स्टाफ़ रिपोर्टर।Twocircles.net
कोलकाता के पार्क सर्कस मैदान में सीएए विरोधी आंदोलन की शुरुआत करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अस्मत जमील का सोमवार को 46 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। अस्मत जमील कैंसर से पीड़ित थी। मंगलवार दोपहर को उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया हैं।
पिछले साल सीएए बिल के विरोध में कोलकाता के सर्कस पार्क मैदान में दिल्ली शाहीन बाग़ की तर्ज पर धरना शुरू किया गया था,और यह धरना दिल्ली शाहीन बाग़ के बाद सबसे बडा़ धरना था और लगभग 83 दिन तक चला था लेकिन कोरोनावायरस के रोकथाम के लिए इस धरने को खत्म कर दिया गया था। कोलकाता के सर्कस पार्क के इस धरने को शुरू करने वाली महिला थी अस्मत जमील जो स्वयं एक सामाजिक कार्यकर्ता थी और एक गैर-सरकारी संगठन के माध्यम से चिकित्सा सहायता और सामाजिक सेवा प्रदान करती थी। सोमवार को उनका कैंसर से पीड़ित होने के कारण निधन हो गया। बताया जाता हैं कि किडनी ट्रांसप्लांट होने के बावजूद अस्मत इस विरोधी आंदोलन में बड़ी हिम्मत के साथ डटी रही थी।
अस्मत जमील का जन्म 24 मार्च 1974 को कोलकाता में हुआ था। भवानीपुर एजूकेशनल सोसाइटी कोलकाता से उन्होंने इतिहास में स्नातक की पढ़ाई की थी। अस्मत जमील के परिवार में उनके पति के अलावा दो बेटियां भी हैं।
अस्मत जमील सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान कहती थी कि अगर एक गृहिणी बाहर कदम रखती है तो कुछ वास्तव में बहुत भयानक हो रहा हैं । हम हिंदुस्तान की सरज़मीन, हिंदुस्तान की धरती, हिंदुस्तान की मिट्टी में रहते आए हैं। अस्मत जमील कहती थी कि सरकार ने एक ऐसा कानून पारित किया हैं जो देश को आपस में बांटने के लिए हैं।देश हमारे लिए एक मां की तरह हैं। एक मां के रूप में वो इस बात को समझती हैं कि एक मां को अपने बच्चों को विभाजित होता देख कितना दुख होता हैं । ऐसे विभाजन को बच्चों को बांटा जा रहा हैं जिससे बच्चों का जीवन खून में सराबोर हो गया, उनके दिलों में घृणा भर गई हैं ।
अबु जाफर मुल्ला जो सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान अस्मत जमील के साथ थे और नेशनल वेलफेयर पार्टी के छात्र विंग फ्रेटर्निटी मूवमेंट कमेटी के राष्ट्रीय सदस्य हैं Twocircles.net से बात करते हुए बताते हैं कि वो अस्मत जमील की मृत्यु से बहुत दुखी हैं। अस्मत एक बहादुर नेता थी, उनका निधन एक अपूरणीय क्षति है। अपनी बीमारी के बावजूद वह सीएए एनआरसी जैसे असंवैधानिक कानून के खिलाफ विरोध करने को आगे आई थी। उन्होंने कई लोगों को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने, अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए प्रेरित किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें एक देशभक्त की सच्ची देशभक्ति की भावना दिखाई देती थी। वह देश से प्यार करती थी तभी उन्होंने हमेशा से धर्म,जाति,नस्ल जैसे भेदों से उपर उठकर लोगों को समान हक़ दिलाने के लिए आवाज़ उठाती थी।
अस्मत ने पिछले साल 7 जनवरी को एक छोटे से समूह कोलकाता पार्क सर्कस तक नेतृत्व किया था जहां उन्होंने सरकार के नागरिकता क़ानून के वापस लेने तक प्रदर्शन ख़त्म करने से इंकार कर दिया था।
आने वाले दिनों में हज़ारों कि तादाद में उस आंदोलन से लोग जुड़ने लगे। नेता, समाज सेवी, एक्टिविस्ट, नौजवान और हर तरह के लोग रोज़ाना आंदोलन में अपनी उपस्थति दर्ज करवाते थे। अस्मत ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि “रोज़ाना 20 हज़ार से 25 हज़ार लोग प्रदर्शन मे शामिल होते थे, गणतंत्र दिवस को ये तादाद 1 लाख के ऊपर चली गई थी। आमतौर पर अवकाश के दिनों में भीड़ ज़्यादा उमड़ पड़ती थी।” लोगों ने उस पार्क का नाम कलकत्ता का शाहीन बाग रख दिया था।
अस्मत और उनकी सहयोगियों ने शुरू से आखिर तक प्रदर्शन को अराजनैतिक बनाए रखा। स्टेज से उठते एकता और सम्प्रदायिक सौहाद्र के नारे पूरे पार्क में हर रोज़ गूंजा करते थे। शाहीन बाग़ की दादियों से लेकर महात्मा गांधी के पोते तक, हर किसी ने कोलकाता मे चल रहे आंदोलन को बहुत सराहा था और इस सबका श्रेय अस्मत जमील को जाता है।
प्रदर्शन में बैठने के एक हफ्ते पहले ही उन्होंने ने अपना किडनी ट्रांसप्लांट करवाया था जिसमे उन्हे दवाइयों का खासा ख्याल रखना था। लेकिन फिर संक्रमण बढ़ने से कई महीनों तक तबीयत खराब रही। उनके परिवार वालों ने जानकारी दिया की अस्मत कैंसर से पीड़ित थी। परिवार में उनके पति के इलावा दो बेटियां हैं। राज्य के कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने अस्मत की मौत पर अपना शोक व्यक्त किया है। उनकी नमाज़-ए-जनाज़ा आज मंगलवार को सर्कस पार्क में पढ़ी गई जहां हजारों की तादाद में लोग शामिल हुए जिनमें औरतें भी शामिल थीं।