इसरार अहमद, Twocircles.net
दिल्ली। उस्मानपुर के करतार नगर में अपने घर से बच्चों के लिए दूध लेने घर से बाहर निकले मोहम्मद इरफ़ान तीन दिन बाद अपने चाचा के घर ज़ाफ़राबाद में लाश बनकर लौटे। पुलिस ने परिवार से साफ़ कह दिया था कि अगर इरफ़ान का शव करतार नगर अपने घर ले जाया गया तो वहां हिंसा भड़क सकती है। लिहाज़ा शनिवार दोपहर बाद पास के ही वेलकम के क़ब्रिस्तान में इरफ़ान को सुपुर्दे ख़ाक किया गया। इस मौक़े पर काफ़ी भीड़ थी। मातम पसरा था। सबके चेहरों पर मायूसी और ख़ौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था।
जब इरफ़ान को ग़ुसल करान के बाद कफ़न पहना कर जब दफ़नाने के लिए ले जाने की तैयारी चल रही थी तब आख़री बार उनका चेहरा देखने के लिए लोगों का तांता लग गया। उनके जनाज़े के पास खड़ी एक महिला बोली, ”उसके चेहरे पर अलग ही नूर है। ऐसा लगता है जैसे चेहरे पर कुछ चमक रहा है।” जवान मौत पर पसरे मातम के सन्नाटे को चीरते हुए एक शख़्स की आवाज़ आई, ”देखिए उन्होंने इसके साथ क्या किया है। इसके ऊपर तलवार से हमला किया है। क्या क़ुसूर था इसका।” यह बात सुनकर कई और लोग फुसफुसाए, “बहुत ही बेरहमी से मारा है। वो इंसान नहीं हैवान थे।”
बहुत ही दर्दनाक है मंजर
इरफ़ान का जनाज़ा एक छोटे से कमरे रखा है। कमरा काफ़ी संकरा है। शायद स्टोर रूम रहा होगा। उसमें लोहे के दरवाज़े लगे हैं। ये शायद पहले लगाए गए होंगे। किनारे से पानी बह रहा है। थोड़ी देर पहले इरफ़ान की मय्यत को ग़ुसल कराया (नहलाया) गया है। इत्र की खुशबू हर तरफ़ फैली हुई है। इस कमरे में एक ट्यूबलाइट है। रोती-बिलखती महिलाएं हैं। कुछ पुरुष हैं। एक नौजवान का जनाज़ा जिसके सिर पर गहरे जख़्मों के निशान हैं। ये मंजर देख कर आंखो में आसूं आ गए। लोगों का दर्द मसूस किया जा सकता है। इसे शब्दों में बयान करना बेहद मुश्किल है।
बेसुध है इरफ़ान की बीवी, मायूस हैं बच्चे
नक़ाब पहने एक महिला के साथ दो अन्य महिलाएं कमरे में घुसती हैं। वो लड़खड़ा रही हैं। ये इरफ़ान की पत्नी गुलिस्तां हैं। वो आख़िरी बार अपने पति को देख रही हैं, जो अब ख़ून से सनी हुई लाश बन चुका है। इरफ़ान की मौत की ख़बर आने का बाद से ही गुलिस्ता का रो-रोकर बुरा हाल है। हर थोड़ी देर में वो सुध खो बैठती है। उसे संभालने के लिए कुछ महिलाए हमेशा उसके साथ रहती हैं। इरफ़ान के बच्चों को पता है कि अब उनके सिर से बाप का साया उठ चुका है। उनके चेहरों पर ख़ामोशी और मायूसी है।
कैसे हुई इरफ़ान की मौत
हैरानी की बात यह है कि राष्ट्राय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के दौरे के बाद इरफ़ान की हत्या हुई। दंगाइयों ने इरफ़ान को कैसे मौत के घाट उतारा..? इस बारे में पूछने पर एक महिला ने बताया, ”26 फ़रवरी की शाम वो अपने बच्चों के लिए दूध लेने गया था। रास्ते में ही दंगाइयों ने उस पर तलवार से हमला करके मार दिया। इस घटना से थोड़ी देर पहले ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल यहां आए थे और उन्होंने कहा कि डरने की ज़रूरत नहीं है। उनके जाने के बाद यह सब हो गया।” वो महिला आगे पूछती है, “वो कह रहे थे कि हालात क़ाबू में हैं। अगर हालात क़ाबू में थे तो यह सब कैसे हो गया।”
एक और महिला ने बताय, ”वो बाहर से आए थे। वो इरफ़ान को खींच कर दूर ले गए। उन्होंने कई और लोगों को भी मार डाला। आपको पता है हमने इस तरह की हिंसा कभी नहीं देखी। बरसों से हम लोग यहां मिलजुल कर रह रहे हैं। हम दिवाली भी ईद की तरह मनाते थे।” एक और महिला बोली, “पता नहीं यहां के भाईचारे को किसकी नज़र लग गई। यहां पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। अब तो ऐसा लगता है जैसे हवा में नफ़रत का ज़हर घुल गया हो। दिलों में दरार सी पड़ गई है अब तो।”
पड़ोस में रहने वाले नासिर अज़ीम बताते हैं, ”बुधवार शाम घर से करीब 300 मीटर की दूरी पर वो बहुत ही बुरी तरह घायल अवस्था में मिले था। उनके शरीर को बुरी तरह कुचला और काटा गया था। उनका सिर फटा हुआ था।” उन्हेंने बतायि कि इरफ़ान को पास के जगप्रवेश हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उसी दिन उनकी मौत हो गई।
तीसरे दिन मिली लाश
इरफ़ान की मौत 26 फ़रवरी की शाम को हुई थी। उनकी लाश तीसरे दिन 29 फरवरी को मिली है। वो भी इस शर्त परकि उसे उसके घर करतार नगर नहीं ले जाया जाएगा। इरफ़ान के 37 वर्षीय चचेरे भाई गुलज़ार अहमद बताते हैं, “हम तीन दिन से शव मिलने का इंतज़ार कर रहे थे। शनिवार दोपहर एक बजे पुलिस से काफ़ी बहस करने के बाद शव मिल पाया। हम उसे लेकर यहां चाचा के घर आए हैं। पुलिस का कहना था कि करतार नगर में इरफ़ान का शव जाने से हिंसा भड़क सकती है। कैसी बदनसीबी है कि हम आख़िरी बार अपने भाई को उसके घर भी नहीं ले जा पाए।”
कौन थे इरफ़ान..?
हिंसा में मारे गए मोहम्मद इमरान कौन थे और क्या करते थे, यह पूछने पर एक महिला कहती है, “ वो महज़ 27 साल के थे। वो मज़दूरी करता थे। स्कूल बैग बनाने के लिए कपड़े काटने का काम करता थे। छह महीने पहले उन्होंने अपनी छोटी बहन की शादी के लिए काफ़ी क़र्ज़ लिया था। वो अपनी पत्नी, दो बच्चों और बूढ़े मां-बाप के साथ रहते थे। वो उस्मानपुर इलाक़े में एक कमरे में किराए पर रहते थे। इरफ़ान अपन परिवार मे खेले कमाने वाले थे। उनका दर्दनाक मौत के बाद उनके परिवार के सामने रोज़ी रोटी का संकट पैदा हो गया है।
बुरा हाल है मां, बहन वीबी और बच्चों का
