आसमोहम्मद कैफ़।Twocircles.net
दिल्ली। भजनपुरा मज़ार अब करावलनगर का गेटवे है। मज़ार जला दिया गया था लेकिन उम्मीद तो अभी तक जिंदा है। इसलिए अक़ीदतमंद यहां जुट रहे हैं।
इनमें सुनीता और रुख़साना दोनों है। यहां करावलनगर, चांदबाग़ और शिव विहार की तरफ़ रास्ता जाता है। भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट यहां से आम आदमी पार्टी के दुर्गेश पाठक को हराकर चुनाव जीते है। इससे पहले कपिल मिश्रा इसी विधानसभा से चुनाव जीते थे। ब्राह्मण और गुर्जरो के वर्चस्व वाले इस इलाक़े में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चिन्हित हिंसा को लेकर सवाल उठ रहे है। करावलनगर में मुसलमानों के ख़िलाफ़ समूहबद्ध हिंसा के डरावने निशान मिलते हैं। यह हिंसा 24 और 25 फरवरी को हुई।
करावलनगर में अभी भी पुलिस सिर्फ महत्वपूर्ण लोगो को अंदर जाने की अनुमति दे रही है। हमें भी गाड़ी छोड़ने की हिदायत दी गई। पैदल जाने के लिए मना नही किया गया। करावल नगर की शुरुआत में ही कपिल मिश्रा का ‘हेडक्वार्टर’ है।फ़िलहाल इसमें सील लगा दी गई है और इसकी सुरक्षा में 8-10 जवान बंदूक लिए खड़े हैं। दरअसल यह ‘हेडक्वार्टर’ यहां के पार्षद ताहिर हुसैन का चर्चित चार मंज़िला घर है। हमारे साथ में चल रहे वसीम ने हमें बताया है कि कपिल मिश्रा ने विधायक रहते समय इसी जगह को अपना कार्यालय बनाया था। कपिल मिश्रा का चुनाव भी यहीं से लड़ा गया था। कपिल मिश्रा और ताहिर हुसैन में गहरी दोस्ती थी। बीजीपी में जाने के बाद बाद से दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। अब जो बिल्डिंग कल तक कपिल मिश्रा का ‘हेडक्वार्टर’ कही जाती थी उसे ताहिर हुसैन का दंगा हेडक्वार्टर कहा जा रहा है। यही बात हमनें यहाँ खड़े एक अन्य व्यक्ति से पूछ ली तो उन्होंने पुष्टि की और कहा “दोनों यार थे जी! जो भी करते थे मिलकर करते थे!(कपिल मिश्रा,ताहिर हुसैन)।”
खैर! मुंगानगर में 23 साल की मल्लिका फ़रहत अपने 55 साल के अब्बा के साथ इसी बिल्डिंग के सामने एक पूरी तरह जल चुकी दुकान में टूट चुके अपने बाप को सहारा दे रही है। मल्लिका के पिता मुहम्मद यूसुफ यहाँ प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के नाम से एक दवाइयों की दुकान चलाते थे। मल्लिका कुछ भी नहीं बोलती वो कहती है, “मैं क्या कहूँ अब मेरी तो सब दोस्त हिन्दू हैं। हम साथ में पढ़ते हैं। मेरे कॉलेज का नाम माता सुंदरी कॉलेज है। सोमवार को दिन भर पापा ने बचाने की जद्दोजहद की। उनसे कहा कि वो अब निकल सके वो जान बचाकर निकल गए। उसके बाद यहां आग लगा दी गई। मल्लिका के पिता यूसुफ़ कहते हैं, “किसी की नही सुनी। इन दंगाइयों का कोई मज़हब नही! ये ना हिन्दू है और न मुसलमान। बस मुझे एक तसल्ली है मेरा घर यहाँ नही था वरना वो भी जला दिया जाता। मोहम्मद यूसुफ़ मुस्लिम बहुल इलाके ज़ाफराबाद में रहते हैं।
मजीद नाम का एक स्टूडेंट यहां रुक जाता है। हमारे पास आकर हमारी बात सुनता है। फिर अपनी बात कह देता है, “सर, आगे ज़रूर जाना। आप वो देखेंगे जो आपने कभी सोचा नही होगा। रोंगटे खड़े हो जाएंगे आपके। मेरी दुकान भी जला दी गई हैं। आगे का टीवी चैनल कुछ दिखा नही रहे हैं। सब टारगेट सेट फ़ायर हुआ है टीवी तो रबड़ की ग़ुलेल में उलझा हुआ है। आगे इंसानों पर एकतरफ़ा हमला हुआ है। वॉर ज़ोन बन गया था यहां। अब तक लाशें नहीं गिन पा रहे लोग। चुन-चुन निशाना बनाए गए हैं लोग। एक गली में चार घर अल्पसंख्यक समुदाय के है तो वो चारों राख हो गए। बहुसंख्यक आबादी वालो के घरों पर आंच आई तो इन्होंने ही बुझा दी। सर प्लीज़ आगे जरूर जाना।”
