डॉक्टर कफ़ील ने जेल से कलेजा चीरने वाली एक चिट्ठी लिखी है ….पढिये

Kafeel Ahmad Khan
मथुरा जेल में बंद गोरखपुर वाले डॉक्टर कफ़ील आशंका जता रहे हैं कि जेल में उनकी हत्या हो सकती है और इसे आत्महत्या का रूप दिया जा सकता है ! कफ़ील अब किसी पहचान के मोहताज़ तो नही है मगर उनकी पहचान ही उनकी दुश्मन बन गई है। डॉक्टर कफ़ील की चार पेज़ की इस चिट्ठी को बसपा सांसद कुँवर दानिश अली ने ट्वीट किया है। हम  अपने पाठकों के लिए इसे हूबहू पेश कर रहे हैं। 
 
 
यह डॉक्टर कफ़ील लिख रहे हैं..
 

मथुरा कारागार रूटीन 

5:00 बजे सुबह सिपाहियों की आवाज से नींद टूटती है। उठ जाओ और सारे चल दो जोड़े में गिनती के लिए। जैसे ही गिनती पूरी होती है सब दौड़ते हैं टॉयलेट/ वॉशरूम के लिए 534 कैपेसिटी के जेल में 1600 बंदी बंद हैं।


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एक-एक बैरक में 125-150 क़ैदी और 4-6 टॉइलट तो लाइन में लगना होता है फ्रेश होने के लिए अक्सर में तीसरे से चौथे नंबर पर रहता हूँ फिर इंतज़ार करिए दूसरा कब निकले कितनी बार में वो अपनी गंदगी साफ कर रहा। जैसे-जैसे अपना नंबर क़रीब आता है पेट में दर्द बढ़ता जाता है आख़िर में जब टॉइलट में एंट्र करते हैं इतनी मक्खियां और मच्छर, इतनी गंदी बदबू कि कभी कभी शिट करने से पहले ही मुझे उल्टी हो जाती है बहरहाल मक्खियां मच्छर भगाते रहो और किसी तरह शिट कर बाहर भागो।

फिर हाथ अच्छी तरह धो कर ब्रश करता हूँ और नहाने के लिए लाइन में लग जाता हूँ अक्सर आधे घेरे में नंबर आ जाता है खुले में ही 3-4 टेप हैं फर्श धोकर पहले कपड़े धोता हूँ फिर नहाता हूँ 7:30 से 8:00 बजे के क़रीब दलिया या चना आता है उसके लिए फिर से लाइन वही नाश्ता होता है फिर टहलता हूँ फिर आजकल इतनी कड़ी धूप और गर्मी से 10-15 मिनट में ही पसीने से भीग तो बनियान और शर्ट में ही टेप के नीचे बैठ जाता हूँ और अपने फटे कंबल पर चादर बिछाकर छोटी जगह जो आपको मिली है झाड़ पोंछ कर बेड बनाया जाता है पर बैठ जाता हूँ क्योंकि बहुत भीड़ होती है तो लोग सट-सट कर सोते हैं सोशल डिस्टेंसिंग तो भूल ही जाओ। लाइट अक्सर चली जाती तो में तो हर आधे या एक घण्टे पर अपने को भिगाकर आ जाता हूँ। पूरे बदन में घमोरियों से बदन जलता है। फिर लाखों मक्खियां अपने ऊपर मंडराती रहती हैं आप भगाते रहो और 5-10 मिनट के लिए रुक जाओ तो हजारों आपके बदन से चिपक जाएंगी। 11:00 बजे के क़रीब लंच/परेडी खाना आ जाता है फिर लाइन में लग बर्तन/थाली धोकर पानी जैसी दाल और फूलगोभी, लौकी, मूली की उबली सब्ज़ी रोटी के लिए अलग लाइन में लगो। निगलो क्योंकि जीना है पानी के साथ दो-तीन रोटी ही निगली जाती हैं कोरोना की वजह से मुलाक़ात बंद है वरना फल फ्रूट्स आ जाते थे उसी से पेट भर लेता था।

12:00 बजे बैरक फिर बंद हो जाता है एक ही टॉइलट है बैरक में फिर 125-150 बंदी, लाइट ग़ायब, पसीने से भीगते लोगों की गर्म साँसे और पेशाब पसीनों की बदबू वो तीन घण्टे जहन्नम/ नरक से बदतर लगते हैं। पढ़ने की कोशिश करता हूँ पर इतना सफिकेशन होता है कि लगता है कब ग़र्श खाकर गिर जाऊं पानी पीता हूँ ख़ूब। 3:00 बजे बैरक ही खुलते सब बाहर भागते हैं पर 45 डिग्री तापमान आपको बाहर ठहरने नहीं देती। दीवार के पास जहां छाया मिलती है वहिं खड़े होकर मिनट मिनट गिनता हूँ ज़ोहर की नमाज़ फिर से नहाने के बाद ही पढ़ता हूँ 5:00 बजे के क़रीब डिनर आ जाता है लगभग वही कच्ची पक्की रोटी और सब्ज़ी दाल बस निगल कर पेट की भूख किसी तरह शांत करलो 6:00 बजे फिर बैरक बंद हो जाता है नहाने के लिए वो भाग दौड़ होती है कि 10-10 लोग एक साथ नहाने की कोशिश करते हैं बैरक बंद होने के बाद फिर वही सफिकेशन सोने के लिए फिर से जद्दोजहद।

                     

ग़रिब पढ़ने के बाद नॉवेल लेकर बैठ जाता हूँ पढ़ने लेकिन वहाँ इतनी घुटन महसूस होती है जिसे में बयां नहीं कर सकता और अगर लाइट चली जाए तो हम पढ़ भी नहीं सकते क्योंकि यहां बहुत शिद्दत की गर्मी होती आप ख़ुद अपने पसीने से भीग जाएं।

कीड़े/मच्छर आपके जिस्म ओर पूरी रात हमला करते हैं पूरा बैरक मछली बाज़ार की तरह लगता है घुटन इतनी बदबू से कोई खाँस रहा कोई खर्राटे ले रहा कोई हवा खारिज कर रहा कुछ लोग लड़ रहे तो कोई बार-बार पेशाब करने जा रहा अक्सर पूरी रात बैठकर ही गुज़ारनी होती है अगर नींद लगी तो पता चला किसी का हाथ पैर लगने से खुल जाती है फिर बस 5:00 बजे सुबह का इंतज़ार रहता है कैसे बाहर निकलें इस जहन्नुम से किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे कब अपने बच्चों, बीवी, माँ, भाई, बहनों के पास जा पाऊँगा कब कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे पाऊँगा ??

रूपांतरण -अहमद ख़बीर
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