इन सब के बीच इरफ़ान की मां क़ुरैशा के चेहरे पर ख़ालीपन साफ़ दिखता है। इरफ़ान की मां एक छोटे से हॉल में दूसरी महिलाओं से घिरी बैठी हैं। क़ुरैशा के पाँच बेटे और दो बेटियां हैं। इरफ़ान की बहन सलमा लगातार रोए जा रही हैं। उनके बग़ल में इरफ़ान की बीवी गुलिस्ता बैठी हैं। वो कहीं खोई हुई हैं। ऐसा लगता है उनकी आंखें पथरा गईं हैं। एकदम बेसुध बैठी। इरफ़ान के दोनों बच्चे दरवाज़े के पास खड़े हैं। बड़ा बच्चा मोबाइल में कुछ खेल रहा है। बड़े की उम्र पाँच और छोटे की तीन साल है। उन्हें मौत का अंदाज़ा नहीं है। उन्हें इस तरह की मौत का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है।
इंसाफ चाहती हैं इरफ़ान की मां क़ुरैशा
क़ुरैशा कहतीं हैं, ”हम दंगा नहीं चाहते, हम इंसाफ़ चाहते हैं।” उन्होंने शुक्रवार को उस्मानपुर पुलिस स्टेशन में शिकायत तो दर्ज करवाई है। लेकिन उन्हें पुलिस से किसी तरह की उम्मीद नहीं है। क़ुरैशा कहती हैं, ”उन्होंने उसका सिर कुचल दिया। उसकी क्या ग़लती थी।”
क़ुरैशा बार-बार उस रात के ख़ौफ़नाक मंज़र को याद करती हैं। शाम के साढ़े सात बजे थे। इरफ़ान दूध लेने बाहर गया था। बहुत देर तक वो नहीं लौटा। बाद में पता चला कि भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। परिवार ने बाहर शोर सुना और जब तक कुछ कर पाते बीच सड़क पर इरफ़ान औंधे मुंह पड़ा हुआ मिला। भीड़ वहां से भाग चुकी थी। वो उस शाम के वाक़िये को बार-बार दोहराती हैं। वो कहती हैं, ”सच लिखना। लिखना कि एक बेक़सूर को मार डाला गया। इरफ़ान के पिता दिल के मरीज़ हैं।”
इरफ़ान अपने परिवार में रोज़ी-रोटी कमाने वाले इकलौते शख़्स थे। क़ुरैशा कहती हैं, ”अब हम क्या करेंगे। कैसे जिएगें। इरफ़ान के बीवी कैसे काटेगी अपनी पहाड़ जैसी ज़िंदगी। कैसे पलेंगे उसके बच्चे।” जब वो रोते हुए ये सवाल पूछती है तो उसकी चीख़ नुमा आवाज़ सुंई की तरह दिल में चुभती है। उनके सवाल फ़िज़ाओं में जवाब के इंतज़ार में घूम रहे हैं।
इरफ़ान के घर के बाहर बाहर दंगा नियंत्रण वाहन खड़ा है। खाकी वर्दी में पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों के जवान दंगा रोकने में इस्तेमाल होने वाले हथियारों से लैस होकर हर तरफ़ खड़े नज़र आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस हालात अब सामान्य होने का दावा करके रही है। लेकिन जिस तरह पुलिस और सुरक्षाबलों की तैनाती है, उसे देखकर लगता है कि ये हालात अभी काफ़ी तनावपूर्ण हैं।
शाम पाँच बजे इरफ़ान का जनाज़ा उठा। घर की महिलाओं को रोता-बिलखऱता छोड़कर पुरुष जनाज़ा उठा लकर गए। थोड़ी देर बाद वेलकम क़ब्रिस्तान में इरफ़ान को दफ़ना दिया गया। कुछ ही मिनटों में एक नई क़ब्र तैयार हो गई। बाहर अंधेरा छा रहा है। हम क़ब्रिस्तान से बाहर निकले तब तक सूरज ढल चुका था। अंधेरा लगातार गहरा होता जा था। बाहर निकलते हुए एक बुज़ुर्ग ने कहा, “जल्दी घर चलो। हालात अच्छे नहीं है। रात होने वाली है। अब तो यहां तो हर रात क़्यामत की रात है।“ हर रात क सुबह होती है। इस रात की भी होगी। इसी उम्मीद के साथ हमने भी वहां से विदा ली।