नेहाल अहमद ,TwoCircles.net के लिए
भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उत्तर प्रदेश में होने वाली आगामी विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव एवं बिहार में होने वाले विधान परिषद के उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा बीते शनिवार 16 जनवरी को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी है। इसमें एक सीट पर बिहार के लिए भाजपा द्वारा सय्यद शाहनवाज़ हुसैन को उम्मीदवार बनाया गया है। इस ख़बर के आते ही राजनैतिक गलियारों में उथल-पुथल का माहौल शुरू हो चुका है और यह ख़बर आम लोगों एवं विश्लेषकों के बीच काफ़ी चर्चा का विषय बन चुका है।
बिहार विधान परिषद के लिए दो सीटों पर उप चुनाव होने हैं। दोनों सीटें भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी और विनोद नारायण झा के इस्तीफे के बाद खाली हुई थीं। इनमें एक सीट पर भाजपा ने शाहनवाज़ हुसैन की नाम की घोषणा की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सय्यद शाहनवाज़ हुसैन को लेकर बनी इस ख़बर के बाद दिल्ली की राजनीति से उनकी विदाई मानी जा रही है।
वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सय्यद शाहनवाज़ हुसैन जनता से रूबरू हो रहे हैं। बीते शनिवार को अपने उम्मीदवारी की घोषणा के रोज़ ही भागलपुर के पीरपैंती के बाखरपुर, ख़बाशपुर और बुद्धचक में उन्होंने जनसभाओं को संबोधित किया। विधान परिषद उम्मीदवार बनने के बाद भागलपुर में सैयद शाहनवाज हुसैन ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि पार्टी का हर फैसला मुझे मान्य है।
बीते बिहार विधानसभा सभा चुनाव में जिस तरह से AIMIM ने जीत दर्ज की है। उसके बाद सय्यद शाहनवाज़ हुसैन की बिहार की राजनीति में वापसी के कई मायने तलाशे जा रहे हैं। अल्पसंख्यकों के सामने एक मुस्लिम चेहरे का आना कोई नया सियासी समीकरण दे पायेगा या नहीं। यह कहना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी । केवल इस चुनाव में ही नहीं बल्कि इसके आगे-पीछे की कई राजनीतिक परिस्थितियों को प्रभावित करने में बीजेपी का यह दाव कारगर साबित हो सकता है। भाजपा अब जब अपनी पार्टी द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से कतराती है वहीं दूसरी ओर सीधे बिहार में अपने पुराने मुस्लिम नेता सय्यद शाहनवाज़ हुसैन की वापसी करना एक अहम घटना मानी जा रही है।
याद रहे कि लोकसभा चुनाव में शाहनवाज़ हुसैन को टिकट न मिलने से उन्हें काफ़ी ‘शर्मिंदगी’ का सामना करना पड़ा था। उनको पार्टी द्वारा पीछे धकेलने की आरोप लगाकर लोग भाजपा की आलोचना करते रहे। यह ख़बर एक मायने में उन लोगों को ‘निराश’ कर सकती है जो ये सोंच रहे थे कि पार्टी ने शाहनवाज़ को नजरअंदाज़ कर दिया है लेकिन दिल्ली से बाहर बिहार का रास्ता दिखाना शाहनवाज़ के सियासी कद को किस तरह प्रभावित करता है ये देखना दिलचस्प होगा।
अब सय्यद शाहनवाज़ हुसैन छह साल बाद कोई चुनाव लड़ने जा रहे हैं। नामांकन की आख़री तारीख़ 18 जनवरी सोमवार को मुकेश सहनी के साथ नामांकन का पर्चा भर सकते हैं।
बताते चलें कि शाहनवाज़ हुसैन का बिहार और ख़ास कर सीमांचल से रिश्ता पुराना रहा है। इस बार शाहनवाज़ हुसैन की बिहार में सियासी दाल गलती है या नहीं ये देखना दिलचस्प होगा।