Home Education ग्राऊंड रिपोर्ट : नही हो पाई ऑनलाइन पढ़ाई,बर्बाद हुआ एक साल

ग्राऊंड रिपोर्ट : नही हो पाई ऑनलाइन पढ़ाई,बर्बाद हुआ एक साल

आकिल हुसैन। Twocircles.net

फतेहपुर :  कोरोना एक वैश्विक महामारी के तौर पर तो सामने आया ही, साथ ही साथ इसके आर्थिक और सामाजिक पहलू भी खुल कर सामने आए। लाकडाउन के दौरान, असमानता की छिपी हुई दरारेंं एक दम उभर कर जैसे और गहरी हो गईंं।

स्वास्थ्य के अलावा भूख, रोज़गार, प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, डॉक्टर्स को उपलब्ध सुरक्षा किट्स एवं उनकी सुरक्षा, ये कुछ ऐसे मुद्दे थे जिनके बारे में लोग, मीडिया, सरकारे चर्चा कर रही थी और यह मुद्दे मीडिया में भी छाए रहे थे। लेकिन इन सब मे से एक बेहद जरूरी मुद्दा गायब  रहा वो है शिक्षा और शिक्षा के अधिकार का।

लाकडाउन के दौरान शिक्षा को जारी रखने का जो पहला माध्यम बना वो है डिजिटल माध्यम। स्कूलो में ज़ूम एप, गूगल मीट के जरिए बच्चों की पढ़ाई जारी रखी गई। हालांकि ऐसी व्यवस्था ज़्यादातर प्राईवेट स्कूलों में ही देखने को मिला थी। बहुत से बच्चे ऐसे थे जिनके पास डिजिटल शिक्षा प्राप्त करने के उपकरणों का अभाव था,जिसकी वज़ह से वे कही न कही पीछे रह गए हैं। उत्तर प्रदेश में दस फरवरी से छठी से आठवीं तक के स्कूल और एक मार्च से पहली से पांचवी तक की कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल खुले रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर के कुछ ऐसे बच्चों और उनके माता-पिता से जिनके पास आनलाइन पढ़ाई करने के कोई संसाधन नहीं थे और किन्हीं वजहों से लाकडाउन में उनकी पढ़ाई छूट गई , जिससे उनका नुकसान हुआ और वे कही न कही पीछे रह गए हैं –

9 वर्ष के रेहान जो शहर के एक प्राईवेट स्कूल में कक्षा 4 के छात्र हैं बताते हैं कि, ‘ लाकडाउन के दौरान स्कूल में जुलाई से आनलाइन पढ़ाई शुरू हुई थी, आनलाइन पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन की जरूरत पड़ी परंतु पापा ने दिलवाने से मना कर दिया था’। आगे कहते हैं कि ‘ क्लास 4 अब दोबारा पढ़ेंगे क्योंकि आनलाइन पढ़ाई तो चल रही थी लेकिन हम पढ़ नहीं पाए’। रेहान के पिता मुसतफ़ा जो कि सब्जी बेचने का काम करते हैं बताते हैं कि लाकडाउन के दौरान इतनी आमदनी थी नहीं कि बच्चे को पढ़ाई के लिए फोन दिलवा पाए, कहते हैं कि यह भी पता नहीं था कि लाकडाउन कब तक चले और आमदनी भी नहीं थी तो उस वक्त ज्यादा जरूरी क्या चीज़ हैं पहले वो करना था।

अनस अहमद जो 11 साल के हैं और कक्षा 5 के छात्र हैं। अनस के पिता रईस अहमद कहते हैं कि, ‘ उनकी एक छोटी सी गुमटी हैं जिसमें वो दैनिक उपयोग का सामान बेचते हैं, एक तरह से यह हैं कि रोज़ कमाते हैं तो रोज़ खाने को मिलता हैं’। वे बताते हैं कि लाकडाउन में कुछ महीने तक गुमटी खुली भी नहीं तो आमदनी बंद थी, बस किसी तरह करके घर का खर्चा चलाया। ऐसे में लड़के को पढ़ाई के लिए फोन दिलाने का कुछ सवाल ही नहीं था। बताते हैं कि या तो वो अपना घर का खर्चा चला लेते या फोन दिलवा देते। कहते हैं अब फिर से दाखिला दिलवा कर पढ़ाई करवाएंगे।

