जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net
जहां एक तरफ देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर उससे लड़ने के लिए देश के कई हिस्सों में फिर से लॉकडाउन लगने की खबर सामने आई है। दूसरे लॉकडाउन में विभिन्न तरह की दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। जिसमे मुख्य तौर पर मंदिर और मस्जिदों को आम लोगों के लिए बंद करवाने के निर्देश हैं। इस ही बीच मुसलमानों के लिए सबसे मुबारक महीना रमज़ान भी शुरू हो गया है। मुसलमानों के लिए यह दूसरा रमज़ान होगा जब वो मस्जिदों में नमाज़े अदा नहीं कर पा रहे। हमने कई मुस्लिमों से बात की जिसमे वो दुखी तो नजर आएं लेकिन कोरोना से लड़ने के लिए और दूसरों का ख्याल करते हुए मस्जिदों में जाने से परहेज़ करने की भी बात कही।
देश में कोरोना वायरस के दूसरे वार को विफल करने के लिए रमज़ान जैसे पाक़ महीने में भी शुक्रवार को मस्जिदें खाली दिखीं। मुस्लिम धर्म के कई विद्वानों ने आम लोगों से अपील की थी के लॉकडाउन का पालन करते हुए वो मस्जिदों में न जाएं और घर पर ही जुहर की नमाज़ अदा करें। मुसलमानों के लिए शुक्रवार की नमाज़ बहुत अहमियत रखती हैं। बावजूद इसके नमाज़ में केवल मस्जिदों के प्रबंधकों समेत सिर्फ 4 से 5 व्यक्ति ही उपस्थित रहे। और कई जगहों पर नमाज़ के तुरंत बाद ही दरवाज़े पर ताला लगा दिया गया।
आपको बता दें की दूसरे लॉकडाउन के पूरी तरह लगने से कई दिनों पहले ही मुस्लिम धर्म गुरुओं ने मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने से परहेज़ करने की अपील कर दी थी ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण पर काबू पाने में मदद मिले। इस ही संदर्भ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पिछले महीने की 26 मार्च को लोगों से अपील करते हुए एक ट्वीट किया था, जिसमे लिखा गया था, “कोरोना महामारी के कारण, मुसलमानों को मस्जिदों में जुमे की नमाज अदा करने के बजाय घर पर ज़ुहर की नमाज़ अदा करने की सिफारिश की जाती है। सामूहिक तौर पर नमाज़ न पढ़ते हुए घर पर ही रहें। सभी पर फर्ज़ है कि वे अपने साथी नागरिकों के बारे में ख्याल करें।
इस तरह की ही बात दूसरे मुस्लिम निकायों द्वारा भी की गई थी। जैसे जमात-ए-इस्लामी शरीयत काउंसिल ने एक बयान में कहा था, “शुक्रवार की नमाज (जुमा नमाज) केवल इमामों, मुअज्जिनों, खादिमों और मस्जिदों के प्रशासकों द्वारा ही पढ़ी जानी चाहिए। नमाज़ और ‘खुतबा’ (भाषण) को न्यूनतम संभव अवधि में पूरा किया जाना चाहिए। और शेष जनता को घर में ‘ज़ुहर’ की नमाज़ अदा करनी चाहिए।”
हालात को देखते हुए शिया संप्रदाय के धार्मिक नेताओं ने भी देश भर में शुक्रवार की नमाज़ को स्थगित करने का फैसला किया था और अनुयायियों को घर के अंदर ही रहने के लिए कहा था।
“ये सिर्फ शुक्रवार की बात नही बल्कि हर नमाज़ में ऐसा ही हो रहा है। समय पर आज़ान दे दी जाती हैं जिसके बाद आम लोग अपने घरों पर ही नमाज़ें अदा कर लेते हैं।” एक मुअज्जिन ने कहा, “आस्था का मतलब ये बिलकुल नही की कुछ जानते हुए भी अनदेखा कर दिया जाए।” उन्होंने एक हदीस का ज़िक्र करते हुए कहा, “हमारे नबी स० ने फरमाया की किसी महामारी वाली जगह पर मत जाओ, और अगर तुम्हारे इलाके में महामारी फैली है तो वहां से मत निकलो” मुअज्जिन ने इसका मतलब कुछ इस तरह समझाया कि हमें दूसरों का और खुद का ख्याल करने के लिए बताया गया है, जिसका हम पालन कर रहे हैं।
सबसे ज़्यादा दिक्कत का सामना अपने घरों से दूर रह रहे लोगों को करना पर रहा है। “रमज़ान जैसा कुछ महसूस ही नही हो रहा” पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली रह रहे अदनान हाशमी का चेहरा ये कहते हुए लटक गया। “इस पाक महीने में भी मस्जिदों से दूर रहने में बुरा तो बहुत लगता है लेकिन क्या कर सकते हैं” हाशमी ने बताया की तरावीह की नमाज़ तक को खुद से उन्हे अपने हॉस्टल में ही पढ़ना पर रहा। इफ्तार में भी परेशानियां आ रही हैं।
ऐसा ही हाल एक दूसरे व्यक्ति फैसल हसीब ने भी बयान किया, “लोगों को समझना चाहिए की कोरोना वायरस कोई मज़ाक की बात नही। हमने हाल में ही अखबारों में कई तस्वीरें देखी हैं जिसमे आस्था के नाम पर सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ाई गई हैं।” हसीब ने दुख ज़ाहिर करते हुए बताया की हम सबको समझना चाहिए की हम अकेले इस महामारी से नही लड़ सकते, हम सबको एक साथ कोरोना से लड़ना होगा। “ये दूसरा साल है जब हम रमज़ान में भी मस्जिदों से दूर हो गए हैं,इससे दिल तो दुखता है मगर मजबूर है”