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व्हाट्सएप ग्रुप का कमालः ‘हेल्प फॉर नीडी’ ने 50 दिन में 7300 जरूरतमंद परिवारों को बांटे राशन पैक

आस मोहम्मद कैफ।Twocircles.net

सहारनपुर। गरीबों की मदद करने के लिए सहारनपुर में कुछ जागरूक लोगों की पहल देशभर के लिए मिसाल बन गई है। इनके बनाए व्हाट्सऐप ग्रुप ‘हेल्प फॉर नीडी’ ने ग़रीबों को राशन पहुंचाने का अभियान चलाया तो अनेक लोगों ने मदद को हाथ बढ़ाया और देखते ही देखते यह अभियान नज़ीर बन गया। इन गैर राजनीतिक लोगों ने अब 7300 राशन किट बांटी है साथ ही 500 गरीब रोगियों का इलाज भी कराया है। सहारनपुर और आसपास के इलाकों में इस ग्रुप और इससे जुड़े लोगों की जमकर तारीफ़ हो रही है।

‘कोविड 19: हेल्प फॉर नीडी’ व्हाट्सऐप ग्रुप की शुरुआत पत्रकार एम. रियाज़ हाशमी ने की थी। इस ग्रुप ने 500 से अधिक ग़रीब मरीजों को विभिन्न चिकित्सकों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए परामर्श कराकर ज़रूरी दवाईयां भी घर बैठे निशुल्क उपलब्ध कराई हैं। सबसे खास बात ये है कि ग्रुप में सभी मध्यमवर्गीय लोगों ने रोज़ाना थोड़ा-थोड़ा अंशदान देकर मदद के इस अभियान को रुकने नहीं दिया और पूरा अभियान पारदर्शिता के साथ चलाया गया।

रियाज़ हाशमी के मुताबिक़ लॉकडाउन के अगले दिन उन्होंने स्वयं कुछ राशन ख़रीदकर ज़रूरतमंदों को बांटना शुरू किया, लेकिन इस दौरान लोगों की परेशानियां देखकर उन्होंने अपने कुछ दोस्तों से चर्चा कर ‘कोविड 19: हेल्प फॉर नीडी’ व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिसमें सभी से सहयोग की अपील की तो अभियान शुरू हो गया। थोक के भाव हर रोज राशन ख़रीदना और रात में पैकिंग कर उसे अगले दिन ज़रूरतमंदों में वितरित करने का यह काम निरंतर 50 दिन से चलता आ रहा है। प्रतिदिन औसतन 100 से अधिक राशन पैकेट्स ज़रूरतमंदों में बांटे जाने लगे। फील्ड में राशन वितरित करने वाली टीम के अलावा ग्रुप के सदस्य ज़रूरतमंदों की सूची आपस में शेयर करते हैं। इस ग्रुप में पत्रकार, बैंककर्मी, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, उद्यमी, उद्यमी और दूसरे नौकरीपेशा लोग जुड़े हैं।

रियाज़ बताते हैं कि वितरण के दौरान ही ऐसे लोग मिले जो ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और हृदय रोगों से ग्रसित हैं लेकिन पैसे न होने के कारण वे दवाईयां खरीदने या उपचार कराने में सक्षम नहीं थे। ग्रुप से जुड़े  डाक्टर कलीम अहमद व डाक्टर अंकुर उपाध्याय ने राशन वितरण व्यवस्था में सहयोग के अलावा ऐसे रोगियों को वीडियो कॉलिंग के जरिए चिकित्सा परामर्श उपलब्ध कराया और इन्हें घर बैठे ‘हेल्प फॉर नीडी’ टीम ने निरंतर दवाईयां उपलब्ध कराईं। डॉक्टर विवेक बैनर्जी ने रोगी शिशुओं को परामर्श और दवाईयां उपलब्ध कराई। साथ ही अपनी ओर से राशन भी उपलब्ध कराया। सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी एन.के. बंसल, व्यवसायी नवीन कुमार वर्मा, निर्यातक मज़हरुल इस्लाम चांद, आईटी विशेषज्ञ अंकित माथुर और एडवोकेट संजय अरोड़ा ने वित्त व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को निभाया। इंडसइंड बैंक की कॉमर्शियल शाखा के प्रबंधक ज़ाकिर अंसारी और टीवी पत्रकार ख़ालिद हसन के साथ पत्रकार अमित गुप्ता, उमैर हाशमी व अबलीश गौतम ने रोजाना सुबह 7 से शाम 7 बजे तक राशन पैकेट्स वितरण की ज़िम्मेदारी को संभाला।

राशन पैकिंग के दौरान सैनेटाइजिंग, सोशल डिस्टेंसिंग और सफाई व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा गया और उमैर हाशमी के नेतृत्व में रिहान अहमद, आमिर, अब्दुल्ला खान, फ़ैज़ान अंसारी, उबैद शाहिद, मनीष कच्छल, शारिक अंसारी और दुष्यंत कुमार आदि युवाओं की टीम ने इस अभियान में हर रोज राशन की पैकिंग को बखूबी अंजाम दिया। अभियान की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों, वर्गों के वास्तविक ज़रूरतमंदों तक राशन सामग्री पहुंचाई गई और इनमें भी अधिकांश विधवा महिलाएं, दिव्यांग परिवार और रिक्शा चालक या दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों को प्राथमिकता दी गई। इस ग्रुप पर हालांकि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को भी जोड़ा गया, लेकिन शासन या प्रशासन से सिवाय राशन विक्रय की अनुमति के कोई आर्थिक या राशन के रूप में सहयोग नहीं लिया गया।

राशन पैक में यह रही सामग्री

जरूरतमंदों को वितरित किए जाने वाले राशन पैक में पांच किलो आटा, दो किलो चावल, एक किलो चीनी, एक किलो मिक्स दाल या चना-सोयाबीन वड़ी, 200 ग्राम चाय की पत्ती, मसाले, नमक, आधा लीटर रिफाइंड या सरसों का तेल, मिल्क पाउडर, बच्चों के लिए बिस्किट या मैगी, दो किलो आलू व एक किलो प्याज आदि सामग्री है। शुरूआत में प्रति पैक की कीमत 650 रुपये रही, लेकिन बाद में व्यवस्थित कर इस कीमत को 500 रुपये प्रति पैक किया गया। खालिद हसन ने बताया कि यदि ग्रुप में किसी ने एक परिवार के लिए भी राशन उपलब्ध कराया तो हमने उसे एकत्र किया और जरूरतमंद परिवार तक पहुंचाया।

ग्रुप में सहयोग का भी अनूठा अंदाज देखने को मिला

‘कोविड 19: हेल्प फॉर नीडी’ व्हाट्सऐप ग्रुप में ज़रूरतमंदों की मदद करने और कराने का तरीक़ा भी अनूठा है। ज़रूरतमंदों को सहयोग करने और कराने के बाद या तो सदस्य दूसरे लोगों को जोड़ने का प्रस्ताव करते हैं या ग्रुप से विदा हो जाते हैं। नए लोग जुड़ते हैं और यही सिलसिला चलता रहता है। जो लोग ग्रुप में बने रहते हैं, वे निरंतर किसी न किसी रूप में सहयोगी की भूमिका में हैं। 150 से 200 सदस्य ग्रुप में रखे जाते हैं, जिनकी उपयोगिता सुनिश्चित की जाती है। ग्रुप में ही प्रत्येक मामले पर चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लिया जाता है।