मीना कोटवाल, Twocircles.net
”जेल से बाहर जरूर आ गई हूं लेकिन फिर भी मैं अभी ना संतुष्ट हूं और ना खुश. जब मुझे ले कर गए तो लगभग 100 से 150 लोग थे लेकिन जब मैं वापस आई तो कई अभी भी जेल में कैद हैं, पिछले हफ्ते केवल 13 लोग बाहर आ पाए.”
ये शब्द हैं सदफ़ जाफ़र के, जिन्हें नागरिकता संशोधन बिल (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने पर गिरफ्तार कर लिया गया था. 19 दिसम्बर को लखनऊ के परिवर्तन चौक से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. जहां वे सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का हिस्सा रहीं. उन्हें गिरफ्तार कर के हज़रतगंज थाने ले जाया गया और 24 घंटे के बाद उन्हें लखनऊ थाने में भेज दिया गया. वे मंगलवार सात जनवरी को ही बेल पर घर लौटी हैं. जानते हैं उनके ही शब्दों में इतने दिन उनके साथ थाने और जेल में किस तरह का व्यवहार किया गया.
“मैं और मेरे साथी शातिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन वहां कुछ उपद्रवियों ने बसों और गाड़ियों में आग लगा दी और पत्थरबाजी भी की. लेकिन वो लोग प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे बल्कि मैं तो खुद उनका फेसबुक लाइव कर रही थी. और पुलिस को कह रही थी किये जो भी लोग हैं इन्हें पकड़ो. लेकिन पुलिस वहां खड़ी हुई देख रही थी. इसके कुछ ही देर बाद एक महिला पुलिस मुझे ही पकड़कर ले जाती हैं.”
“वहां मैंने क्या गलत किया, मेरे कई बार पूछने पर भी नहीं बता रहे थे. वे मुझे हज़रतगंज थाने ले गये जहां हमें पाकिस्तानी, देशद्रोही और पता नहीं क्या क्या कह रहे थे. 100-150 लोगों में मैं अकेली महिला थी, जिनमें अधिकतर हम मुस्लिम समुदाय के थे और कुछ लोग हिंदू भी थे. लेकिन पुलिस वाले सभी को बहुत ही बुरा-भला बोल रहे थे, जैसे ‘देशद्रोही’, ‘पाकिस्तानी’, ‘खाते यहां का हैं गाते वहां का है’. उस दिन वो थाना ब्लैकहॉल में तब्दील हो गया था. जहां कई लोगों को लाया जा रहा था. वे (पुलिस वाले) लोग बस नाम लिखते जा रहे थे. ऐसा लग रहा था वो लोग बौखला गए हैं, उन्हें जो मिल रहा था थाने ला रहे थे. वे ये भी नहीं सोच पाए के जिन रैंडम लोगों को वो ला रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ सबूत कैसे और कहां से लाएंगे! हमें अपने घर भी बात नहीं करने दे रहे थे. परिवार को ख़बर करना हमारा अधिकार था लेकिन इसके बदले उन्होंने हमारा फ़ोन ही छीनकर रख लिया.”
‘पुलिस चोट दी पर मेडिकल हेल्प नहीं’
“उस दिन हमें खाना तो दूर पानी भी नहीं दिया गया. बस लोगों के दर्द में चीखने की आवाज़ आ रही थी. पुरुषों के साथ तो बहुत ही क्रूर व्यवहार किया गया. मैंने खुद उन्हें पिटते देखा. उन्हें पूरी रात पीटा गया. उस रात बस चीखने और गालियों की ही आवाज़ थाने में गूंज रही थी. मैंने पुलिस अधिकारियों का नाम और उनकी पोस्ट का पता लगाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अपने बैचेस हटा रखे थे ताकि कुछ पता ना चल सके. मुझे एक महिला हवलदार ने मारा फिर उसके बाद एक पुलिस वाला आया जिसने मेरे बाल खींचे और मुझे पेट में लात मारी. मैं दर्द से करहा रही थी लेकिन उन्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ रहा था. मुझे कहा गया था कि मुझे आईजी साहब ने बुलाया है, तो मैं अब तक यही समझ रही थी कि मुझे आईजी ने पिटवाया है. जब मैंने कल फ़ोटो देखी तो पता चला वो कोई और थे. वे लोग गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे थे. इतने दिन जेल में रखने के बाद वो अब कह रहे हैं कि हमारे पास सबूत ही नहीं है. हम अभी सबूत अभी जुटा रहे हैं.”
