दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ज़फ़रुल इसलाम पर देशद्रोह का मुक़दमा, सवालों के घेरे में दिल्ली पुलिस

यूसुफ़ अंसारी

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफ़रूल इसलाम ख़ान के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया है। ख़ान पर आरोप है कि उन्होंने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में भड़काऊ टिप्पणी की थी। स्पेशल सेल के संयुक्त आयुक्त नीरज ठाकुर के मुताबिक़, जफ़रूल इसलाम ख़ान के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) और 153ए (दो समुदायों के बीच में द्वेष बढ़ाना आदि) के तहत गुरुवार को मुक़दमा दर्ज किया गया है।


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पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक़ ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान के ख़िलाफ़ दिल्ली के वसंत कुंज में रहने वाले एक शख़्स की शिकायत के आधार पर एफ़आईआर दर्ज की गई है। शिकायत में इस शख़्स ने आरोप लगाया है कि ख़ान ने ट्विटर और फ़ेसबुक पर एक टिप्पणी की थी, जो भड़काऊ थी और समाज के सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने के उद्देश्य से की गई थी।

दरअसल इस मामले के तूल पकड़ने की शुरुआत ज़फरुल इस्लाम ख़ान की 28 अप्रैल को लिखी एर फेसबुक पोस्ट से हुई थी। उस पोस्ट में उन्होंने भारतीय मुसलमानों का साथ देने के लिए कुवैत का शुक्रिया अदा किया था। उन्होंने कहा था कि जिस दिन भारत के मुसलमान उनके ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों की शिकायत अरब देशों से कर देंगे, उस दिन ज़लज़ला आ जाएगा। उनकी इस पोस्ट पर मीडिया और सोशल मीडिया में ख़ूब बवाल मचा। कई मुस्लिम संगठनो ने भी उनके इस बयान का विरोध करते हुए पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।

चौतरफ़ा आलोचना से घिरे ज़फरुल इस्लाम ख़ान ने शुक्रवार को फेसबुक प्रोफ़ाइल पर नई पोस्ट लिख कर अपनी पिछली पोस्ट पर सफाई दी और साथ ही माफ़ी मांगी। उन्होंने कहा कि उनका ट्वीट असंवेदनशील था और यह ग़लत समय पर किया गया था। इसी इस वजह से कुछ लोगों को दुख पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हालांकि ऐसा करने का उनका कोई इरादा नहीं था। ख़ान ने कहा कि उनके द्वारा कही गई बातों को मीडिया के एक वर्ग ने तोड़-मरोड़कर पेश किया है और इस बारे में उन्होंने कुछ न्यूज़ चैनलों को लीगल नोटिस भेजा है।

ज़फरुल इस्लाम ख़ान के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुक़दम दर्ज दिल्ली पुलिस सवालों के घेरे में आ गई है। यब वही दिल्ली पुलिस ने जिसने फरवरी में दिल्ली में हुई हिंसा के लिए ज़िम्मेदार समझे जाने वाले भाजपा नेताओं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा, भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले आम आदम पार्टी के पूर्व विधायक कपिल मिश्रा और एक अन्य भाजपा विधायक के ख़िलाफ़ दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद एफ़आईआर दर्ज नहीं की थी। इन सभी पर बेहद भड़काऊ बयान देने के आरोप हैं। इनके खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज नहीं करने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कनिश्नर को भरी कोर्ट में फटकार भी लगाई थी।

अब जबकि कोरोना वायरस के चलते देश में लाकडाउन है तो दिल्ली पुलिस चुन-चुन कर नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ़ आंदोलन मे शामिल रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ धड़ाधढ़ मुकदमे दर्ज करके उनकी गिरफ़्तारी कर रही है। तबलीग़ी जमात के  प्रमुख मौलाना साद के ख़िलाफ़ गंभीर धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है। पिछले कुछ दिनों में ही दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा मामलो में आप के निलंबित किए गए पार्षद ताहिर हुसैन पर रासुका लगाया है। शऱजील इमाम पहले से रासुका के तहत जेल में है। उमर ख़ालिद पर यूएपीए के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता सफूरा जरगर को भी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया है।

क्या सोशल मीडिया पर पोस्ट करना राजद्रोह के मुकदमे का आधार बन सकता है?

