देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसानों की उपज की एमएसपी पर खरीद की 20 सालों से लड़ाई लड़ने, केंद्र के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को निरस्त कराने और कृषि सुधार विधेयकों के खिलाफ देशभर के किसानों को एकजुट कर आंदोलन खड़ा करने वाले एआइकेएससीसी (अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति) के संयोजक सरदार वीएम सिंह किसान आंदोलन के रुख और सरकार के रवैये को लेकर खासे चिंतित हैं। उनके कोविड-19 से गंभीर रूप से ग्रसित होने के बाद सरकार और कुछ किसान संगठनों के बीच खिचड़ी पकने को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं किसान आंदोलन के दौरान हो रही हैं। सरकार तय कर रही है कि किसे बातचीत के लिए बुलाना है या नहीं, लेकिन वीएम सिंह फिर भी किसान आंदोलन और सरकार दोनों को ही समय समय पर टोकते और आगाह करते चले आ रहे हैं। दिल्ली में लंबे होते जा रहे किसान आंदोलन और सरकार से बातचीत के बीच दोनों पक्षों में सहमति का कोई रास्ता नहीं बन पाने और भविष्य की संभावनाओं पर सरदार वीएम सिंह से नई दिल्ली में Twocircles.net के लिए एम. रियाज हाशमी ने खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने कई चौंकाने वाली बातें कहीं तो कईं अहम खुलासे भी किए। उनसे बातचीत के कुछ खास अंश-
-किसान आंदोलन कहां खड़ा है? इसका भविष्य क्या देख रहे हैं?
वीएम सिंह: यह किसान आंदोलन एक दिन का नतीजा नहीं है। इसकी बुनियाद 2017 में मंदसौर से पड़ी थी। यूपी में 20 साल से हम एमएसपी की लड़ाई हाईकोर्ट में लड़ रहे हैं। ढाई महीने पहले एआइकेएससीसी के 5 सदस्यीय प्रतिनिधि मडंल ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की थी। इनमें मैं, राजू शेट्टी, राजेवाल, गुरनाम सिंह और योगेंद्र यादव थे। दो घंटे की बातचीत और ईमेल के माध्यम से लिखित में उन्हें कृषि बिलों पर आपत्तियों ले अवगत कराया था। तब -सरकार ने बात मान ली होती तो आज लड़ाई इतनी बड़ी न होती। आज सरकार बात कर रही है, लेकिन ढाई महीने तक क्यों सोती रही?
-आंदोलन की अगुवाई कौन कर रहा है और इसके नतीजों को लेकर आप कितने निश्चिंत हैं?
वीएम सिंह: हमारे साथ 250 संगठन हैं और आंदोलन में 400 से ज्यादा किसान संगठन हैं। सब किसान अगुवाई कर रहे हैं। जब तक एमएसपी की गारंटी नहीं मिलती है, तब तक आंदोलन चलता रहेगा। सरकार आंदोलन को तोड़ने में लगी है और शुरूआत में बातचीत के लिए पंजाब के 32 किसान प्रतिनिधियों को बुलाया। जब हमने आवाज उठाई तो यूपी के भी कुछ प्रतिनिधियों को वार्ता में शामिल किया। बाद में हमारे भी दो प्रतिनिधि बुलाए गए। आंदोलन का रुख लीडरशिप तय करती है। यह कमांडर पर निर्भर है कि वह आंदोलन के कैसे परिणाम दे। हमने 2018 में दो लाख किसानों को यूपी से दिल्ली बुलाया था और सरकार को झुकना पड़ा था। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ हम तब अरुण जेटली से केवल 5 लोग मिले थे। उन्होंने जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) बनाई और तीनों अध्यादेश ठंडे बस्ते चले गए। बाद में स्वतः ही ये खारिज हो गए।
-सरकार और किसानों के बीच बातचीत के जरिए कुछ हल निकलने की उम्मीद नजर आती है?
वीएम सिंह: पहली बात तो यह कि जो बातचीत अब हो रही है, यह अध्यादेश लाने से पहले होनी चाहिए थी। जिस तरह अब आपत्तियां मांगी जा रही हैं, तब मसौदे पर मांगनी थीं। वेलफेयर स्टेट में सरकार को जिद पर नहीं अड़ना चाहिए। सरकार को लगता है कि कृषि कानून वापस हो गए तो किसान जीत जाएगा और सरकार हार जाएगी। यह गलत सोच है। सरकार तो सरकार ही रहेगी, छोटी नहीं हो जाएगी। सरकार बनाने वाले भी तो किसान हैं। आप कृषि बिल लाए, किसने मांगे थे? क्या आपके मैनीफेस्टो में थे? आपने तो कहा था कि किसानों को फसलों का दाम सी2+50% देंगे तो देते क्यों नहीं? अब आप बिलों को कांग्रेस और गैर भाजपाई राज्य सरकारों व नेताओं की पुरानी मांग के अनुरूप बता रहे हो तो यह भी तो बताइये कि अगर आप कांग्रेस के घोषणापत्र पर अमल कर रहे हो तो फिर जनता को देश में सत्ता परिवर्तन की जरूरत क्या थी?
-सरकार कानून वापस लेने के बजाए संशोधन की बात कह रही है और किसान कानून निरस्त होने से कम मानने को तैयार नहीं हैं तो फिर हल कैसे निकलेगा?