“अगले दिन यानि 20 दिसम्बर को मेरे दोस्त मुझे ढूढ़ते हुए मुझसे मिलने आए लेकिन उन्होंने मुझसे मिलाने के बदल उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस वालों ने मुझे बताया कि हमारे पास 500 अज्ञात लोगों के नाम एफआईआर दर्ज़ है, इसलिए अगर तुमसे कोई मिलने भी आएगा तो भी हम गिरफ्तार कर लेंगे. इसी तरह माधवी कुकरेजा, अरुंधति धुरु जैसे लोग भी मुझे ढूंढने आए थे और उन्हें भी पकड़ने लगे, लेकिन वो वहां से निकलने में सफल रहे.”
“ये बात मुझे तब पता चला जब मेरी बहन मुझसे जेल में मिलने आई थी. उसने बताया कि हम तुम्हें ढूढ़ने थाने गए थे लेकिन वो कुछ नहीं बता रहे थे, बल्कि जो मिलने आता उसे ही पकड़ लेते. दीपक को पकड़ लिया गया और उन्हें बहुत ही बुरी तरह मारा. दीपक कबीर हमारे साथ उस प्रोटेस्ट में शामिल नहीं थे लेकिन वो 16 को एक प्रोटेस्ट में शामिल थे. वहां उनका एसएचओ से अनबन हो गई थी, जिन्होंने उसे थाने में पहचान लिया और पकड़ लिया गया. इसके बाद उन्हें लखनऊ जेल भेज दिया गया.“
दीपक कबीर भी सोशल मीडिया पर सभी मुद्दों पर लिखने वाले व्यक्ति हैं जो सदफ़ जाफ़र के दोस्त भी हैं.
“मुझे मेडिकल हेल्प भी तब दी जब मेरा ब्लड प्रेशर काफी बढ़ने लगा था. मैंने उन्हें कहा कि मेरे साथ किसी महिला पुलिस या नर्स को भेजिए ताकि मैं अपनी चोट उन्हें दिखा सकूं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करने दिया और ना ही मेरा मेडिकल करवाया. यहां तक इमरजेंसी में बैठे डॉक्टर ने भी नहीं किया बस इंजेक्शन लगा कर वापस थाने भेज दिया गया ये कह कर कि ये थाने ना जाने का बहाना बना रही हैं. मुझे इतनी चोट लगी थी कि मुझे प्राइवेट पार्ट से खून आने लगा था. फिर भी मुझे लगातार पाकिस्तानी कहा जा रहा था.”
“अगले दिन जब मुझे लखनऊ जेल लेकर गए तो पिछली रात को पेट में मारी गई लात से मेरा खून बहना शुरू हो गया, मेरी किसी ने कोई मदद नहीं की. खून इतना बह रहा था कि मेरी पूरी पेंट खून में सन गई थी. वहां पहुंचने के बाद मुझे जेल में सैनिटरी नेपकिन दिए गए. जेल में कस्टडी देने के बाद मेरे साथ एक सामान्य कैदी की तरह व्यवहार किया गया. समय से खाना, बिस्तर, चेक-अप और भी जो होता है वो सब मिला. लेकिन थाने की वो रात याद कर आज भी सहम जाती हूं. मेरे घाव जरूर भर जाएंगे लेकिन वो दिल और दिमाग से कभी नहीं निकलेंगे. अपने ही देश में देशद्रोही कहलाना, ‘तुम लोग’ कहना, नाम पूछ-पूछकर एलियन की तरह व्यवहार करना जिंदगीभर याद रहेगा.”
