आस मोहम्मद कैफ़, Twocircles.net
बुलंदशहर। पिछले कुछ सालों में देश मे गंभीर समस्या पर चर्चा हो रही है। समस्या यह है हिन्दू मुस्लिम समुदाय ऐसी मिश्रित आबादी में रहने से बच रहे हैं जहां एक ही समुदाय की संख्या ज्यादा हो। मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के बाद दिल्ली के शिवविहार में अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हुई योजनाबद्ध हिंसा के बाद प्रत्येक समुदाय अलग अलग रहना ही पसंद कर रहा है। देश के सामाजिक ताने बाने के लिए यह बेहद ही ख़तरनाक बात है।
नफ़रत के पैरोकारों के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी है। मगर विशाल भारत देश मे एक दो ऐसी घटना सामने आ ही जाती है तो नफ़रत को करारा तमाचा जड़ देती हैंं और अपने ही देश मे सामाजिक बंटवारे की इस योजना में पलीता लगा देती हैंं। आदर, सम्मान और कर्तव्य से परिपूर्ण बुलन्दशहर की ऐसी ही सुखद घटना की देश भर में तारीफ़ हो रही है।
यहां यह हुआ कि जब मुसलमानों के मौहल्ले में रहने वाले हिन्दू पड़ोसी रविशंकर की मौत के बाद कोरोना के डर के चलते उनका कोई रिश्तेदार अंतिम संस्कार करने नही आया तो मुसलमानों ने तमाम ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। अर्थी बनाई। कंधो पर उठाया। राम नाम सत्य है के नारे लगाए। अंतिम संस्कार कर दिया।
बुलंदशहर के मुस्लिम बहुल आनंद विहार में 52 साल के रविशंकर की शनिवार को बीमारी से मौत हो गई थी। उनके बेटे ने अपने सभी रिश्तदारों और परिवार वालों को इससे अवगत कराया। कोरोना के डर के चलते सगे रिश्तेदार और परिजन भी रविशंकर के घर नही आए।
पड़ोसी बाबू खां के मुताबिक पहले तो हम लोगो ने इंतेजार किया और मगर जब कोई नही आया तो मौहल्ले के लोगो ने मशवरा कर आपस मे तय किया कि यह ज़िम्मेदारी उन्हें ही निभानी होगी। रविशंकर के परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर भी है।
ज़ाहिद अली के अनुसार मुसलमानों ने तुरंत आपस मे चंदा कर पैसा इकट्ठा कर लिया और रविशंकर के बेटे विनीत को कहा कि वो परेशान न हो सिर्फ प्रक्रिया पूरी कराने का काम करें। इसके बाद मुसलमानों ने सभी सामग्री मंगवाई। अर्थी बनवाई और कंधा भी दिया।
एक और पड़ोसी इकराम अहमद के अनुसार रवि शंकर की अंतिम यात्रा में चलने वाले रविशंकर के बेटे के अलावा बाकी सभी मुसलमान थे। नईम कहते हैं रास्ते में उन्होंने महसूस किया कि कोई भी ‘राम नाम सत्य है’ नही कह रहा है। जबकि हिन्दू शवयात्रा में यह कहा जाता है तो उन्होंने ज़ोर ज़ोर से राम नाम सत्य है कहना शुरू कर दिया। इसके बाद सभी ने यह कहा। नईम ने बताया कि सबसे खास बात यह है कि रविशंकर की अंतिम यात्रा में लगभग सभी मुसलमानों ने गोल टोपी लगाई हुई थी। इनमें ऐसे लोग भी थे जो टोपी नही लगाते मगर उन्हें मुसलमान ही समझा जाये इसलिए खासकर टोपी पहनी गई। लोग हैरत से देख रहे थे मुसलमान हिन्दू की शवयात्रा ले जा रहे हैं और राम नाम सत्य है भी कह रहे हैं।
रविशंकर को उनके बेटे ने मुखाग्नि दी। तमाम प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद ही मुसलमान काली नदी स्थित शमशान घाट से विनीत के साथ ही घर लौटे।इसके तुरंत बाद यह मामला बुलंदशहर में सराहना का सबब बन गया।
बुलंदशहर के राजेश शर्मा के मुताबिक रविशंकर के घर लॉकडाउन के चलते उनके रिश्तेदार परिजन नही पहुंच पाए थे। स्थानीय मुसलमानों ने मानवता का नायाब नमूना पेश किया इससे बुलंदशहर में ही नही बल्कि देशभर में बेहद अच्छा संदेश चला गया।
ग़ौरतलब है कि जुलाई 2017 में मुजफ्फरनगर के खतौली में भी चार तीर्थयात्रियों को कंधा देने पर खतौली के मुसलमानों की देश भर में तारीफ हुई थी। यह तीर्थयात्री शाकुम्भरी देवी के दर्शन कर लौट रहे थे। खतौली के अजय जनमेजय के अनुसार के अनुसार जब उन्होंने बुलंदशहर की यह घटना सुनी तो उनकी आंखों के सामने खतौली का मंजर आ गया और वो नम हो गई। वो बुलंदशहर के उन सभी मुसलमानों को नमन करते हैं जिन्होंने रविशंकर की धार्मिक आस्था को सम्मान दिया।
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सड़क पर कुचले गए चार तीर्थयात्री, मुसलमानों ने दिया अर्थी को कंधा
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