजली व पर्यावरण के दोनों कानूनों का खात्मा चाहते हैं।’
उधर, दिल्ली-रोहतक मार्ग पर स्थित टिकरी बॉर्डर पर भी कुछ ऐसा ही नजारा है। मंच के बगल में बैठी सुखविंदर कौर धन एकत्र कर रही हैं। किसानों के मंच और चंदे का हिसाब किताब रख रही सुखविंदर पंजाब के मानसा से आई हैं और भारतीय किसान यूनियन उग्राहां की उपाध्यक्ष हैं। बिना रजिस्टर से निगाह हटाए बातचीत करते हुए बताती हैं कि आंदोलन में पंजाब की डेमोक्रेटिक टीचर्स फेडरेशन डीटीएफ ने सर्वाधिक दस लाख रुपए चंदे के रूप में दिए हैं। भाकियू उग्राहां से जुड़े दस हजार से अधिक किसान यहां अपनी गाड़ियों समेत सड़क पर बैठे हैं। किसान आंदोलन का बहीखाता देखकर कोई भी दंग हो जाएगा। किस गांव से कितने लोग, कौन सी गाड़ी से आए और किसने, कब क्या योगदान दिया, कितना खर्च हो रहा है? सब रिकार्ड इन खातों में है। भाकियू उग्राहां से जुड़े 1400 गांव हैं, जो साल में दो बार गेंहूं और धान की फसल के बाद चंदा देते हैं।
इसी संगठन के उपाध्यक्ष झंडा सिंह बातचीत में कहते हैं, ‘अगर कोई ये साबित कर दे कि खालिस्तान समर्थकों से पैसा आ रहा है तो हम आंदोलन छोड़कर वापस चले जाएंगे। हम किसानों से चंदा लेते हैं और उसका एक एक पैसे का हिसाब हमारे पास है।’ इसी बीच कुछ वॉलींटियर्स देसी घी की जलेबी, हलवा, रसपीस और चाय बेहद अनुशासित तरीके से बांटते हुए आगे बढ़ जाते हैं। इन्हीं में से एक लखविंदर सिंह वरयाम नंगल बातचीत में यह कहते हुए शामिल होते हैं, ‘जेड़ा मोदी हैग्या सी, ओ पहले इक किलो जहर दित्ता सी ते फेर कहंदा सी हुण ते मैं 900 ग्राम वापसी ले लेणा, अब तुस्सी सौ ग्राम खा लेयो बस।’ इस पर सभी ठहाका लगाकर हंस पड़ते हैं और माहौल को हल्का करते हुए ऐसे ढेरों किस्से थोड़ी थोड़ी देर में सुनने को मिलते रहते हैं।
एक वॉलींटियर सुखबीर सिंह सिक्का हमें बताते हैं कि किसानों के लिए यह जलेबी और हलवा हरियाणा के प्रगतिशील किसानों का ग्रुप तैयार करा रहा है। हरियाणा के हिसार से आए पशुपालक सुखविंदर ढांडा अपनी भैसों की वजह से दुनिया भर में मशहूर हैं। उनकी विकसित की गई भैंस पिछले दिनों 51 लाख रुपए में बिकी थी। वह कहते हैं कि खेती के अलावा पशुपालन करके भी किसान पैसा कमाते हैं। इसलिए उनकी फंडिंग पर सवाल मत उठाइये। मंहगी गाड़ियां, महंगे मोबाइल और जींस टीशर्ट का शौक किसान क्यों पूरा नहीं कर सकते? दोपहर के एक बजते ही करीब 12 किमी के पैदल सफर में हर 500 मीटर पर लंगर छकते किसान और पंगत में दिल्ली की झोपड़ पट्टियों के लोग भी दिख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा से लगातार किसानों के जत्थे आंदोलन स्थल की ओर बढ़ रहे हैं। नवां शहर की जसपाल कौर बताती हैं, ‘सिंघू बॉर्डर से लेकर बीस किमी दूर मुरथल तक किसानों का कारवां पहुंच गया है। वह तड़के पांच बजे मुरथल से पैदल चलती हुई सिंघू बॉर्डर तक पहुंची हैं।’ किसानों के अलावा अब मजदूर, कलाकार और खिलाड़ियों से आर्थिक और सामाजिक मदद मिलने से आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद दिख रहे हैं।
आंदोलन में महिलाएं महज रोटी बनाने नहीं आई है बल्कि वे इसे चला रही हैं। पंजाब के बठिंडा से आई हरिंदर बिंद अपनी कार से पूरे मार्ग पर व्यवस्थाओं का जायजा लेते हुए कुछ देर बाद विरोध प्रदर्शन में शामिल हो जाती हैं। इनके पिता मेघराज भक्तुआना का 30 साल पहले खालिस्तान समर्थकों ने कत्ल कर दिया था। अब यह किसान यूनियन उग्राहां की सचिव हैं और पंजाब की महिलाओं को इस आंदोलन से जोड़ने में भूमिका निभा रही हैं।
टिकरी बॉर्डर पर मंच के ठीक बगल में बैठी जसबीर कौर नत क्लर्क के पद से रिटायर होने के बाद किसान यूनियन से जुड़ गईं। इनका बेटा सिंघू बार्डर पर धरना दे रहा है। आंदोलन की फंडिंग से लेकर मंच संचालन की व्यवस्था जसबीर कौर नत ही तय कर रही हैं। लेकिन गुरमेल कौर जैसी कई बुजुर्ग महिलाएं भी हैं, जो किसी संगठन से तो जुड़ी नहीं, लेकिन गांव से अपने जत्थे के साथ आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाने आई हैं। दिल्ली-बहादुरगढ़ की सड़क को भी पुलिस ने बड़े बोल्डर और कंटीले तारों की फेंसिंग कर बंद लगाकर बंद कर दिया है। यहां पैदल ही करीब एक किमी चलने के बाद दोनों तरफ इस तरह के बड़े ट्रक खड़े हैं जिनको इस आंदोलन के चलते तैयार किया गया है। एक बड़े ट्रक को ऐसी डोरमेटरी का रूप दिया गया है, जिसमें एक साथ दो सौ लोग सो सकते हैं। ट्रालियों में पानी की बड़ी टंकियां लगा दी गई हैं, तो कई ट्रालियों पर सोलर पैनल लगाकर मोबाइल चार्जिंग के प्वाइंट बनाए गए हैं। फ्री वाइफाइ कनेक्शन प्वाइंट्स भी इंस्टॉल किए गए हैं।
किसानों के लिए शौचालय से लेकर खाने पीने का इंतजाम बहादुरगढ़ के 26 साल के बिजनेसमैन सिद्धार्थ राठी कर रहे हैं। भिवानी के किसान मनोज हर दिन दो हजार पैकेट दूध आंदोलनकारियों में बांटते हैं। इतनी भीड़ और उसके इंतजाम बेहद सलीके से चल रहे हैं, कहीं कोई आपाधापी नहीं। जिसके जिम्मे जो काम है, वह उसे बिना किसी आदेश निर्देश के अंजाम दे रहा है। शाम के पांच बजे सर्द हवाएं चलने लगी हैं, लेकिन आंदोलनकारियों का जोश ठंडा नहीं है। कुछ जोशीले नौजवान हथियार लहराते हैं, लेकिन बुजुर्ग उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए धमकाते हैं। जो रातभर जागकर सुबह सोने चले गए थे, वे भी उठ चुके हैं। जितने सोते हैं, उतने जाग जाते हैं। इन्हें उम्मीद है कि सरकार को इनके आगे झुकना ही पड़ेगा। वर्ना तो ये अगले दस महीने का राशन साथ लेकर आए ही हैं, जिसे इन्होंने अभी तक छुआ भी नहीं है। रात हो चली है और दिल्ली पुलिस की निगरानी में सरकारी अमला बॉर्डर सील करने की व्यवस्थाओं को फिर मजबूत करने में जुट गया है। बड़ी क्रेनों के जरिए आरसीसी के बोल्डर ट्रकों से उतारकर सड़क को मजबूती से बाधित किया जा रहा है। इनके आगे रेत से भरे डंपर्स इस तरह से लगा दिए गए हैं, जिन्हें हटाना मुश्किल होगा।