विशेष : रोहित वेमुला ‘परछाइयों से सितारों तक’

तन्वी सुमन।Twocircles.net

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित चक्रवर्ती वेमुला की आत्महत्या को आज 5 साल हो गए हैं। 26 वर्षीय दलित छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को यूनिवर्सिटी के होस्टल के एक कमरे में फांसी लगा कर अपनी जान दे दी थी। रोहित अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े हुए थे। रोहित के साथ चार अन्य छात्र थे, जिन्हे हैदराबाद विश्वविद्यालय से बंडारू दत्तारेया और एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी के दबाव में निलंबित कर दिया गया था। उस घटना के बाद रोहित ने खुद की जान ले ली। रोहित की माँ राधिका वेमुला आज भी इस सरकार के सामने अपने बेटे के लिए न्याय गुहार लगा रही हैं।


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रोहित वेमुला की डेथ ऐनवर्सरी  पर हमें ख़ुद को हमेशा यह याद दिलाते रहना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य किसी इंसान के अकेले  की परेशानी नहीं है, बल्कि हमारा पूरा सामाजिक ढांचा इसका जिम्मेदार है जो कि लिंग, जाति, वर्ग, विकलांगता और  धर्म जैसे कारकों द्वारा निर्धारित एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के साथ जुड़ा हुआ है।

रोहित की मौत एक संस्थागत हत्या थी। संस्थागत जातिवाद वह व्यवस्थित तरीका है जिसमें जाति आधारित भेदभाव प्रकट होता है। इसका अर्थ है कि जातिवाद समाज में व्यक्ति से परे एक स्तर पर अंतर्निहित है- जैसे शिक्षा, विवाह, सामाजिक मानदंड आदि।

रोहित एक प्रगतिशील युवा थे जिन्होंने अम्बेडकर, पेरियार और मार्क्स जैसे क्रांतिकारियों की शिक्षाओं को आत्मसात किया। एक अनुसंधान विद्वान जिन्होंने जातिगत राजनीति से लड़ने में अपने जीवन का भुगतान किया, जो शैक्षणिक संस्थानों को तबाह कर देता है। अपनी मौत के ठीक पहले रोहित ने एक खत लिखा था।

गुड मॉर्निंग,

जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे, तब मैं नहीं होऊंगा। मुझ पर नाराज मत होना। मैं जानता हूं कि आप में से कईयों ने मेरी परवाह की थी, मुझसे प्यार किया और मेरा पूरा ख्याल भी रखा। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। हमेशा से मुझ अपने आप से ही समस्या रही है। मैं अपनी आत्मा और अपने शरीर के बीच की दूरी को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं।

मैं तो हमेशा लेखक बनना चाहता था। विज्ञान का लेखक, कार्ल सेगन की तरह और लेकिन अंत में मैं महज यह एक पत्र लिख पा रहा हूं। मैंने विज्ञान, तारों और प्रकृति से प्रेम किया, फिर मैंने लोगों को चाहा, यह जाने बगैर कि लोग जाने कब से प्रकृति से दूर हो चुके। हमारी अनुभूतियां नकली हो गई हैं हमारे प्रेम में बनावट है। हमारे विश्वासों में दुराग्रह है। इस घड़ी मैं आहत नहीं हूं, दुखी भी नहीं, बस अपने आपसे बेखबर हूं।

एक इंसान की कीमत, उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सीमित रह पाई है। कोई भी फिल्ड हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्‍ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया। इस तरह का पत्र मैं पहली बार लिख रहा हूं। आखिरी खत लिखने का यह मेरा पहला अनुभव है। अगर यह कदम सार्थक न हो पाए तो मुझे माफ कीजिएगा।

हो सकता है इस दुनिया, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझ पाने में, मैं गलत था। कोई जल्दी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता था। एक जिंदगी शुरू करने की हड़बड़ी में था। इसी क्षण में, कुछ लोगों के लिए जिंदगी अभिशाप है। मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक हादसा है। अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं सका। अतीत का एक क्षुद्र बच्चा।

इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं। अपने लिए भी बेपरवाह। यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या कहा जा रहा है। मैं मौत के बाद की कहानियों, भूतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता। अगर किसी बात पर मैं विश्वास करता हूं तो वह यह है कि मैं अब सितारों तक का सफर कर सकता हूं। और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं।

जो भी इस खत को पढ़ रहे हैं, अगर आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे सात महीने की फेलोशिप‌ मिलनी बाकी है जो एक लाख और 75 हजार रुपये है, कृपया ये कोशिश करें कि वह मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे 40 हजार रुपये के करीब रामजी को देना है। उसने कभी इन पैसों को मुझसे नहीं मांगा, मगर कृपा करके ये पैसे उसे दे दिए जाएं।

मेरी अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण और सहज रहने दें। ऐसा व्यवहार करें कि लगे जैसे मैं आया और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाएं। यह समझ लें कि जिंदा रहने की बजाय मैं मरने से खुश हूं।

‘परछाइयों से सितारों तक’

उमा अन्ना, मुझे माफ कीजिएगा कि ऐसा करने के लिए मैं आपके कमरे का इस्तेमाल कर रहा हूं।

एएसए (आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन) परिवार के लिए, माफ करना मैं आप सबको निराश कर रहा हूं। आपने मुझे बेहद प्यार किया। मैं उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहा हूं।

आखिर बार के लिए जय भीम

मैं औपचरिकताएं लिखना भूल गया। ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से। ये मेरा फैसला है और मैं इसके लिए जिम्मेदार हूं। मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए।

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