दलितों की दर्दनाक व्यथा कथा है गुना और दरभंगा की घटना

मध्यप्रदेश के गुना, बिहार के दरभंगा और उत्तर प्रदेश के मेरठ में यूं तो हजार मील का राऊंड बनता है। मगर दलितों की दशा और दिशा में कोई अंतर नही आता है। मेरठ में क़त्ल कर दिए गए एक दलित युवक लाश तीन दिन से खुदाई के बाद भी नही मिल रही है। दरभंगा में अभागी ज्योति पासवान के गुनहगार अब तक हत्थे नही चढ़े है।गुना में बच्चों की गोद मे बाप को बिलखते देखने का दर्द बयां नही किया जा सकता है। यह तीनों घटनाये बताती है कि आजादी के बाद भी दलितों के लिए कुछ बदला नही है।

टीसीएन ब्यूरो


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मध्यप्रदेश: गुना में सरकारी अत्याचार के बाद भूचाल 

एक तस्वीर हर तरफ तैर रही है। बाप की गोद मे बच्चें नही है। बच्चों की गोद मे बाप है। बुरी तरह बिलखते। तड़पते और चीख़ते बच्चें। हिम्मत हार चुका। उदास। निराश और ताक़त के आगे चूर-चूर हो चुका बाप अब अपने ही बच्चों के सामने शक्तिशाली होने का भरम खो चुका है। जैसे कि हर बच्चें को लगता है कि उसका बाप बहुत ताक़तवर है।

मध्यप्रदेश के गुना में यह परिभाषा बदल चुकी है। कमज़ोर हो चुके बाप ने टूटी हिम्मत के साए में फसलों के कीड़े मारनी वाली दवाई खा ली है। अंग्रेजी में इसे पेस्टिसाइड कहते हैं। सरकारी लाठी तड़ातड़ ग़रीब की छाती पर पड़ रही है। उस ग़रीब की मेहरारू (पत्नी) सरेआम रुसवा हो रही है। उसकी इज्ज़त की हिफाज़त करने वाले कपडे चीर-चीर हो चुके हैं। ऐसा तब हुआ है जब एक किसान किराए पर ज़मीन लेकर खेती कर रहा था। उसकी फ़सल रौंद दी गई। ज़मीन को कब्जा मुक्त कराने के नाम पर। इसी सप्ताह मंगलवार को सरकारी ज़मीन के टुकड़े से दलित राजकुमार अहिरवार को अलग करने पहुंची पुलिस ने बर्बरता दिखाते हुए पूरे परिवार पर लाठी भांजी,फसल को रौंद दिया। तंग होकर राजकुमार और उसकी पत्नी ने पेस्टिसाइड पी लिया। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री है। विपक्ष पूरी तरह आक्रामक हो गए।राहुल गांधी ने कहा “हम इसी अत्याचार की विचारधारा के खिलाफ है”। मायावती ने भी दलितों के पक्ष में आवाज़ बुलंद की। राजनीतिक बवाल के बाद गुना के डीएम और एसपी को हटा दिया गया। भीम आर्मी के चंद्रशेखर कहते हैं कि यह इतनी दर्दनाक घटना है कि वो सदमे में आ गए।आज़ाद भारत मे गुलामों सा यह बर्ताव दलित विरोधी मानसिकता का परिचायक है।

बिहार: आम चोरी का इल्ज़ाम और दलित की बेटी की बलात्कार के बाद हत्या 

 बिहार के दरभंगा ज़िले में एक पूर्व-सेना अधिकारी के बाग से आम चोरी करने के लिए एक 14 वर्षीय दलित लड़की का कथित रूप से बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई. यह भी इसी सप्ताह हुआ। डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, लड़की सुबह 6 बजे अपने घर से चली गई और जब वह दो घंटे तक नहीं लौटी, तो उसके परिवार के सदस्यों ने उसकी तलाश शुरू कर दी । बाद में, उसका शव पूर्व सेना अधिकारी, अर्जुन मिश्रा के घर के पास एक बाग में मिला।

किशोरी के परिवार के लोग कह रहे हैं कि किशोरी एक पेड़ से आम तोड़ने गई थी जब बाग के मालिक ने उसका बलात्कार किया और उसे मार डाला। स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार, उसके पिता ने आगे आरोप लगाया है कि पुलिस उसकी बेटी की बिजली के झटके से मौत का दावा करके तथ्यों को बदलने की कोशिश कर रही है।

TwoCirles.net से बात करते हुए ज्योति के पिता फेकन पासवान ने शुक्रवार की सुबह बताया कि यह घटना 1 जुलाई की है और इस मामले में दर्ज एफआईआर के मद्देनज़र अभी तक गिरफ्तारी नहीं हूई है. बताया कि जब घर के सदस्य घटना स्थल पर खोजने गए थे जो घर से करीब सत्तर/ पचहत्तर कदम दूर है तो उन्होंने पुर्व सैनिक को पसीने में देखा एवं उसके पत्नी की भी अवस्था कुछ ठीक नहीं थी. पूछताछ करने पर वो लोग बौखला गए. स्थानीय प्रशासन के बिके होने की बात करते हुए पिता फेकन पासवान ने कहा कि ” सब के सब आपस में मिले हुए हैं और मेरा साथ नहीं दिया जा रहा है लेकिन मैं कमज़ोर नहीं हूँ यह लड़ाई मैं लड़ूँगा. मैं किसी के डर से यह लड़ाई मैं छोड़ूँगा नहीं. पासवान पासवान का भी साथ नहीं दे रहा. रामविलास पासवान सहित अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ उनमें उदासीनता ही नहीं बल्कि  असहयोग की चरम सीमा पर खड़े खुद को पाते हुए उनमें आक्रोश भी देखा गया. कहा कि हर चीज़ में दोष ग़रीब पर ही गढ़ा जाता है और ग़रीब को ही झेलना पड़ता है”. उन्होंने कहा कि ” परसों भीम आर्मी के चन्द्रशेखर दरभंगा आए थे उन्होंने कानूनी कारवाई में साथ देने की बात कही है. ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को कागज़ी बताते हुए उन्होंने कहा कि यह सब बस खोखली बातें हैं और इसका ज़मीनी स्तर पर वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है.” बातचीत में फेंकन पासवान नव-भारत के एक ग्रामीण क्षेत्र के साधारण से दिखने वाले असाधारण इंसान दिखे जो भारतीय राजनैतिक परिवेश की कई विडंबनाओं से भली- भांति परिचित दिखे जिसमें एक तरफ़ तंत्र से उदासीनता थी तो उसके दूसरी तरफ़ तंत्र पर आक्रोश ज़्यादा था.

ट्विटर पर कई लोगों ने गलत तरीके से कहा था कि जो लड़की अपने पिता को दिल्ली से घर ले जाने के लिए 1,200 किलोमीटर साइकिल चलाती है, वह वास्तव में यहाँ पीड़ित थी। हालाँकि, यह फर्जी खबर है क्योंकि यहाँ पीड़ित “साइकिल-लड़की” नहीं है, बल्कि दरभंगा की एक और लड़की है।

(बिहार से नेहाल अहमद के सहयोग के साथ)

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