स्टाफ़ रिपोर्टर।Twocircles.net
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस के एक सिपाही की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने दाढ़ी रखने के लिए उसके खिलाफ शुरू की गई विभागीय जांच को चुनौती दी थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उस पुलिस कांस्टेबल को दाढ़ी बढ़ाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है और कहा है कि उच्च अधिकारियों द्वारा इस संबंध में निर्देश दिए जाने के बावजूद दाढ़ी काटने से इनकार करना डायरेक्टर जनरल द्वारा 26 अक्टूबर, 2020 को जारी परिपत्र का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने एक पुलिस कांस्टेबल मोहम्मद फरमान द्वारा दायर एक रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने 5 नवंबर 2020 के उनके निलंबन और 29 जुलाई 2021 को उनके खिलाफ जारी चार्जशीट को चुनौती दी थी। अयोध्या के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने डीजीपी द्वारा परिपत्र को न मानने पर उनके खिलाफ कार्यवाई की। 26 अक्टूबर 2020 को परिपत्र जारी किया गया था जिसमें दाढ़ी काटने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने अपने याचिका में बताया था कि दाढ़ी रखना उसका मौलिक अधिकार हैं, जिसपर पीठ ने कहा, “भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 इस संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं करता है। सभी अधिकारों को उस संदर्भ और अक्षर और भावना में देखा जाना चाहिए जिसमें उन्हें संविधान के तहत तैयार किया गया है। तथ्य के रूप में भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत अधिकारों में अंतर्निर्मित प्रतिबंध हैं।”
यह देखते हुए कि अनुशासित बल के सदस्य द्वारा बढ़ती दाढ़ी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता है, पीठ ने कहा, “यह उचित वर्दी पहनने और उपस्थिति को बनाए रखने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने के लिए सक्षम प्राधिकारी का एक क्षेत्र है। अनुशासित बल के सदस्यों के लिए आवश्यक तरीके से और कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उचित वर्दी को बनाए रखने और पहनने के साथ-साथ शारीरिक उपस्थिति बनाए रखना अनुशासित बल के सदस्यों की पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है।
12 अगस्त को याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने अधिकारियों को याचिकाकर्ता के खिलाफ कानून के अनुसार विभागीय जांच करने का निर्देश दिया।
अतीत में भी पुलिस कर्मियों और सशस्त्र बलों के लोगों ने मुख्य रूप से धर्म आधार पर दाढ़ी रखने पर रोक लगाने वाले नियमों को चुनौती दे रखी है। हालांकि न्यायालयों ने उन्हें खारिज कर अब तक इन नियमों को बरकरार रखा है, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 25 का किसी तरह का अवेहलना नही माना गया है, जो नागरिकों को “विवेक और स्वतंत्र पेशे, अभ्यास और धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता” प्रदान करता है।