आसमोहम्मद कैफ । Twocircles.net
सिराज आज हैदराबाद पहुंचते ही तुरंत कब्रिस्तान गए । इसके बाद वो अपनी अम्मी से मिले जो इद्दत में है। उनके भाई इस्माइल के मुताबिक कब्रिस्तान में उन्होंने अपने वालिद को खिराजे अक़ीदत पेश की। यहां उनके एक दोस्त मोहम्मद शफी भी साथ थे। उन्होंने बताया कि सिराज की आंखों में एक तकलीफ साफ-साफ पढ़ी जा रही थी। चेहरे पर तनाव था और लगता था अभी रो पड़ेंगे। देश के हीरो बन चुके सिराज की कामयाबी को ना उनके अब्बू गौस मोहम्मद देख पाए और ना ही सिराज अपने अब्बू को आखिरी बार देख पाए। यह सिराज को मिली कामयाबी के बीच की त्रासदी है। सिराज के अब्बू आज यह भी नही देख पाए कि उनके बेटे की आमद का सारा शहर इंतेजार कर रहा है। आज वो सड़के भी सिराज के स्वागत को तरस रही थी जिन पर कभी सिराज के अब्बू ने रिक्शा चलाकर सिराज को क्रिकेट खिलाने के लिए मशक्कत की थी। हैदराबाद पहुंचकर सिराज ने कहा कि उनके सभी विकेट उनके अब्बू को समर्पित है।
सिराज के हैदराबाद आने तक एयरपोर्ट से लेकर उसके घर तक और कब्रिस्तान तक सिराज के आसपास मीडिया की भीड़ थे दर्जनों कैमरे थे। बस उनके अब्बू नही थे। काश उनके अब्बू यह सब देखते,अम्मी भी यह सब नही देख पाई वो भी इद्दत (इस्लामिक प्रक्रिया) में बैठी है। 2 महीने पहले ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाने वाले ये सिराज वो सिराज नही थे। इन दो महीनों में उन्होंने एकदम अलग दुनिया देख ली और उनकी जिंदगी एकदम बदल गई । उनके भाई इस्माइल ने बताया कि मेरे अब्बू का खवाब था कि सिराज भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट खेले। अब्बू का ख्वाब तो पूरा हुआ मगर वो ये देख नही पाएं।
26 साल के मोहम्मद सिराज ऑस्ट्रेलिया की हाल में ही संपन्न हुई टेस्ट सीरीज में सर्वाधिक विकेट लेने वाले भारतीय तेज गेंदबाज है। उन्होंने इस सीरीज के तीन मैचों के 13 विकेट लिए और निर्णायक अंतिम टेस्ट मैच में गाबा के मैदान पर दूसरी पारी में उनके द्वारा लिए गए पांच विकेट अद्भुत थे यही जीत का आधार भी बने। खेल के लिहाज से यह बहुत सामान्य बात है मगर इसके अलावा बहुत कुछ ऐसा है जिसकी वजह से देश भर सिराज की तारीफ हो रही है उनके बारे में बात हो रही है और उन्हें एक रोल मॉडल बताया जा रहा है।
चार टेस्ट मैच की चोट और दूसरी समस्याओ से जूझ रही भारतीय क्रिकेट टीम के तमाम युवा खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया। चोटी के 8 खिलाड़ी टीम से बाहर हो गए और ‘लड़कों’ ने हार न मानने के जुनून के साथ ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को उनके ही घर मे धो दिया। ख़ासकर अंतिम टेस्ट मैच में उम्मीद के एकदम विपरीत जाकर अनुभवहीन मगर जोशीले खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया को मात देकर गावस्कर बॉर्डर ट्रॉफी को जीत लिया।
टीम के इस प्रदर्शन के बीच तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज सबसे बड़े नायक बनकर उभरे। सिर्फ दो टेस्ट के अनुभव के साथ उन्होंने भारत की गेंदबाजी को लीड किया। गुरुवार की सुबह आज वो हैदराबाद पहुंचे तो उनके घर महामारी के चलते भीड़ तो नही जुटी मगर लोगों की आवाजाही लगातार लगी हुई थी। हैदराबाद की स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद शफी ने बताया कि यूं तो हैदराबाद ने मोहम्मद अजहरुद्दीन, सानिया मिर्ज़ा और वी वी एस लक्ष्मण जैसे बड़े खिलाड़ी देखे हैं मगर मोहम्मद सिराज जैसी इज्जत और प्यार उन्होंने तो नही देखा है,इसका अपना महत्व है। सिराज की कहानी एकदम अलग है वो एक बेहद गरीब परिवार से आया ,उसके पिता इन्हीं सड़कों पर रिक्शा चलाते थे। वो बड़े परिवार से था जहां खर्चे पूरे नही होते। उसे किस्मत से मौका मिला। उसके अब्बू की उसकी पहली सीरीज में ही मौत हो गई। वो तनाव में था।उस पर नस्लीय टिप्पणी हुई। बार – बार हुई। मगर वो टूटा नही। उसे आप सिर्फ एक सामान्य खिलाड़ी नही कह सकते वो एक ऐसी शख़्सियत है जो अंदर से भी लड़ रहा था और बाहर से भी। हालात अगर साज़गार न भी तो भी दम लगाकर लड़ना चाहिए । यह हमें सिराज से सीखना चाहिए। वो इसलिए ही स्पेशल है।
सिराज सिडनी टेस्ट में राष्ट्रीय गान के समय अपने जज्बातों पर काबू नहीं पा सके और रो पड़े थे, बाद में उन्होंने बताया था कि उन्हें अपने अब्बू की याद आ गई थी कि काश उनके अब्बू उन्हें आज देश के लिए खेलता देखते। एयरपोर्ट से सीधे कब्रिस्तान पहुंचने वाले सिराज के साथ उनके भाई इस्माइल भी थे उन्होंने बताया कि सिराज 6 महीने बाद घर लौट कर आया और अम्मी से गले बुरी तरह रोने लगा। अम्मी और सिराज दोनो को संभालना मुश्किल था।
‘मियां भाई ‘ के निक नेम वाले सिराज को लेकर एक अलग तरह की बात भी हो रही है। उनसे खासकर मुस्लिम नोजवानों को प्रेरणा लेने को कहा जा रहा है। कहा जा रहा है कि मौजूदा हालात में मुस्लिम युवाओं में निराशा का माहौल है और उन्हें सिराज को रोल मॉडल मानकर उससे सीखना चाहिए कि परिस्थिति कैसी भी हो वो नायक हो सकते हैं। मुस्लिम मामलों के जानकार मोहम्मद उमर एडवोकेट कहते हैं कि सिराज पर एक से अधिक बार नस्लीय टिप्पणी की गई थी, वो अपने पिता को खो चुके थे। उनके सीनियर खिलाड़ी चोटिल थे और कम वक्त में उनके कंधों पर टीम की गेंदबाजी का बोझ था। इसके साथ उनपर यह भी दबाव था कि अगर वो अच्छा नही खेल पाएं तो दुबारा वापस नही आ पाएंगे। इतने दबाव के बाद उन्होंने हौसला बनाये रखें। आज मुश्किलें के बीच मुस्लिमों नोजवानों को बहानेबाज़ी से बचकर परिस्थितियों का रोना बंद कर नकारात्मकता का त्याग करना चाहिए और अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए। सिराज ने दो महीने में यह पाठ पढ़ा दिया है।