स्टाफ़ रिपोर्टर ।Twocircles.net
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के सदस्यों ने शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है की वे फ्लाईओवर का रास्ता बनाने के लिए राष्ट्रीय धरोहर खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के एक हिस्से को ध्वस्त करने के मामले में हस्तक्षेप करें और उसे सुरक्षा प्रदान करवाएं। बिहार पुल निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा प्रस्तावित कारगिल चौक से एनआईटी पटना तक एलिवेटेड रोड बनाने के लिए लाइब्रेरी के सामने वाले बगीचे और कर्जन लाइब्रेरी के एक हिस्से को ध्वस्त करने की बात सामने आई है।
रिपोर्ट अनुसार आरसीडी (रोड कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट) ने 2.20 किमी लंबे चार लेन वाले फ्लाईओवर का प्रस्ताव रखा था। यह कारगिल चौक से साइंस कॉलेज तक जाना था। इस फ्लाईओवर को ₹369 करोड़ की लागत से पूरा किया जाएगा। आरसीडी ने सड़क के किनारे पड़ने वाले संस्थाओं से जमीन के कुछ हिस्सों को हासिल करने की अनुमति मांगी थी। पीएमसीएच ने भूमि का हिस्सा देने के लिए कोई आपत्ति नहीं दिखाई, जबकि पटना विश्विद्यालय और लाइब्रेरी द्वारा अभी अनुमति देना बाकी है।
खुदा बक्श लाइब्रेरी की निर्देशक शाइस्ता बदर ने बताया कि उन्होंने नए सड़क प्रस्ताव का अध्ययन किया था जो बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (बीआरपीएनएनएल) द्वारा पुस्तकालय को अपनी भूमि छोड़ने को लेकर भेजवाया गया था। तब ही उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट को वैध कारणों के साथ अपना आपत्ति पत्र भेज दिया था और बाद में मुख्यमंत्री के कार्यालय में भी भेज दिया था।
बीआरपीएनएनएल ने सारी संबंधित संस्थाओं को कुछ महीने पहले ही नोटिस भेजवाया था। बदर कहती हैं “हम आशा करते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो इतिहास और पुरातत्व की खुद बड़ी समझ और ज्ञान रखते हैं। इन मुद्दों को समझेंगे।हम किसी भी तरह के विकास के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन अगर विकास की कीमत इतनी महत्वपूर्ण पुस्तकालय हो तो फिर वो विकास उचित नहीं है। हमने इस क्षेत्र में यातायात को आसान बनाने के लिए जिला प्रशासन को कई अन्य विकल्प प्रदान किए हैं। उदाहरण के लिए, कारगिल चौक से एक सड़क बांकीपुर क्लब से गुज़रते हुए अंटा घाट के पीछे से होकर गंगा नदी के किनारे एक सड़क विकसित की जा सकती है”।
आरसीडी के अतिरिक्त मुख्य सचिव, अमृत लाल मीना ने इस बारे में कहा था कि उन्होंने बीआरपीएनएनएल को सड़क के डिजाइन को संशोधित करने का निर्देश दिया था ताकि खुदा बक्श पुस्तकालय की इमारत को किसी भी तरह से परेशानी न पहुंचे।
आपको बता दें की 1969 में एक संघीय कानून के माध्यम से संसद में एक अधिनियम, ‘खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी एक्ट’ (1969) को पारित किया गया था जिसके तहत भारत सरकार ने खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी को राष्ट्रीय महत्व दिया और सरकार ने वित्त पोषण, रखरखाव और इसके विकास की जिम्मेदारियों को संभाला था। आज यह दुनिया भर से विद्वानों को आकर्षित करता है।
खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी भारत के प्रमुख राष्ट्रीय पुस्तकालयों में से एक है। बिहार के पटना ज़िला में स्थित ये लाइब्रेरी 29 अक्टूबर 1891 को खान बहादुर खुदा बख्श द्वारा 4,000 पांडुलिपियों के साथ जनता के लिए खोला गया था। मौलवी मोहम्मद बख्श को उसमे से 1,400 पांडुलिपियां अपने पिता से विरासत में मिली थी। यह स्वायत्त संगठन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसे बिहार के राज्यपाल और लाइब्रेरी के पूर्व अधिकारी अध्यक्ष द्वारा स्वचालित किया जाता है। ये पुस्तकालय फारसी और अरबी पांडुलिपियों के अपने दुर्लभ संग्रह के लिए जाना जाता है।
पुस्तकालय के कुछ दुर्लभ उल्लेखनीय पांडुलिपियों में तिमुर नाम (खंडन – तंगुरिया), शाह नामा, पदशाह नामा, दीवान-ए-हाफिज और सफिनतुल औलिया हैं। जिसमे मुगल सम्राटों और राजकुमारों के ऑटोग्राफ से लेकर महराजा रंजित सिंह का सैन्य लेखा तक शामिल हैं। इसके अलावा पुस्तकालय में मुगल पेंटिंग, सुलेख और अरबी-उर्दू भाषा के पांडुलिपियों के नमूने भी हैं। यहां हिरण के त्वचा पर लिखे कुरान का भी एक पृष्ठ शामिल है। अरबी, फारसी, उर्दू, तुर्की और पश्तो भाषाओं की इस लाइब्रेरी में 21,136 पांडुलिपियां हैं। इस लाइब्रेरी में अभी 3 लाख से ज़्यादा किताबें हैं। 22,000 से अधिक पांडुलिपियों और 2000 से अधिक दुर्लभ पेंटिंग्स 14 वीं शताब्दी तक के समय की है।