सदमे में एएमयू : 4 दिनों में 10 प्रोफेसर्स की मौत

स्टाफ़ रिपोर्टर।Twocircles.net

“एहसान सर के मौत की खबर सुनकर बहुत तकलीफ हुई,” अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के थियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ० एहसानुल्लाह की स्टूडेंट रह चुकी सुरैया सिद्दीकी की आंखें उन्हे याद करते हुए नम हो गई। “वो बहुत सीधे-साधे और प्यारे व्यक्ति थें। हमने आज तक उन्हें किसी से ऊँची आवाज़ में बात करते नही देखा था। मुझे तो पहले यकीन ही नहीं हुआ, आखिर उनकी उम्र ही क्या रही होगी मुश्किल से 40-45 साल” सिद्दीकी ने बताया कि वो बच्चों का खास ख्याल करते हुए क्लास के बाहर भी उनकी मदद किया करते थे।


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पिछले कुछ दिनों में लगातार हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसरों की मौत से पूरे अलीग भ्रातृत्व में शोक की लहर फैली हैं। जिस पर विश्वविद्यालय के कुलपति तारिक मंसूर समेत पीआरओ शाफे किदवई, विभागों के प्रोफेसरों और छात्रों ने अपनी-अपनी संवेदना व्यक्त की है। भारत में तेजी से फैल रहे कोरोना की वजह से देशभर में अब तक लाखों लोगों की जानें जा चुकी हैं।

जानकारी के अनुसार एएमयू में कोविड संक्रमण के कारण 4 दिनों के अंदर 10 सेवानिवृत्त और सेवारत प्रोफेसरों की मृत्यु हुई है। जिसमे, प्रोफेसर मौलाबख्श अंसारी (उर्दू विभाग), डॉ० एहसानुल्लाह (थियोलॉजी विभाग), डॉ० सईदउज जमा (पॉलिटेक्निक विभाग), प्रो० इकबाल अली (पॉलिटेक्निक विभाग के पूर्व प्रिंसिपल), प्रो० रिज़वान हुसैन (अंग्रेज़ी विभाग), प्रोफेसर जुबैर अहमद (गणित विभाग), प्रो० वकील जाफरी (फिजिक्स विभाग), प्रो० जमशेद सिद्दीकी (कंप्यूटर साइंस विभाग), प्रो० हुमायूं मुराद (जूलॉजी विभाग) और प्रो० जफर (साइकोलॉजी विभाग) शामिल हैं।

विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी शाफे किदवई ने Twocircles.net को बताया, “ये सब काफी दुखद है, हम लोग काफी हताश हुए है इस खबर से। इनमे से तीन सेवारत टीचर थे।” किदवई कहते हैं कि कोविड और लॉकडाउन की वजह से यूनिवर्सिटी पिछले साल से ऑनलाइन मोड पर चल रही है। हालात काबू में आने के बाद इन सभी लोगों के लिए एक श्रद्धांजलि सभा रखी जायेगी। “हमें उनकी बहुत कमी खलने वाली है” आगे कहा।

आपको बता दें कि उनमें से एक डॉक्टर एहसानुल्लाह का इलाज यूनिवर्सिटी के ही अस्पताल जेएनएमसी में चल रहा था जबकि बाकी सारे दूसरे प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती थें। उन लोगों की मौत के बाद आधिकारिक वेबसाइट पर कुलपति तारिक मंसूर ने भी अपना शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि ये उनके लिए व्यक्तिगत तौर पर नुकसान है, “अपने व्यवहारों के चलते सारे प्रोफेसर अपने छात्र – छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे। पूरे विश्वविद्यालय के लिए ये बहुत बड़ा झटका है।”

“अदब के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के बाद भी, अदब अपना सिर्फ कुछ हिस्सा ही देता है।” प्रोफेसर मौलाबख्श की बातें दोहराते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एमए उर्दू के छात्र माज़ तकी ने उन्हें याद किया। माज़ तकी बताते हैं कि वो हरफन मौला आदमी थे बिलकुल अपने नाम की तरह। “उनकी क्लास में हमेशा सारे बच्चे मौजूद रहा करते थें क्योंकि वो बहुत ही दिलचस्प और प्यारी बातें किया करते थें।

59 वर्षीय प्रोफेसर मौलाबख्श का बुधवार को एक लंबे समय तक कोरोना से लड़ते हुए देहांत हो गया। मौलाबख्श का नाम उर्दू भाषा की दुनिया में बहुत प्रसिद्ध था। उन्होंने 4 पुस्तकें लिख रखी थीं और 26 से ज़्यादा किताबों का संपादन कर रखा था। उन्हें गद्य और साहित्य सिद्धांत के साथ आलोचना में महारत हासिल थी। वो स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी के छात्रों को पढ़ाया करते थे।

उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद अली जौहर ने कहा, “प्रोफेसर मौलाबख्श के संरक्षण के अंदर छात्रों ने खूब तरक्की की है। एक वरिष्ठ संकाय सदस्य के रूप में उनके नेतृत्व के माध्यम से, युवा शिक्षकों ने महान शैक्षिक और पेशेवर तौर पर प्रगति की थी। प्रत्येक छात्रों को उन्होंने अपनी शिक्षण और नेतृत्व की अनूठी शैली से समृद्ध कर रखा था”

उधर प्रोफेसर इकबाल अली के बारे यादें साझा करते हुए उनके पूर्व छात्र अब्दुल्लाह बिन मसूद ने ठंडी आह भरी, “अभी कल ही बात लगती है जब वो हमारे पॉलिटेक्निक विभाग के प्रिंसिपल हुआ करते थे। शेरो शायरी का उन्हे बहुत शौक था, मुझे अभी भी याद है, अल्लामा इकबाल से उन्हें काफी लगाव था।” मसूद ने बताया की वो बहुत याद आएंगे।

यूनिवर्सिटी पॉलिटेक्निक के विकास में प्रो० इकबाल अली का बहुत बड़ा हाथ रहा है। खासकर चमड़ा और जूते प्रौद्योगिकी, प्लास्टिक यूनिट, इत्यादि के विकास के लिए वो काफी हद तक जिम्मेदार हैं। इकबाल अपने जानने वालों में बहुत पसंद किए जाते थें और काफी प्रसिद्ध व्यक्ति थे। वो अंग्रेजी और उर्दू भाषा के विद्वान प्रो० असलूब अहमद अंसारी के दामाद थे।

“अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मात्र एक विश्वविद्यालय नहीं बल्कि एक संपन्न परिवार है, अगर परिवार में किसी को कुछ होता है तो दुख तो होगा ही” एएमयू से इंग्लिश में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे इबादुर रहमान ने बताया। “ये हमारे लिए एक साथ खड़े होने का समय है। टीचर लोग हमेशा से हमारी हिम्मत बनते आए हैं, आज इस खौफ के माहौल में हमारी बारी है एक दूसरे की हिम्मत बनने का।” इबादूर रहमान ने देश में फैल रहे कोविड संक्रमण को लेकर भी चिंता व्यक्त की।

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