हीना महविश । Twocircles.net
आज भगत सिंह का जन्मदिन हैं। उन्हें शहीद ए आज़म कहा जाता है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान उनके विचारों नोजवानों में जोश भर दिया था। देश भर में आज सरदार भगत सिंह और उनकी कुर्बानियों को याद किया जा रहा है। भगत सिंह हमेशा से भारत मे युवाओं के आदर्श रहे हैं। उन्होंने ज़ालिम अंग्रेजी हुकूमत के सामने झुकने से इंकार किया और बहादुरी से क्रांतिकारी लड़ाई लड़ी। सरदार भगत सिंह को लेकर बहुत से किस्से प्रचलित है। 1929 में भगत सिंह के विरुद्ध अंग्रेजी हुकूमत ने एक तगड़ा क्रेकडाऊन चलाया था। यह वही समय था जब भगत सिंह ने केंद्रीय सभा (सेंट्रल हॉल ) मे बम फेंके थे। बेरहम अंग्रेजों ने भगत सिंह के दिल मे ख़ौफ़ भरने के लिए उनके परिवार और नजदीकियों पर ज्यादती करनी शुरू कर दी थी।
ऐसे समय मे उस समय पंजाब में बेहद प्रभावशाली रहे मौलाना हबीबुर्रहमान क़ासमी ने उनके परिवार को अपने घर मे शरण दी थी। वो एक महीने से भी अधिक समय तक मौलाना हबीब के घर मे बतौर मेहमान रहे थे। मौलाना हबीबुर्रहमान आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस के भी करीबियों में शुमार करते थे और जंगे आज़ादी में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
पंजाब में आजकल काफी सक्रिय मौलाना हबीबुर्रहमान क़ासमी द्वितीय दरअसल आज़ादी की लडाई शामिल रहे मौलाना हबीबुर्रहमान के ही पोते है। मौलाना हबीब 3 जुलाई 1892 में लुधियाना में पैदा हुए थे। वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए थे। मौलाना ने ख़िलाफ़त आंदोलन और असहयोग आंदोलन में बेहद सक्रियता निभाई थी। बताते हैं कि मौलाना हबीबुर्रहमान की पहली बार गिरफ्तारी 1 दिसंबर 1921 को हुई तब लुधियाना में उनके जोशीले भाषण से प्रभावित होकर भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया था जहां उन्होंने 14 साल देश की कई जेलों में बंद कर यातनाएं दी गई।
ये वही मौलाना हबीबुर्रहमान है जिन्होंने 1929 में मजलिस ए अहरार पार्टी की स्थापना की थी। मौलाना के करीबी दावा करते हैं कि उन्हें ऐसा करने की सलाह मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने दी थी। इस दौरान उनके साथ हुई घटना ने उन्हें देशभर में लोकप्रिय कर दिया। 1929 में अंग्रेजों में ‘फूट डालो और राज करो ‘ की नीति के तहत
पंजाब के लुधियाना में घास मंडी चौक पर हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए पानी के अलग अलग बर्तन रखवा दिये थे। उसके बाद इन्होंने इसका जबरदस्त विरोध किया और “सबका पानी एक है” शीर्षक से एक मुहिम छेड़ दी जो देश में फैल गई । लुधियाना में इस विषय पर एक बड़ा जलसा हुआ जिसमें पंडित नेहरू ने भी शिरकत की।
मौलाना हबीबुर्रहमान अंग्रेजों के लिए हमेशा सरदर्द रहे 1931 में उन्होंने लुधियाना की शाही जामा मस्जिद के पास सैकड़ो ब्रिटिश अधिकारियों की उपस्थिति में भारत का झंडा फहरा दिया। इनकी हिम्मत का आलम यह था कि यह इन्होंने ऐलानिया किया और भारी पुलिस बल इन्हें रोकने भी पहुंचा। इन्होंने जो कहा था वो कर दिखाया मगर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी हुकूमत उनसे परेशान होकर उन्हें शिमला, मैनवाली ,धर्मशाला, मुल्तान ,लुधियाना सहित अनेक जेलों में 14 साल तक बंद करती रही।
मौलाना हबीबुर्रहमान की मौत 2 सितंबर 1956 को हुई। बताते हैं उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके गहरे दोस्त थे। उनकी गुज़ारिश पर मौलाना हबीबुर्रहमान को दिल्ली की जामा मस्जिद के पास वाले कब्रिस्तान में दफनाया गया।
यह सब जानकारी प्रसिद्ध इतिहासकार मास्टर तारा सिंह की किताब ‘हिस्ट्री फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया ‘ में है। मास्टर तारा सिंह भी मौलाना के करीबियों में शुमार करते थे।
लुधियाना की शाही जामा मस्जिद के इमाम मौलाना हबीबुर्रहमान क़ासमी द्वितीय के मुताबिक सरदार भगत सिंह के परिवार के लोग आज भी उनसे मिलने आते हैं और उस समय को याद करते हैं जिसके बारे में उन्हें उनके पूर्वजों ने बताया है। भगत सिंह के भाई के बेटे संधू अक्सर यहां आते हैं वो लोगो से बातचीत में कहते हैं कि वो अलग दौर था वो बहुत महान लोग थे। वो सच्चे देशभक्त थे। हमें गर्व है कि हमारी रगों में उनका खून है।