उत्तर भारत के राजनीतिक गलियारे में आजकल सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी की ही चर्चा है। बिहार में उनके दल ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन को मिली कामयाबी के बाद मुस्लिम कयादत को लेकर बहस छिड़ गई है। इस समय मुस्लिम क़यादत की बात चलने पर डॉक्टर मसूद को भी याद किया जा रहा है।डॉक्टर मसूद को उत्तर प्रदेश में क़यादत की पाठशाला का उस्ताद कहा जाता है। नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी ( नेलोपा) के संस्थापक डॉक्टर मसूद को आप भारत मे मुस्लिम क़यादत के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष करने वाला नेता भी कह सकते हैं। उन्होंने हजारों सभाएं की। 6 राज्यों में चुनाव लड़ा है । 10 साल तक वो लगातार सड़क पर रहे और उत्तर प्रदेश के हर एक चौराहे पर उन्होंने सभा की है। यह भी कहा जा सकता है कि मुस्लिम क़यादत की विचारधारा की बुनियाद डालने का काम डॉक्टर मसूद ने ही किया। उत्तर प्रदेश के 80 जिलों में उनका मजबूत संगठन था। 1995 से 2005 के बीच नेलोपा जबरदस्त उफ़ान पर थी। उसके बाद वो गौण हो गई।
इस ‘एक्सक्लूसिव इंटरव्यू’ में पूर्व मंत्री और नेलोपा के संस्थापक डॉक्टर मसूद , वरिष्ठ पत्रकार आसमोहम्मद कैफ़ के साथ अपने संघर्षों, षड्यंत्रों और मुस्लिम क़यादत के अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं।
बिहार में ओवैसी की जीत की हर तरफ़ चर्चा है, उन्हें तनक़ीद और तारीफ़ दोनों मिल रही है! आप भी इस पर कुछ कह दीजिये !
डॉक्टर मसूद : मैं ओवैसी की जीत से खुश हूँ। मुझे लगता है कि यह उस विचारधारा की जीत है जिसकी बुनियाद डालने का काम हमनें किया था। “जितनी जिसकी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी ” हमारा नारा था। ओवैसी की कामयाबी अपनी सी लग रही है। हमनें लोगों को यही समझाने में उत्तर प्रदेश की हर गली और चौराहे पर मीटिंग की थी कि ‘अपनी क़यादत और अपना झंडा ‘ में ही असली सम्मान मिलेगा। अब विभिन्न राजनीतिक दलों में मौजूद मुस्लिम नेताओं,धार्मिक सियासी नेतागण और पैसे वाले मुसलमानों का ‘नेक्सेस ‘ उन्हें घेरने की कोशिश करेगा। उन्हें इससे सावधान रहना होगा। इस जीत से सेक्युलर जमातों पर दबाव बनेगा। वो मुसलमानों को सम्मान देने के लिए मजबूर होंगी। यह उस सवाल का जवाब है जिसे सेकुलरिज्म की अलमबरदार पार्टियां अक्सर बंद कमरों में पूछती है कि मुसलमान जाएगा कहाँ ! भाजपा में तो वो जा नही सकता ! यह जवाब है कि वो कहाँ जा सकता है ! अब सेकुलर पार्टियां मुसलमानों को गंभीरता से लेने की कोशिश करेंगी। वो उन्हें फालतू नही समझेंगे।
इस सबके बीच भाजपा जीत गई तो जैसा बिहार में हुआ !
डॉक्टर मसूद : अब इसकी चिंता तो उन्हें ज्यादा करनी चाहिए, जिनके पास हुकूमत रही है,क्योंकि कुर्सी तो उनकी जा रही है अब मुसलमानों के पास तो कुर्सी नही है न ! खुद को सेकुलर जमात कहने वाले तब मुसलमानों के साथ बराबरी का बर्ताव क्यों नही करते ! उन्हें उनके साथ इंसाफ करना चाहिए। भाजपा का डर दिखाकर ये हमेशा हलवा नही खा सकते ! सेक्युलर दल लगातार मुसलमानों को छल रहे हैं। मुसलमान नेताओ के साथ गुलामों जैसा बर्ताव होता है वो फॉलोवर है नेता नही। मुसलमानों को ईमानदारी के साथ बराबरी का सम्मान नही दिया गया है।
आप शिक्षा मंत्री थे और आपको रातों रात हटा दिया गया क्या यह उसकी टीस है !
डॉक्टर मसूद – हां उसकी भी टीस है। अक्ल तो वहीं से आई। मैं 1995 की बसपा सरकार में शिक्षा मंत्री था। मैं कांशीराम जी की विचारधारा से प्रभावित था। तब मैं अंबेडकर नगर से चुनाव जीतकर विद्यायक बना था। आमिल, फ़ाज़िल, मौल्लिम जैसी डिग्रियों को वैधता मैंने दी थी। मैंने बिना मायावती से पूछे भर्ती निकाल दी। मैं कैबिनेट मंत्री था यह मेरा हक़ था। उन्होंने मुझे निकाल दिया। अब यह मेरा घर होता वो मुझे कैसे निकालते। ये उनका घर था इसलिए उन्होंने मुझे निकाल दिया तब मेरी समझ मे आया कि मेरा अपना घर होना चाहिए तब नेलोपा बनाने का ख़्याल आ गया ! हम जहां भी जाते थे तो कांशीराम जी के तरीके से लोगों को समझाते थे। ठीक ऐसे ही तमाम दलों में मुसलमानों की हैसियत है वो जब चाहेंगे,हटा देंगे,आज मैं रालोद का प्रदेश अध्यक्ष हूँ। जब तक वो चाहेगें रहूंगा और जब वो चाहेंगे, हटा देंगे।
नेलोपा के साथ आपके बहुत सारे अनुभव है,आप लोकप्रियता के उरूज़ पर थे,आपने हजारों सभाएं की! लोग आपको सुनने आते थे ! फिर भी आप नाकामयाब हुए क्यों !
डॉक्टर मसूद – उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मोहल्लों का कोई चौराहा ऐसा नही बचा है,जहां मैंने मीटिंग न की,मैं अगर सिर्फ ट्रेन के टिकट संभाल कर रखता तो आठ – दस बोरे भर जाते। मैं 15 दिन तक सफ़र में रहता, कपड़े गंदे हो जाते और मेरी बीवी रेलवे स्टेशन पर अटैची लेकर मिलती। मैं गंदे कपड़े उन्हें देता और वो साफ कपड़े मुझे, वो घर से खाना बांधकर लाती, दोनों स्टेशन पर बैठकर खाते वो वापस घर चली जाती और मैं पश्चिम से पूर्व की और दौरे पर चला जाता। इतनी मेहनत के बाद भी मैं फेल हो गया। नेलोपा सत्ता में शामिल नही हो पाई। पार्टी नेपथ्य में चली गई। क़यादत का हमारा ख़्वाब टूट गया। मैं आपको बताता हूँ कि अपनी सभाओं के दौरान जब मैं पुलिसकर्मियों की तरफ इशारा करते हुए यह कहता था कि इस लाठी में भी हमारी ताक़त होगी तो लोग झूम उठते थे। मैं बेहद दुःख के साथ कह रहा हूँ कि हैसियत वालों मुसलमानों ने मेरा साथ नही दिया। हम दो- दो रुपये चंदा मांगते थे। मैं मंच से कहता था कि तुम जो गोश्त खाते हो,उसकी हड्डी इक्कट्ठा कर लिया करो और इसे बेच कर जो पैसा मिले तो वो हमें दान कर दो ! मगर इस पार्टी को चलाओ ! सेक्युलर पार्टियों के मुसलमानों के ‘नेक्सस’ ने हमें बर्बाद किया। ये मुस्लिम नेताओ, पैसे वाले मुसलमान और राजनीतिक रुचि वाले उलेमाओं का गठजोड़ था। इन्होंने हमारे ख़िलाफ़ षड्यंत्र किया।
इनके पास संसाधन थे मैं तो रोटी से भी जूझ रहा था। हमारे कार्यकर्ता भी गरीब थे, कई तो रिक्शा चलाते थे। वो कब तक संघर्ष करते ! टूट गए ! पैसे वालों मुसलमानों ने कोई मदद नहीं की। अब ओवैसी की कामयाबी पर इसलिए खुशी हो रही है कि हमसे नही हुआ मगर काम हमारा ही है।
आपको लगता है इस तरह की समस्याओं का सामना ओवैसी भी करेंगे !
डॉक्टर मसूद – कुछ समस्यांए तो उनके सामने इन जैसी ही होगी और कुछ नई होंगी,जैसा सियासी मुस्लिम उलेमाओं, सेकुलर पार्टियों के नेतागण और पर प्रभावशाली मुसलमानों का गठजोड़ कहीं न कहीं कनेक्ट है। वो इनके पैर जमने नही देगा ! यूपी बिहार से अलग हैं।खासकर सीमांचल से बिल्कुल ही अलग है। ओवैसी साहब के पास पैसे की कमी नहीं है और प्रचार खूब हो गया है यह इनका सकारात्मक पक्ष है। इनका नकारात्मक यह है कि संगठन शून्य है। हर एक बूथ पर कम से कम पांच कार्यकर्ता होने चाहिए। इनके पास सभी जिलों में जिलाध्यक्ष भी नही है। ज़मीनी स्तर पर उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं है जो भी कुछ है वो हवा में है। संगठन नही होगा और बढ़िया प्रत्याशी नही मिलेंगे तो बहुत मुश्किल स्टैंड करेंगे। अब इन्हें पूरा ध्यान संगठन पर देना होगा। एक अच्छी बात यह है कि अब उत्तर भारत का आदमी भी दक्षिण भारत के नेताओ को स्वीकार कर रहा है पहला यह नही था। यह भी उनका पॉजिटिव है। फिलहाल वो संगठन पर काम करें। बाकी सब बाद की बात है।