जिब्रानउद्दीन। Twocircles.net
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया जिसमें इकलौते मुस्लिम विधायक जमा खान सहित कुल 17 चेहरों ने मंत्री पद की शपथ ली। जातिगत समीकरणों के आसपास घूमती बिहार की राजनीति ने इस बार फिर अपना दबदबा मंत्रिमंडल के विस्तार में बनाए रखा, इस विस्तार में बीजेपी के 9 तथा जदयू के 8 मंत्री शामिल हैं गौरतलब है कि दोनों पार्टियों ने अपने कोटे से एक एक मुस्लिम नेताओं को मौका दिया.
बीजेपी के तरफ से चेहरा बने सैयद शाहनवाज हुसैन, वहीं जदयू के तरफhy55d0 से जमा खान को ये अवसर मिला। हालांकि एनडीए के चुनाव में उतारे गए कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में से एक भी जीत दर्ज ना करवा सके, फिर भी यह सवाल खड़ा हुआ है कि ये जमा खान कौन है ! जिन्होंने मात्र 2 हफ्ते पहले जदयू की सदस्यता ग्रहण की और अब उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय मिल गया ?
दरअसल यह ओवैसी – मायावती – कुशवाहा वाले जीडीएसएफ (ग्रांड डेमोक्रैटिक सेक्युलर फ्रंट) गठबंधन से विधायक बने 53 वर्षीय मोहम्मद जमा खान बसपा के इकलौते विधायक चुने गए थे जो बाद में विकास का हवाला देते हुए जदयू में जा शामिल हुए।
जमा खान कैमूर जिले के चैनपुर विधानसभा के एक छोटे से गांव नौघड़ा के रहने वाले हैं, ये वही जगह है जहां उन्होंने 2020 विधानसभा चुनाव में एक रिकॉर्ड तोड़ 94,296 मतों के साथ अपने नाम जीत दर्ज करवाया है, साथ ही बताते चलें कि 2015 के चुनाव में उनको इस ही सीट पर 58,242 वोटों के साथ मात्र 671 वोटों से बीजेपी के विधायक विजय कुमार सिन्हा से हार का सामना करना पड़ा था।
ज़मा खान एक बड़े किसान पुत्र है, उनके पिता का नाम साहब जमा खान है।उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कैमूर जिले में ही ग्रहण की लेकिन उसके बाद की पढ़ाई के लिए बनारस चले गए, उनकी रुचि राजनीतिक कार्यों में हमेशा से रही है यही वजह है कि वो बनारस डीएवी विधालय के छात्र संघ के अध्यक्ष भी बने और फिर अपने ग्रेजुएशन के दौरान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी राजनीतिक मामलों में सक्रिय रहे।
2002 में उन्होंने पहली बार विधान परिषद का चुनाव लड़ा वो उसमे बुरी तरह से हार गए थे लेकिन वो रुके नहीं और 2005 में बसपा के टिकट पर सीधा विधानसभा के चुनाव में कूद पड़े जहां उन्हें महाबली सिंह ने उन्हें हरा दिया। उसके बाद बसपा को छोड़ वो 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से जा मिले, यूं तो उन्हे जीत अभी भी नसीब नही हुई लेकिन एक बात साफ थी के जमा खान इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थे और धीरे धीरे वो अपने लिए एक मैदान बना रहे थे, जैसा की 2015 के चुनाव में साफ दिखने लगा था जब उनकी हार और विधायक बृज किशोर बिंद के जीत का फासला घटते हुए मात्र 671 मतों तक आ गया था, विधानसभा चुनाव के लिए इतने मतों का दायरा खास बड़ा नहीं होता। 2020 का चुनाव जब वो आश्चर्यजनक तरीके से 3 बार के विधायक बृज किशोर बिंद को हराकर चर्चा में आ गए। इससे भी ज़्यादा आश्चर्यजनक बात यह रही कि वो जदयू से मिलने कि अफवाहों को नकारते-नकारते सचमुच जा मिले।
चूंकि जमा खान बसपा के इकलौते विधायक थे इस वजह से दल-बदल कानून के हस्तक्षेप से भी वो बच गए जिसमे साफ बताया गया है कि 2/3 दल के विधायकों/सांसदों के साथ ही दल बदलने पर कार्यवाही से बच सकते हैं और दूसरी ओर नीतीश कुमार की नज़र भी किसी मुस्लिम विधायक को तलाश रही थी ताकि अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय सौंपा जा सके और आखिरकार राजनीति ने दोनों को मिलवा ही दिया।
दल बदलते समय जमा खान ने कहा था कि उन्होंने जीत बसपा के वजह से नहीं बल्कि अपनी बदौलत की है। हालांकि 2011 की चैनपुर विधानसभा की सेंसस रिपोर्ट को उठाकर थोड़ा सा गणित करते हैं तो परिणाम कुछ और कहता है। जनगणना अनुसार इस 206 चैनपुर विधानसभा सीट पर 469,587 मतदाता हैं जिसमे से 21% अनुसूचित जाति और 9.38% अनुसूचित जनजाति मतदाता हैं. सिर्फ यही आंकड़े बताते है की बसपा जैसी पार्टियों कि इस सीट पर कितनी मज़बूत पकड़ रही होगी ! ये अलग बात है कि एक समूह ने उनका जदयू में स्वागत भी किया है।