वीएम सिंह: जिन लोगों ने किसान हित में इसे मुद्दा बनाया, उन्हें तो सरकार ने वार्ता से अलग कर दिया है। अब जो लोग सरकार से वार्ता कर रहे हैं, उन्हें तय करना है कि इस लड़ाई को किधर जाना है। सरकार आपत्तियां मांग रही है, हम भी अपनी आपत्तियां देने को तैयार हैं। सरकार को चाहिए कि किसानों की सारी आपत्तियां व सुझाव ले और उनके अनुसार नया कानून लाए, पुराने को रद्द कर दे। हल निकल जाएगा। सरकार को एमएसपी की गारंटी देने में दिक्कत क्या है? सरकार कानून को निरस्त भी कर दे, लेकिन एमएसपी की गारंटी न दे तो यूपी के किसानों का तो भला होने वाला नहीं है। हम सबसे ज्यादा गन्ना, चावल और गेहूं उत्पादन करते हैं। अभी तक सरकार किसान प्रतिनिधियों से 20-22 घंटे की वार्ता कर चुकी है, लेकिन हल नहीं निकला है। इतने में तो नया मसौदा तैयार हो जाता।
-यूपी में आप बीस साल से किसानों को एमएसपी की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं, उसके क्या नतीजे रहे?
वीएम सिंह: इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट पटीशन संख्या 5112/ 2000 वीएम सिंह बनाम यूनियन आफ इंडिया और उत्तर प्रदेश सरकार विचाराधीन है और बीस सालों से यूपी में कोर्ट की मुहर के बाद किसानों की फसल का एमएसपी घोषित किया जाता है। हमने कोर्ट से यही मांग की थी कि फसल का एक एक दाना एमएसपी पर खरीदा जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सहमति जताई है। यूपी में 350 लाख मीट्रिक टन धान और गेहूं का उत्पादन होता है, जो पंजाब व हरियाणा से ज्यादा है। गन्ना भी हम ज्यादा उगाते हैं। पंजाब में तो 7 चीनी मिलें हैं, हमारे यहां 119 हैं। 20 साल से एमएसपी दे नहीं पा रहे हो और कॉर्पोरेट के लिए बाजार खोल रहे हो। 14 करोड़ किसानों की भावनाओं के खिलाफ 14 उद्योगपतियों को फायदा करने के लिए सरकार अड़ी है।
-किसानों का आंदोलन पंजाब पर फोकस है और आपकी बातों से लगता है कि यूपी के किसानों को नजरअंदाज किया जा रहा है? क्या यूपी इस आंदोलन का हिस्सा नहीं है?
वीएम सिंह: आंदोलन हम सब किसानों का है और यूपी के किसान बराबर आंदोलित हैं। मीडिया फोकस पंजाब के किसानों पर है तो हम क्या कर सकते हैं। आप गाजीपुर बॉर्डर पर आइये और हमारे आंदोलन को देखिए। भले ही वहां पिकनिक या मेले जैसा माहौल न मिले, लेकिन आपको असल किसान मिल जाएंगे। सरकार और मीडिया इसे पंजाब के किसानों का आंदोलन बना रही है और पंजाब वाले भी इसे अपना बनाना चाहते हैं तो हम क्या कर सकते हैं? कृषि कानून तो पूरे देश के किसानों को प्रभावित कर रहा है। सरकार पंजाब को आगे करके अपना पल्ला झाड़ना चाह रही है। सवाल यह है कि जो जंग लड़ने जा रहा है, वह जनरल सही है या नहीं? परिणाम इसे साबित करते हैं। हम पीछे से तो ड्राइविंग सीट को संचालित नहीं कर सकते हैं। हमारी लड़ाई तो यह है कि एमएसपी के साथ इससे कम पर खरीदने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए और तब तक हम आंदोलित रहेंगे। आंदोलन की कॉल तो हमारी है, पंजाब तो बीच में आ गया।
-कल भी सरकार के साथ किसान प्रतिनिधियों की मीटिंग है, आपको कुछ नतीजा निकलने की उम्मीद है?
वीएम सिंह: देखिए, कोरोना होने के बाद मैं निजी तौर पर अभी तक की मीटिंगों से अलग रहा हूं। कल भी नहीं जाऊंगा, लेकिन हम यूपी की बात करें तो हम अपनी मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखेंगे। जो सरकार से वार्ता कर रहे हैं और उसमें अगर कुछ कमी रह जाती है तो उसे हम पूरा करने को तैयार हैं। किसानों की लड़ाई से हम बिल्कुल भी अलग नहीं हैं। भारत बंद के दौरान अभी हमने सिर्फ यूपी बॉर्डर पर ट्रेलर दिखाया है। सरकार चाहेगी तो हम पूरी फिल्म भी दिखाने को तैयार हैं।
-आपने तो किसानों के लिए दिल्ली के बुराड़ी में व्यवस्था की थी, लेकिन बुराड़ी मैदान छोड़कर आप लोग गाजीपुर बॉर्डर पर क्यों आ गए?
वीएम सिंह: केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को ठगने का काम किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों से कहा था कि किसान बुराड़ी मैदान में आ जाएं, हम उनसे बात करेंगे। उनकी अपील पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान रास्ते खाली कर बुराड़ी में आ गए। सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए बुलाया तो उसमें हमें शामिल नहीं किया। अमित शाह ने हमारे साथ धोखा किया तो हमारा बुराड़ी में रुकने का कोई मतलब नहीं रहा। सरकार ने संदेश दे दिया कि जो कानून को हाथ में लेगा, वह उससे बात करेगी।