बच्चों और लोगों के साथ से मिली हिम्मत
मैं एक मां के साथ सोशल एक्टिविस्ट भी हूं. मैंने अपने बच्चों को मजबूती से इसके लिए तैयार कर दिया है कि मुझे कुछ भी हो तो वो डगमगाए नही. यही हिम्मत मैंने अपने बच्चों की आंखों में तब देखी जब वे मुझसे मिलने जेल आए थे. 28 दिसम्बर को जब प्रियंका मेरे बच्चों से मिली तो उनमें और हिम्मत आ गई थी. 30 या 31 दिस्मबर को मेरे बच्चे मुझसे मिलने आए थे. उन्हें देखकर मुझे सबसे अच्छा ये लगा कि उन्हें मेरे भाई या बहन नहीं बल्कि एक सोशल एक्टिविस्ट के साथ मिलने आए थे. हां वे थोड़ा इसलिए परेशान हुए थे कि कहीं मुझे कोई चोट तो नहीं लगी या मुझे कुछ हो तो नहीं गया है! लेकिन मुझे सही सलामत देखकर वे थोड़ा रिलेक्स हुए. वे मेरे साथ हर कदम पर साथ हैं. गलत को गलत कहना उन्हें मैंने सिखाया हुआ है.
प्रियंका गांधी ने बहुत साथ दिया वे रोज़ाना मेरे बच्चों को संपर्क में बनी हुई थी. वे गिफ्ट भेज रही थी. बच्चों को उन्होंने बहुत अच्छे से संभाला. उनके अलावा आसपास के लोग जिन्हें मैं जानती नहीं वे बच्चों को खाना खिला रहे हैं ध्यान रख रहे हैं. बाकि और भी कई लोग उन्हें लगातार मिल रहे थे, संभाल रहे थे. पार्टी के लोगों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी लोगों ने साथ दिया. हमारे लिए लोग सड़को पर उतर गए. ये सब देखकर मेरे अंदर से बचाकुचा डर भी निकल गया. लोगों का साथ बहुत मिला. ना बल्कि मुझे मेरी पार्टी बल्कि दूसरी पार्टियों का भी साथ मिला.
पुलिस की नाकामयाबी की बौखलाहट
जिस दिन (19 दिसम्बर) प्रदर्शन था, उस दिन पुलिस 144 धारा लगा रखी थी. फिर भी कुछ लोग ईंट पत्थर लेकर पहुंच गए हैं. इतनी भारी मात्रा में लोग नुकसान करने पहुंच रहे हैं तो ये पुलिस की कमी है. लेकिन उनकी नाकामयाबी का नुकसान आम जनता का उठाना पड़ा, बेगुनाहों को पीटा गया. ऐसे में उन्हें जो मिल रहा था उन्हें जेल में डाल रहे थे लेकिन जैसे ही पता चलता वो मुस्लिम है तो उसके साथ और अधिक क्रूर हो जाते. जैसा कि मुझसे एक पुलिस वाले ने कहा था कि देखो 95 प्रतिशत तुम ही लोग हो, इस देश नेतुम्हें इतना कुछ किया और तुम दंगे कर रहे हो. हमें पाकिस्तानी साबित किया जा रहा था जबकि अभी तो एनआरसी हुआ भी नहीं तो इनका ये हाल है आगे क्या क्या होगा. मैं (सदफ़) तो लाइव कर रही थी अगर मैं कुछ गलत करती तो वहां पता चल जाता, पाकिस्तान के लिए नारे लगाते तो पता नहीं चलता!
पुलिस वालों ने मुझ पर कई धाराएं लगा दी जैसे आगजनी, मारने की कोशिश करना आदि, लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत ही नहीं है. जबकि मैं तो खुद पुलिस से कह रही थी कि जो गलत कर रहे हैं उन्हें पकड़ों. पुलिस ज्यादा से ज्यादा मुझे मार सकते थे लेकिन मैं अभी भी गलत को गलत ही कहूंगी और हमेशा उसके खिलाफ़ खड़ी रहूंगी.
कौन है सदफ़ जाफ़र?
सदफ़ ज़फ़र लखनऊ की रहने वालीं हैं. वे एक्टिविस्ट के साथ-साथ एक सिंगल मदर हैं, जो दो बच्चों की मां हैं. वे लखनऊ के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का काम भी कर चुकी है. इस समय वो उत्तर प्रदेश कांग्रेस से जुड़ी हुई है. इसके अलावा वे मीरा नय्यर की आनेवाली फिल्म सूटेबल बॉय में भी दिखाई देंगी.
CAA और CAB के खिलाफ़ लखनऊ में हो रहे प्रदर्शन का लाइव वीडियो दिखाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनके पक्ष में लोग लिखने लगे और उन्हें छोड़ने की मांग करने लगे. उनके लिए मीरा नय्यर, प्रियंका गांधी के अलावा और भी कई नामी हस्तियों ने सोशल मीडिया पर लिखा.