दरअसल दिल्ली पुलिस ने ज़फ़रुल इस्लाम पर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज़ करके राजद्रोह पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। क्या सिर्फ सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर देना राजद्रोह के मुक़दमे का आधार बन सकता है? क्या सिर्फ फ़ेसबुक पर कुछ कथित तौर पर ‘’भड़काऊ’ पोस्ट कर देने से ही राजद्रोह हो जाता है? दिल्ली पुलिस के इस क़दम से ऐसे तमाम गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यहां इस बात को समझ लेना बहुत ज़रूरी है कि ख़ान के ख़िलाफ़ किस आधार पर राजद्रोह की धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया है।

दिल्ली पुलिस ने राजद्रोह का क्या आधार बनाया?

दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ दिल्ली के वसंत कुंज में रहने वाले एक शख़्स की शिकायत के आधार पर एफ़आईआर दर्ज की गई है। शिकायत में इस शख़्स ने आरोप लगाया है कि ख़ान ने ट्विटर और फ़ेसबुक पर एक टिप्पणी की थी, जो भड़काऊ थी और समाज के सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने के उद्देश्य से की गई थी।

जफ़रुल इस्लाम ने क्या कियाहै?                                                                                                 

ख़ान ने 28 अप्रैल को एक पोस्ट लिखी थी जिसमें उन्होंने भारतीय मुसलमानों का साथ देने के लिए कुवैत का शुक्रिया अदा किया था। उन्होंने कहा था कि जिस दिन भारत के मुसलमान उनके ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों की शिकायत अरब देशों से कर देंगे, उस दिन ज़लज़ला आ जाएगा।

धारा 124 (ए) में क्या है?

ज़फ़रुल इस्लाम के ख़िलाफ़ धारा 124 (ए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। धारा 124 (ए) में क्या लिखा हुआ है। इसे समझते हैं। इसमें कहा गया है कि

जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा, या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा, या अन्यथा, विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घॄणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करेगा, या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

आपको बता दें कि केदारनाथ सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि 124 (ए) के तहत किसी के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला तभी बनता है जबकि किसी ने सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा की हो या हिंसा के लिए उकसाया हो।

1995 का मामला था दो लोगों का, जिन पर आरोप था कि उन्होंने ‘ख़ालिस्तान ज़िंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाए थे। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि केवल नारे लगाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता क्योंकि उससे सरकार को कोई ख़तरा पैदा नहीं होता।

इस कसौटी पर बेहद कमज़ोर है ज़फ़रुल इस्लाम पर राजद्रोह का मामला

तो सवाल यह उठता है कि ज़फ़रुल इसलाम के पोस्ट से क्या हिंसा भड़की है या क्या हिंसा के लिए उकसाया गया है? क्या इस पोस्ट से सरकार के लिए ख़तरा पैदा हो गया है?

ज़फ़रुल इस्लाम ने जिस ‘ज़लज़ले’ की बात अपन पोस्ट में की है अगर उसे यदि हिंसा मान लिया जाए तो सवाल है क्या उनके ऐसा कह देने से हिंसा हो गई है या उसके लिए किसी को भड़काया गया है? इसका साफ़ उत्तर है नहीं, ऐसा नहीं हुआ है और न ही ऐसा होने की आशंका है।

इस्लाम एक तीसरे देश की बात करते हैं। उनके ऐसा कहने से किसी देश ने हिंसा नहीं की है और न ही यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है वह भड़क कर हिंसा करेगा। ऐसे में ज़फ़रुल इस्लाम पर कम से कम राजद्रोह का मामला तो नहीं बनता।

 

 

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