नज़ीर : संगीता से शाइस्ता बनने वाली युवती को 3 लाख की आर्थिक सुरक्षा का अदालती आदेश

तन्वी सुमन । Twocircles.Net

लव जिहाद पर बहस के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जीवनसाथी चुनने के अधिकार के साथ ही लड़की के आर्थिक सुरक्षा को लेकर अहम फैसला सुनाया। यह फैसला महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ता हुआ एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।


Support TwoCircles

यह मामला उत्तर प्रदेश के बिजनौर का है। शाइस्ता परवीन उर्फ ​​संगीता और उनके पति ने 16 दिसंबर, 2019 को कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वह दोनों बालिग है एवं शादी कर अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं, लेकिन उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उन्हें परेशान किया जा रहा है। रिट याचिका के अनुसार, संगीता ने इस्लाम का पालन करने का फैसला किया और शाइस्ता परवीन का नाम लिया। धर्मांतरित होने के बाद, उसने अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी की, जो एक मुस्लिम है। अपने बालिग होने का दावा करते हुए, संगीता ने अपनी हाई स्कूल मार्कशीट और पति ने अपना आधार कार्ड सबूत के रूप में दिखाया, जिसके अनुसार वह 1998 और 1997 में पैदा हुए थे।

यह सुनवाई न्यायमूर्ति सराल श्रीवास्तव की सिंगल बेंच में हुई। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सराल श्रीवास्तव ने कहा, “अदालत ने बार-बार कहा है कि जहां दो बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं, वहाँ किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप करने अधिकार नहीं है।“ माननीय न्यायालय ने याचिकाकर्ता के निजी ज़िंदगी में माँ-बाप के दखल ना देने के साथ ही शाइस्ता उर्फ संगीता के आर्थिक सुरक्षा को मद्दे नज़र रखते हुए, उनके पति को उनके बैंक खाते में तीन लाख की रकम को एक महीने के अंदर बचत खाते में जमा कराने का निर्देश दिया है। ऐसा करने के लिए पति को एक महीने का समय दिया गया है। दरअसल, निकाहनामे में मेहर की रकम काफी कम होने की वजह से कोर्ट ने आर्थिक सहायता का यह आदेश दिया। कोर्ट ने अपने दिए फैसले में कहा कि अपनी मर्जी से शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने और परिवार वालों की नाराजगी झेलने वाली वाली महिला को आर्थिक गारंटी मिलनी चाहिए। यह फैसला सुनाते वक़्त माननीय न्यायधीश ने इस बात को मद्दे नज़र रखा कि घर वालों की मर्जी के खिलाफ़ शादी में अकसर लड़कियाँ ज्यादा कमजोर अवस्था में होती हैं और उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी सबसे अहम हो जाती है। इसलिए, कोर्ट ने बिजनौर पुलिस को याचिकाकर्ता दंपति को पूर्ण रूप से सुरक्षा प्रदान कराने का आदेश दिया।

लव जिहाद के नाम पर जिस तरह दो बालिग लोगों की विवाहित जीवन और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने की कोशिश की जा रही उसको लेकर कोर्ट ने पिछले दो फैसलों का भी ज़िक्र किया। जैसे पहले मामले में lata Singh vs. State of UP 2006 Cr. L. J. 3312,  में अंतर्जातीय विवाह के उपरांत परिवार द्वारा उत्पीड़न के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस निर्देशक के जरिए फैसला जारी करवाया था-

“ भारत एक स्वतंत्र और लोकतंत्रिक देश है जिसमें एक व्यक्ति जब बालिग हो जाता है तो वह अपनी मर्जी से जिससे चाहे शादी कर सकता है। यदि इस फैसले से उसके परिवार वाले खुश नहीं हैं तो ज्यादा से ज्यादा वह अपने बेटे या बेटी के साथ अपना सामाजिक रिश्ता खत्म कर सकते हैं लेकिन वह किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं कर सकते हैं। इसलिए हम देश भर के प्रशासक/पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश देते हैं कि यदि कोई लड़का या लड़की अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करता है तो दंपति को किसी भी प्रकार से डरा धमका कर परेशान नहीं किया जा सकता है। “

Bhagwan Das vs. State (NCT of Delhi) 6 SSC 396, में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “युवा जोड़े जो प्यार में पड़ जाते हैं उन्हें  अक्सर कंगारू अदालतों(सज़ा देनेवाली गै़र-क़ानूनी अदालत) के प्रकोप से बचने के लिए पुलिस लाइंस या सुरक्षा घरों में शरण लेनी पड़ती है। हम लता सिंह मामले में मान चुके हैं कि ऑनर किलिंग में कुछ भी ‘सम्मानजनक’ नहीं है। यह सड़ी हुई मानसिकता वाले व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली बर्बर और क्रूर हत्याएं हैं। हमारी राय में यह हत्याएं, दुर्लभतम मामलों की श्रेणी के साथ आती हैं जो कि मृत्युदंड के योग्य हैं। अब वक़्त आ गया है कि इन बर्बर, संघी प्रथाओं पर मुहर लगाया जाए।“ अदालत के इस फैसले को एक सुखद नज़ीर माना जा रहा है।

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE