जाकिर अली त्यागी Two circles.net के लिए
पल्लबी घोष नाम वाली एक लड़की अब तक विंभिन्न जगहो पर कैद 5 हजार से ज्यादा मासूम लड़कियों को आज़ाद करा चुकी है। पल्लबी घोष के इस निडर और साहसी समाजसेवी के कदमों को कोई जोखिम डिगा नहीं सका है। बेहद हिम्मत वाली यह लड़की डीयू की छात्रा रही है और दिल्ली में ही रहती है। उसके जीवन को इसकी प्रेरणा सिर्फ एक अखबार की कतरन से मिली। पल्लबी मुख्यतः सेक्स वर्कर्स के बीच से नाबालिग़ बच्चियों का रेस्क्यू कराती है। काम बहुत ही मुश्किल है। वो ऐसा 8 साल से कर रही है।
2010 में दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी भाषा में स्नातक व 2012 में लैंगिग अध्ययन से मास्टर डिग्री हासिल करने वाली पल्लबी की उपलब्धि असाधारण है। पल्लबी अपनी कहानी सुनाती हुई बताती है कि उन्होंने 9 साल समाचार पत्र में एक ख़बर पढ़ी कि विश्वकप चल रहे हैं और सेक्स वर्कर्स की छुट्टी क्यों है ? इस ‘क्यों’ का जवाब तलाशती हुए मैंने अनुसंधान किया ! अपनी लंबी रिसर्च में पाया कि सेक्स वर्कर्स लोगों के लिए मनोरंजन का साधन हैं। 2011 वर्ल्ड कप की वजह से वो सेक्स वर्कर्स के पास न जाकर लोगों ने चल रहे क्रिकेट मैचों को मनोरंजन का साधन बना लिया था।
यहीं से मैंने वैश्यावृत्ति पर अनुसंधान करने की ठानी। उनके मन में कुछ सवाल थे जैसे कि वैश्यावृत्ति कौन करता है ! क्यों करता है ! किस क्षेत्र और श्रेणी की महिलाएं वैश्यावृत्ति करती हैं ! क्या वह यह सब अपनी मर्ज़ी से करती हैं? या इसका कारण कोई मज़बूरी है? मैंने जवाब तलाशने के लिए लंबे समय तक अनुसंधान किया और पाया कि वैश्यावृत्ति कोई भी अपने मन से नहीं करता। इसके पीछे ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, धोखा और प्रथा है। इसके लिए मैंने नौकरी,प्रेम,शादी का झांसा देकर बड़े पैमाने पर मानव तस्करी को भी वैश्यावृत्ति का मुख्य कारण पाया।
पल्लबी बताती है कि इसके बाद मैंने पाया कि इन सेक्स वर्कर में नाबालिग़ लड़कियों का बहुत अधिक शोषण हो रहा है और मुझे इन्हें इस दलदल से निकाल लेना चाहिए। उसके बाद मैंने 2012 में रेड कर रेस्क्यू करने वाली संस्था जॉइन की। पहली रेड का ज़िक्र करते हुए पल्लबी कहती हैं कि “सबसे पहली रेड दिल्ली के चर्चित रेड लाइट एरिया जी०बी० रोड की गई। जहां बंगाल की नाबालिग़ युवती का रेस्क्यू करने में हम सफल रहे, वो कहती हैं कि जैसे-जैसे वक़्त की सूई घूमती गई मैं सीखती गई । अब तक मैंने लगभग 5000 के करीब बच्चियों, महिलाओं व बंधुआ मज़दूरों को रेस्क्यू किया है। जो अब नई ज़िन्दगी पा चुके हैं। भावुक होती हुई पल्लबी कहती है कि इस दौरान अक्सर उनकी आंखें गीली हुई खासकर जब मैंने किसी को रेस्क्यू कर तस्करों के चंगुल से आज़ाद कराया तो मुझे धन्यावाद के रूप में बहते आंसू दिखे,जो मुझे भी रुला देते थे। वो कहती थी कि दीदी आपने हमें नई जिंदगी दी है. जब वह नया जीवन आरम्भ करतीं तो वो मुझे (रेस्क्यू की गई लड़कियां ) उपहार में नींबू और अन्य खेतों में उपजने वाली फसलों के फल भेजते थे।
पल्लबी बताती है कि उन्हें बेहद चुनौतियों का सामना करना पड़ा ! उनकी टीम के एक सदस्य को मानव तस्करों ने धौला कुआं मे गोली मार कर इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह जी०बी० रोड से रेस्क्यू की गई लड़कियों के केस में गवाह थी। उसके बाद तस्करों की तरफ़ से मुझे रुपये से लेकर तरह तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे। लेकिन मैंने आज तक किसी का ऑफर क़ुबूल नहीं किया, शायद यही वजह है कि 5000 लोगों के रेस्क्यू का आंकड़ा मैंने पार किया।
हाल ही में पल्लबी ने दिल्ली के नांगलोई से अगरबत्ती फैक्ट्री, बीकानेर, आगरा और बिहार के सीतामढ़ी से दशकों से अपने परिवारों से बिछड़े मानव तस्करी के पीड़ितों को रेस्क्यू कर तस्करों को चंगुल से आज़ाद करा परिजनों को सौंपा है। पल्लबी बताती है कि वो मासूम लड़कियों के रेस्क्यू के इस काम को जारी रखेंगी,अब यही उनके जीवन का लक्ष्य है।