15 साल के मौहम्मद अमीन बताते हैं कि,’वो आईसीएससी बोर्ड के एक स्कूल में कक्षा 8 छात्र थे, लाकडाउन में कक्षा आनलाइन चल रही थी, लेकिन स्कूल की फीस ना जमा कर पाने के कारण वो आनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाए। बताते हैं कि अब वे मदरसे में पढ़ने के लिए जाने लगे हैं।

अमीन के पिता मौहम्मद शरीफ़ जो फल की दुकान लगाते हैं कहते हैं कि ‘काम धंधा करीब 6 महीने तक सब बंद रहा, फिर खुला भी तो धंधा एकदम मंदा रहा ऐसे में घर चलाना मुश्किल पड़ रहा था तो स्कूल की फ़ीस जमा नहीं कर पाए जिसकी वज़ह से लड़का आनलाइन क्लास नहीं कर पाया और एक साल ख़राब हुआ। शरीफ़ बताते हैं कि अब अनीस को पढ़ाई के लिए एक मदरसे भेजेंगे।

कक्षा 8 के अयान जो 14 वर्ष के  पिता मोहम्मद गुड्डु कहते हैं कि,’वो रोज़मर्रा कमाते और खाते हैं, लाकडाउन में आर्थिक स्थिति एकदम खराब हो गई थी। बताते हैं कि लड़के की आनलाइन पढ़ाई के लिए घर में फोन तो था लेकिन उसमें हर महीने 500 – 600 रूपए का नेट रिचार्ज कराना मुश्किल था लाकडाउन के दौरान क्योंकि कमाई कुछ नहीं थी बस जो बचा कर थोड़ा बहुत पैसा रखा था वही खर्चा हो रहा था’। अयान कहते हैं कि,’अब वो दूसरे स्कूल में कक्षा 8 में फिर से एडमिशन लेंगे और पढ़ाई को पूरा करेंगे’।

10 साल के  कासिम जो बहराइच के रहने वाले हैं लेकिन फतेहपुर में अपने भाई के साथ रहते हैं बताते हैं कि,’लाकडाउन में स्कूल की फीस नहीं जमा करी थी जिसकी वज़ह से नाम काट दिया गया और उनकी पढ़ाई का नुक़सान हुआ और एक साल बर्बाद हो गया’। कासिम के भाई मुख्तार जो कि गन्ना बेचने का काम करते हैं कहते हैं, लाकडाउन में कुछ काम था नहीं,गन्ना खरीदा था बेचने को सब खराब गया नुकसान हो गया बहुत मुश्किल से पेट पाला हैं इन 4 महीनों में,ऐसे में स्कूल की फीस कहां से जमा करते।

रेहान,अनस ,अमीन, अयान और कासिम की तरह के और भी हज़ारों बच्चे हैं जो आनलाइन पढ़ाई के पर्याप्त संसाधन न होने की वजह से जिनका पढ़ाई का साल ख़राब हो गया तो कुछ की पढ़ाई छूट गई। 2018 में किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन धारकोंं की संख्या सिर्फ 24% हैं  तो डिजिटल शिक्षा पर इस हालत में निर्भर नहीं रहा जा सकता हैं। कोरोना के समय में हमारी शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं को लेकर कमजोरियां और मुखर हों खुल कर आ चुकी हैं।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार  मानव संसाधन मंत्रालय की 2016-17 रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के विद्यालय जाने वाले बच्चों में 11.3 करोड़ बच्चें  सरकारी विद्यालयों में अपनी शिक्षा ग्रहण करते हैं।

कुछ को छोड़ देंं तो आज भी  विद्यालयों में पढ़़ने वाले कुछ छात्र  ऐसे परिवार से आते हैं जो आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कोरोनावायरस के कारण कही न कही पीछे छूट गए हैं। कोरोना का इन परिवारों पर प्रभाव, इनके बच्चों की शिक्षा की दिशा तय करेगा। कोरोना के कारण उनके रोज़गार और आय पर प्रभाव पड़ा हैं। लाकडाउन के दौरान एक बहुत बड़ा वर्ग जो शहरोंं से वापस अपने गांंव लौट आया था तो बच्चों के ड्राप आउट होने की संभावना बढ़ी होगी।