यूसुफ़ अंसारी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अज़ान को लेकर एक बड़ा फ़ैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अज़ान इस्लाम का अहम हिस्सा है, लेकिन लाउडस्पीकर से अज़ान इस्लाम का हिस्सा नहीं है। गाज़ीपुर से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सांसद अफ़ज़ाल अंसारी की अज़ान पर रोक के ख़िलाफ़ दाख़िल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फ़ैसला सुनाया है। इस मामले में 05 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई हुई थी। उसके बाद कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर समेत तीन ज़िलों की मस्जिदों में अज़ान पर रोक के मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है। दरअसल गाज़ीपुर, हाथरस और फ़र्रुखाबाद के डीएम ने मौखिक आदेश से इम ज़िलों की तमाम मस्जिदों में अज़ान पर पाबंदी लगा दा थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़िलाधिकारियों के आदेश को रद्द करते हुए मस्जिदों से अज़ान की इजाज़त तो देदी लेकिन अज़ान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अज़ान इस्लाम का जरूरी हिस्सा हो सकता है लेकिन लाउडस्पीकर से अज़ान इस्लाम का हिस्सा नहीं हो सकता। ज़िला प्रशासन किसी भी हालत में रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं दे सकता।
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शुक्रवार को जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच ने कहा कि मुअज़्ज़िन बग़ैर किसी लाउडस्पीकर या अन्य उपरकण के अपनी आवाज़ में मस्जिद से अज़ान दे सकता है। कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए जारी राज्य सरकार के दिशानिर्देश के बहाने इस तरह से अज़ान देने से नहीं रोका जा सकता। याचिकाकर्ता सांसद अफ़ज़ाल अंसारी, पूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान ख़ुर्शीद और वरिष्ठ अधिवक्ता वसीम ए क़ादरी ने लाउडस्पीकर के ज़रिए अज़ान देने की इजाज़त मांगी थी। इस तरह हाइकोर्ट ने जहां ज़िलाधिकारियों के अज़ान पर रोक के फ़ैसले को रद्द किया वहीं अज़ान के लिए याचिका कार्यकर्ताओं की लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की अपील भी ख़ारिज कर दी।
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ग़ाजीपुर सांसद अफ़ज़ाल अंसारी ने अपनी याचिक में कहा था कि ग़ाज़ीपुर के ज़िलाधिकारी ने मौखिक आदेश से मस्जिदों से अज़ान देने पर रोक लगा दी है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। जबकि ग़ाजीपुर में सभी लोग लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं और अपने घरों में नमाज़ पढ़ रहे हैं। अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि लोगों को नमाज़ के वक्त की जानकारी देने के लिए अज़ान ज़रूरी है। साथ ही यह धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार में आता है। सरकार मूल अधिकारों पर रोक नहीं लगा सकती। ग़ाज़ीपुर के बाद ऐसा ही मामला हाथरस और फ़र्रुखाबाद में भी सामने आया।
इलाहबाद हाईकोर्ट ने तीनों मामलों में यह भी साफ़ कर दिया कि मस्जिदों में अज़ान से कोविड-19 की गाइडलाइन का कोई उल्लंघन नहीं होता। कोर्ट ने अज़ान को धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ बताया। हालांकि लाउडस्पीकर से अज़ान की इजाज़त नहीं दी गई है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ उन्हीं मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकता है, जिन्होंने इसकी लिखित अनुमति ले रखी हो। जिन मस्जिदों के पास अनुमति नहीं है, वह लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के लिए आवेदन कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि लाउडस्पीकर की अनुमति वाली मस्जिदों में भी ध्वनि प्रदूषण के नियमों का पालन करना होगा। इसका मतलब यह है कि उन मस्जिदों में सुबह यानि फजिर की अज़ान नहीं होगी।
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दरअसल केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद कई हिंदूवादी संगठन मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अज़ान पर पाबंदी लगाने की मांग करते रहे हैं। ख़ासकर फजिर की अज़ान पर। इनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक़ रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की मनाही है। फजिर की अज़ान सुबह 6 बजे से पहले होती है। इससे अन्य धर्मों के मामने वाले लोगों की नींद में ख़लल पड़ता है। लिहाज़ा इस पर पाबंदी लगने चाहिए। इस मांग को लेकर हिंदू संगठनों ने पहले भी कई बार हांगामा किया है। बैंगलुरु और मुंबंई में इसे लेकर हिंदू संगठनों ने आक्रामक तेवर दिखाए हैं। उग्र प्रदर्शन भी किए हैं।
उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही ऐसी मांग होती रही है। लॉकडाउन के बहाने हिंदूवादी संगठनों के इस ऐजेंडे को अमली जामा पहनाने की कोशिश हुई है। रमज़ान शुरु होने से पहले सूबे के कई ज़िलों से ख़बरें आईं थी कि पुलिस मस्जिदों में अज़ान रोक रही है। उसके बाद बक़ायदा ग़ाज़ीपुर के डीएम ने लॉकडाउन के दौरान मस्जिदों से अज़ान पर मौखिक रोक लगाई। फिर हाथरस और फ़र्रुख़ाबाद के डीएम ने भी ऐसा ही किया। ग़ाज़ीपुर डीएम के फैसले को बीएसपी सांसद अफ़ज़ाल अंसारी ने हाईकोर्ट में चुनौता दी तो फर्रुख़ाबाद के डीएम के फैसले के ख़िलाफ़ सलमान ख़ुर्शीद ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील सैयद वसीम क़ादरी ने भी इस मामले में याचिका दाख़िल की।
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रमज़ान से ठीक एक दिन पहले दिल्ली में भी दो पुलिस वालों का दिल्ली के उपराज्यापाल के आदेश का हवाला देते हुए एक मस्जिद में जबरन अज़ान रोकने का कोशिश करते हुए वीडियो वायरल हुआ था। इस पर काफ़ी बवाल मचा था। बाद में दिल्ली पुलिस ने बाक़ायदा बयान जारी करके कहा था कि अज़ान पर पाबंदी को कोई आदेश नहीं है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी बयान जारी करके कहा था कि दिल्ली सरकार ने लाकडाउन के दौरान मस्जिदों में अज़ान पर कोई पांबदी नहीं लगाई है। मस्जिदों में अज़ान होगी लेकिन नमाज़ घरों पर ही पढ़ी जाएगी।
ग़ौरतलब है कि दो साल पहले फिल्म कलाकार और प्लेबैक सिंगर सोनू निगम ने भी मुंबई में फजिर की अज़ान से नींद में ख़लल पड़ने का मुद्दा उठाया था। इस पर काफ़ी बवाल मचा था। हालांकि बाद में सोनू निगम ने अपने बयान पर माफ़ी मांग ली थी। लेकिन उसके बाद देश भर में लाउडस्पीकर से फजिर की अज़ान देने पर पाबंदी लगाने की मांग हुई थी। यही हिंदूवादी संगठनों का असली एजेंडा है। उत्तर प्रदेश में ताज़ा विवाद हिंदूवादी ताक़तों के इसी एजेंडे को पूरा करना की कोशिश है। रणीनीति यह है कि पहले अज़ान पर पाबंदी लगाओ। इस पर विवाद बढ़ेगा। अदालत में मामला जाएगा। अदालत कहेगी कि अज़ान को इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है लेकिन लाउडस्पीकर नहीं। बाद में यह सहमति बना ली जाए कि फजिर का अज़ान को छोड़ कर बाक़ी अज़ान धीमी आवाज़ में लाउडस्पीकर से हो सकती हैं। इलाहबाद हाइकोर्ट के इस फैसले ने यही रास्ता दिखाया है।