Home Education आखिर क्यों लोगों के दिलों में बसते थे मौलाना वली रहमानी!

आखिर क्यों लोगों के दिलों में बसते थे मौलाना वली रहमानी!

Maulana Wali Rahmani | Picture: Muslim Mirror

न्यूज़ डेस्क । Twocircles.net

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना वली रहमानी साहब का शनिवार को देहांत हो गया। उन्होंने अपनी अंतिम सांसे दोपहर को करीब 2:30 बजे ली। रिपोर्ट के अनुसार वो पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और उनका इलाज पटना के पारस अस्पताल में चल रहा था। उनके देहांत के बाद से मुस्लिम जगत में एक शोक सी लहर दौड़ गई है। बड़े-बड़े दिग्गज उनकी मौत पर अपना दुख ज़ाहिर कर रहे हैं। रविवार को मुंगेर जिले में ही उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़ी गई।

हजरत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी का जन्म 5 जून 1943 को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था। वे पटना के गर्दनीबाग में रहते थे। वो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव थे और 2015 से अबतक इमारत-ए-शरिया के अमीर-ए-शरियत भी थें। उनके नाम अनेकों उपलब्धियां है। सैकड़ों संस्थाएं उनके बदौलत फल-फूल रही थीं। मौलाना वली रहमानी तीन बार 1974 से 1996 के बीच बिहार विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) भी रहें थें।

1991 के बाद से खानकाह रहमानी मुंगेर के वर्तमान सज्जादा नशीन हजरत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी साहब ने चार दशकों से अधिक समय तक अपनी लंबी सेवा के दौरान कई संगठनों और आंदोलनों का नेतृत्व और निर्देशन किया। 1972 से उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फिर इसके महासचिव के रूप में कार्यरत हुएं। वह पिछले तीन दशकों से भारत में मुस्लिम संगठनों के शीर्ष निकाय ऑल इंडिया मुस्लिम मुज़लिस-ए-मुशावरत के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम कर रहे थें। वह बिहार, उड़ीसा और झारखंड राज्यों के वर्तमान अमीर-ए-शरीयत थें और रहमानी फाउंडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष भी।

मौलाना वली रहमानी द्वारा 1996 में स्थापित रहमानी फाउंडेशन सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक न्याय, पर्यावरण और अन्य के क्षेत्रों में सक्रिय है। 2009 में रहमानी 30 की स्थापना की गई थी। जो गरीब और कमजोर छात्रों को IIT JEE, NEET और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए मुफ्त कोचिंग प्रदान करता है।

वह हमेशा से शैक्षिक और सामाजिक सेवाओं से बहुत करीब से जुड़े रहे थें, जिसके चलते उन्हें 1974 में बिहार विधान परिषद में नामित किया गया। वहां उन्होंने बीस से अधिक वर्षों तक प्रमुख विधायक के रूप में कार्य किया और दो बार विधान परिषद की अध्यक्षता भी की। उन्होंने बिहार में अपने समय के सबसे अधिक परिचालित उर्दू दैनिक अखबार “ईसर” को प्रकाशित किया। उन्होंने “नैकिब वीकली” द्वारा अपनी पत्रकारिता के प्रतिभा का भी प्रमाण दिया। वो जामिया रहमानी में इस्लामी कानून, हदीस साहित्य और अरबी अध्ययन के शिक्षक के रूप में भी काम करते थें। जहां वो बाद में शिक्षा सचिव के रूप में चुने गए और 1991 से अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हुएं।

उन्होंने अपने एमएलसी के दिनों में ही भारत के पिछड़े हुए मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल करने की पहल की ताकि भारत को मजबूत राष्ट्र के रूप में विकसित होने में मदद मिले। इस पहल के कई वर्षों सच्चर समिति के रिपोर्ट ने भी ऐसी ही पहल का उल्लेख किया। सशक्तिकरण के अन्य पहलुओं के अलावा, वह वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए उचित और प्रभावी कानूनों के जानकर एक काबिल वकील और अथक कार्यकर्ता भी साबित हुए। 1976 में उन्होंने संपत्तियों की सुरक्षाओं के लिए राज्य वक्फ अधिनियम में 19 संशोधनों को पारित करवाया और देहांत से पहले तक इस मकसद के लिए अथक परिश्रम करते रहे थें। वो उर्दू सलाहकार समिति बिहार के सदस्य भी रहें जहां उन्होंने राज्य की दूसरी भाषा के रूप में उर्दू को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने 11 से अधिक पुस्तकें और पुस्तिकाएं लिखीं। तीन सौ से अधिक निबंधों को भी प्रकाशित करवाया। उन्होंने उसमे अध्यात्म से लेकर उच्च न्यायालय के फैसले के आकलन और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ भी लिखा।

शिक्षा हमेशा उनका जुनून रहा है। वो मुस्लिम समाज के पढ़ने-लिखने पर भी बल देते थे। वह मुस्लिम महिलाओं के शिक्षा के बड़े पक्षधर थे, उसके लिए उन्होंने रहमानी बी.एड कॉलेज बनवाई थी जहां से सैकड़ों पढ़-लिख कर देश के अलग-अलग स्कूलों और कॉलेजों में कार्यरत हैं। रहमानी हमेशा कहते थे कि मुस्लिम समाज के लोगों को धार्मिक अध्ययन के अलावा समकालीन शिक्षा पर भी बल देना चाहिए। तभी यह तबका अपने पिछड़ेपन से उबर सकता है। उन्होंने भारत सरकार की मदरसा आधुनिकीकरण समिति के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उनका कार्य मदरसों में परिवर्तन का उत्प्रेरक रहा है। वह जामिया रहमानी के अध्यक्ष थें और उनकी दृष्टि इस मदरसे के बदलाव, कामकाज और शैक्षिक कार्यप्रणाली में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