आगे जाने पर जन्नती मिलती है। दो जवान बेटियों की उदास मां। 35 गज़ ज़मीन में बने उसके तीन मंजिले मकान में अब बैठने की एकमात्र साफ जगह सफेद पत्थर की सीढ़ी ही बची है। वो कहती है “बेड-वेड, कुर्सी-वुरसी, सोफा सब ख़ाक हो चुका है।सिलेंडर में आग लगाकर घर मे फेंक दिया था। हमारे मकान की छत के रास्ते आएं थे। मेरी बेटी की चूड़ियां बिखरी पड़ी है ऊपर। शादी करनी थी उसकी। सब लूट के ले गये। ज़ालिम, शैतान लुटेरे छत से आए थे। घर के पीछे उनके घर हैं। हमारा पूरा घर खंडहर हो चुका है। दिल भी खंडहर हो चुका है। अपनी बातचीत में जन्नती बदहवास सी बार-बार कहती है, “मेरी बेटी की शादी थी। सब लूट के ले गए। सब लूट के ले गए, “कुछ नही बचा। घर जला दिया। सब लूट के ले गए। पुलिस बुलाने से भी नही आई।
करावलनगर की इस गली नम्बर चार में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की टीम भी पहुंची है।
टीम के सदस्य गली के अंदर ख़ाक में मिले दिये गए मकानों के बाहर खड़ी महिलाओं से बात कर रहे हैं।
अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य आतिफ़ रशीद बेतहाशा रो रही अफ़साना को दिलासा दे रहे हैंं।बर्बाद हो चुकी अफ़साना का घर ख़त्म हो चुका है।बिल्कुल ख़त्म। काली दीवारें बर्बादी की दास्तां सछन रहीं हैं। यह वही गली है जिसमे बीएसएफ के जवान का घर भी जला दिया गया।
यहां आतिफ़ रशीद जब इनकी बात सुन रहे हैं तो पास ही कि गली नंबर पांच से पत्थर आता है। शोर मचता है, “सर, देखिए आपके सामने भी पत्थर आ रहे हैं।”
आतिफ़ रशीद के साथ पूरे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की टीम है। भारी तादाद में पैरामिलिट्री है।दिल्ली पुलिस है। फिर भी पत्थर ….आतिफ़ एसएचओ पवन कुमार से कहते हैं, “यह क्या है? हमारे सामने भी पत्थर आ रहे हैंं। स्थिति सामान्य कैसे है? फिर दौड़ कर पुलिस आती है। पता चलता है पत्थर गली नम्बर पांच की एक छत से आया है!हम सभी गली नम्बर चार में है। फ़िरोज बताते हैं “सर, गली नंबर 3 और गली नम्बर 4 पूरी तरह जल चुकी हैं। ये दोनों गलियां मुहलमानों की हैंं। इनमे इक्का-दुक्का घर ही हिंदुओ के हैं। उनका कुछ नही बिगड़ा है। बाहर सड़क पर सिर्फ़ एक वर्ग के लोगो की दुकानें जली हुई है। यहां मुस्लिम समुदाय इन्हीं दो गलियों में रहता है।”
फ़िरोज की बात की बात की तस्दीक़ गली नम्बर 3 में हृदेश कुमार शर्मा का घर करता है। जिसकी नेमप्लेट पर दिल्ली पुलिस इंस्पेक्टर लिखा हुआ है।इसपर आंच भी नही आई है। इसी के पास वाली गली 4 में बीएसएफ के जवान वाला घर जलाया जा चुका है। नाम तो उस पर भी लिखा हुआ था। कमाल यह है कि गली नंबर 1,2 और पांच में सिर्फ गली नम्बर 3 और 4 में आगजनी हुई है। जिन गलियों में आगजनी नही हुई उनमें मुस्लिम समाज के लोग नहीं रहते।
गली नंबर पांच में ‘सम्राट’ रहते हैं। इसका नाम सम्राट विहार है। इसी के किनारे सड़क पर अमन शोरूम भी ख़ाक हो चुका है। यहां खड़े माजिद कहते हैं, “पैसे वाला मुसलमान सबसे ज्यादा आंख में खटकता है। अच्छा कारोबार था। कई करोड़ का नुक़सान हो गया बेचारे का!”
शोरूम के बाहर खड़े हुए ट्रक में जली हुई बाइक का मलबा भरा जा रहा है। पास में ही सम्राट कॉलानी के लोग यहां तैनात आरएएफ के जवानों को पूरी सब्जी खिला रहे हैं। मैले कपड़े वाला 13 साल का एक बच्चा धीरे से बात कर रहा है। वो कहता है इन्हीं लोगों ने आग लगाई और अब पुलिसवालों को खाना खिला रहे हैं।