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पैसे कमाने शहर गया था, 5 दिन तक रेल में इधर-उधर टहलती रही मजदूर की लाश

आस मुहम्मद कैफ, TwoCircles.net

झांसी। उसका उपनाम कुमार, गौतम और ख़ान नही है। शर्मा है। तो भी उसका शव 5 दिन तक श्रमिको के ले जाने वाली रेल के डिब्बे में सड़ते हुआ मिला।क्योंकि वो ग़रीब है। मज़दू़र है।और ग़रीब का कोई जाति धर्म नही होता है। कोरोना त्रासदी की हर दूसरी कहानी कलेजा छील देती है। झांसी की इस तक़लीफ़देह कहानी को जानकर आप एक फिर रो देंगे।

देशभर में कोरोना संकट के दौरान हुई अव्यवस्थाओं को लेकर सवाल उठ रहे हैं। मजदूरों की पलायन त्रासदी ने तो देश को दुनियाभर की नज़र में शर्मसार कर दिया है। इस दौरान कई दर्दनाक कहानियां सामने आई है। अब झांसी से सामने आई एक कहानी ने तो हिला कर रख दिया है। यहां मुम्बई से लौटा 38 साल का चिप्स की फैक्ट्री का ड्राइवर झांसी से गोरखपुर जा रही ट्रेन श्रमिक स्पेशल ट्रेन में मृत मिला है। अफ़सोस यह है कि ट्रेन इस शव के साथ ही 5 दिन तक इधर उधर चक्कर काटती रही। बाथरूम में बदबू आने के बाद रेलवे के कर्मचारियों को लाश बन चुका मोहनलाल शर्मा मिला। उसकी जेब से 27 हजार रुपये की नग़दी भी मिली। जेब से ही एक आधार कार्ड भी मिला जिसके अनुसार वो बस्ती जिले का रहना वाला था। वो टिकट लेकर झांसी से गोरखपुर जाने के लिए ट्रेन में बैठा था, ट्रेन गोरखपुर जाकर वापस झांसी भी वापस लौट आई। मोहनलाल न बस्ती पहुंच पाया और न मुम्बई। हर मुश्किल को झेलकर भी वो घर नहींं लौट पाया। मज़दूरों के पलायन की त्रासदी के बीच यह बेहद दर्दनाक घटना है।

मोहनलाल के परिजनों के मुताबिक वो डायबिटीज़ का मरीज़ था। ट्रेन में उसे इलाज नहींं मिल पाया।गंभीर बात यह है भी है कि ट्रेन में उसे तड़पते देखने के बाद भी किसी ने उसकी मदद नही की। ख़ास बात यह भी है मोहनलाल शर्मा गोरखपुर का टिकट लेकर झांसी से इस गाड़ी संख्या 041168 में सवार हुआ था। जबकि यह ट्रेन गोरखपुर गई ही नहींं। यह गाड़ी बरौनी गई थी। जिस दिन मोहनलाल ने टिकट ख़रीदा उसपर 23 मई की तिथि अंकित है।

झांसी रेलवे प्रशासन ने इसकी सूचना हलुआ गांव थाना गौर जिला बस्ती में मोहनलाल के घर सूचना दी। उसके पिता का पहले ही देहांत हो चुका है।मोहनलाल शर्मा के फूफा कन्हैयालाल ने बताया कि 23 मई को उसकी पत्नी से बात हुई थी। जिसमे उसने बताया था कि वो आज घर जाएगा। उसके बाद उसका फोन रिसीव नही हुआ। पुलिस मोहनलाल के पास से उसका फोन भी मिला है। ट्रेन बरौनी से 27 मई लौटकर कर आई। तब मोहनलाल का शव में सड़न देखकर रेलवे कर्मचारी नींद से जागे।

मोहन के फूफा कनहैया ने बताया कि मौत सिर्फ उनके भतीजे की ही नहीं हुई है बल्कि सम्पूर्ण मानवता की हो गई है। वो अपनी बीमारी के बारे मे शायद इसलिए नही बता पाया होगा कि कहीं उसे कोरोना का मरीज़ न समझ लिया जाए। रेलवे ट्रेन को सेनेटाइज़ेड करने का दावा करता है मगर 5 दिन दिन उन्हें मोहन का शव दिखाई नहीं दिया।

मोहन के चार बच्चे है। उसकी पत्नी संगीता ने बताया कि जब वो झांसी तक बस से आएं थे। झांसी के बाद उन्होंने फोन कर बताया कि वो ट्रेन में बैठ गए हैं अब घर आ जाएंगे। हम सब खुश थे, बच्चे भी खुश थे, वो मुम्बई में एक चिप्स फैक्टरी में ड्राइवर रहे। अब 6 -7 दिन हो गए। वो नही आएं।झांसी रेलवे के अफसरों का फ़ोन तो पता चला। हमनें तय किया था वो वापस मुम्बई नहींं जाएंगे। अब उसकी संभवना ही ख़त्म हो गई। अब वो कभी वापस नहींं जा सकते।