वह सार्वजनिक स्वास्थ्य में भी बहुत रुचि लेते थें। सीमित साधनों के बावजूद उनके रहमानी फाउंडेशन ने धर्म, जाति, रंग या लिंग की परवाह किए बिना हर साल 3000 से अधिक नेत्र शल्यचिकित्सा करती आई है। सर्जरी शिविरों के अलावा फाउंडेशन नियमित रूप से मुफ्त क्लीनिक, टीकाकरण अभियान और शहर की सफाई सेवाएं नियमित आधार पर प्रदान करती रही है।

प्रकृति, स्वास्थ्य और वित्तीय जिम्मेदारियों की चिंता उनके एक अन्य आंदोलन “हरियाली-स्वस्थ-धनवान कब्रिस्तान” में परिलक्षित होती है। उन्होंने मुस्लिमों से अपने कब्रिस्तानों को शीशम / सागवान के पेड़ों के साथ सीमाओं को बांधने का आग्रह किया था, जिसके परिणामस्वरूप गैरकानूनी रूप से कब्जा को रोका जा सका और सांप्रदायिक अशांति को भी रोकने में मदद मिली। साथ ही समय के साथ पेड़ो के उत्पादन से महंगी लकड़ी मिली जिसने कब्रिस्तानों को आत्मनिर्भर बना दिया। उपार्जित लाभ को उचित कारणों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदायों के उत्थान के लिए निरंतर संघर्ष के रूप में रहमानी साहब के जीवन को संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है। पिछले 20 वर्षों में उन्होंने अल्पसंख्यक अधिकारों का जोरदार तरीके से समर्थन किया है और कई सफल आंदोलनों जैसे नागरिकता की रक्षा, शरिया की रक्षा, मदरसों के मानहानि के खिलाफ आंदोलन और समुदायों के सुधार के लिए आंदोलन कर रखा था। उनकी सेवाओं के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब वाह-वाही मिलती थी। उन्हे कोलंबो विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की डिग्री, उत्कृष्टता के लिए राजीव गांधी पुरस्कार, शिक्षा रतन, आईएसएएनए (यूएस) से सर सैयद पुरस्कार सहित कई दूसरे पुरस्कार भी प्राप्त हुए थें।

उनकी कुछ सेवाएं एक झलक में!

• सज्जादा नशीन, खानकाह रहमानी, मुंगेर, बिहार।
• अमीर-ए-शरीयत, बिहार, उड़ीसा और झारखंड
• सचिव, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, नई दिल्ली।
• उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, नई दिल्ली।
• अध्यक्ष, जामिया रहमानी, मुंगेर।
• अध्यक्ष, अंजुमन हिमायत-ए-इस्लाम मुंगेर।
• अध्यक्ष, इस्लामी निवेश और वित्त बोर्ड, बॉम्बे।
• राष्ट्रीय संयोजक, सुधार समिति, नई दिल्ली।
• सदस्य, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय न्यायालय।
• सदस्य, कार्यकारी समिति, दारुल-उल-उलूम, नदवतुल उलेमा, लखनऊ।
• ट्रस्टी, इमरत-ए-शरिया एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट।
• ट्रस्टी, अल महद-उल-इस्लामी, फुलवारी शरीफ, पटना।
• अध्यक्ष, श्री कृष्ण सेवा सदन, मुंगेर।
• ट्रस्टी फेडरेशन फॉर सिविल लिबर्टीज, नई दिल्ली।
• अल्पसंख्यक शिक्षा, भारत सरकार की सदस्य स्थायी समिति।
• अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए सदस्य निगरानी समिति, भारत सरकार की एमएचआरडी।
• सदस्य केंद्रीय वक्फ परिषद, भारत सरकार, नई दिल्ली।
• पाँच विश्वविद्यालय सेटअप योजना समिति के सदस्य। अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, भारत सरकार।
• अध्यक्ष, भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय, मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण पर समिति।
• संस्थापक और अध्यक्ष, रहमानी फाउंडेशन।
• संस्थापक और अध्यक्ष, रहमानी 30।
• 1984 और 1990 में बिहार विधान परिषद के उपाध्यक्ष।
• 1974 – 1996 से बिहार विधान परिषद के सदस्य।
• अध्यक्ष, उर्दू सलाहकार समिति बिहार सरकार।
• सदस्य, उर्दू भाषा, नई दिल्ली के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय परिषद।
• सदस्य, हज सद्भावना मिशन, 1989।
• कई विश्वविद्यालयों के लिए सीनेट और सिंडिकेट के सदस्य के रूप में सेवा की।
• उर्दू का सबसे प्रचलित समाचार पत्र “ईसर” अखबार प्रकाशित किया।
• कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिए गए।
• शिक्षा सचिव, जामिया रहमानी, मुंगेर।
• फैकल्टी, जामिया रहमानी, मुंगेर।
• उपाध्यक्ष, मौलाना आज़ाद एजुकेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली।
• 39 देशों और सैकड़ों शहरों, कस्बों और गांवों में शिक्षा और सुधार का प्रचार किया।
• इत्यादि