तन्वी सुमन । Twocircles.net
पत्रकारों के खिलाफ दर्ज किए जा रहे मामलों में एक और नाम जुड़ गया है। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में पुलिस ने द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की है, जिसमें परिवार के दावों पर एक कहानी लिखी गई। यह एफआईआर एक खबर को लेकर है जो 26 जनवरी के उपद्रव में जिस लड़के की मौत हुई उसके परिजनों से बात करके लिखी गयी है। इस खबर को सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने ट्विटर पर पोस्ट किया था।
शुक्रवार को द वायर के प्रकाशित लेख में नवनीत सिंह के परिवार का हवाला दिया गया था। उन्होंने दिल्ली पुलिस के उन दावों को खारिज किया था कि किसान की मौत उसके ट्रैक्टर के पलटने से हुई। परिवार का आरोप है कि शख्स को गोली मारी गई थी। लेख में, नवदीप सिंह के दादा, हरदीप सिंह डिबिडा ने दावा किया कि उनमें से एक डॉक्टर ने उन्हें एक गोली के घाव के बारे में बताया। “हमें डॉक्टर द्वारा कहा गया था कि उन्होंने स्पष्ट रूप से गोली की चोट को देखा है, और फिर हमने उनके शरीर का शांति से अंतिम संस्कार किया,” हरदीप सिंह ने द वायर को यह कहा था। “लेकिन हमें धोखा दिया गया, जैसा कि [पोस्टमॉर्टम] रिपोर्ट में सामने आया है, ऐसा नहीं कहा गया। डॉक्टर ने मुझे यह भी बताया कि भले ही उन्होंने गोली की चोट देखी हो, लेकिन वे कुछ भी नहीं कर सकते क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए हैं। ”
हालांकि, डॉक्टरों ने इसका खंडन किया है। 27 जनवरी को दोपहर 2 बजे किए गए पोस्टमॉर्टम विश्लेषण में कहा गया कि “मौत का कारण सदमे और रक्तस्राव है, जो एन्टी-मॉर्टम सिर की चोट के परिणामस्वरूप है”। दिल्ली पुलिस ने भी यह दावा किया है कि यही मौत का कारण था। रामपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकारियों की ओर से कोई अन्य आधिकारिक बयान नहीं दिया गया था।
द वायर की रिपोर्ट में पुलिस और डॉक्टरों द्वारा परिवार के दावों को खारिज करने के इन बयानों को भी शामिल किया गया था। लेकिन FIR में यह आरोप लगाया गया कि लेख ने सरकारी चिकित्सा अधिकारी को गलत तरीके से पेश किया था ताकि आम जनता को “उकसाया” जाए।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153-B (आरोप-प्रत्यारोप, राष्ट्रीय-एकीकरण के लिए पूर्वाग्रह) और 505 (2) (सार्वजनिक दुराचरण के लिए अनुकूल बयान) के तहत एक मामला राज्य के रामपुर जिले में दर्ज किया गया है। जानकारी के अनुसार, FIR रामपुर जिले के एक निवासी संजु तुरहा की शिकायत पर दर्ज की गई थी। मुकदमा दर्ज होने के तुरंत बाद सिद्धार्थ ने अपने ट्वीट में लिखा कि, “उत्तर प्रदेश में मृतक के परिजन अगर पुलिस प्रक्रिया या फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर संदेह जाहिर करते हैं तो उसे मीडिया के द्वारा रिपोर्ट करना भी गुनाह हो गया है।“
सिद्धार्थ के साथ ही काँग्रेस सांसद शशि थरूर और इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ,मृणाल पांडे और ज़फर आगा पर भी दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किए हैं।
सिद्धार्थ पर दर्ज मुकदमे के साथ ही बीते रात दिल्ली पुलिस द्वारा किसान आंदोलन को कवर कर रहे दो स्वतंत्र पत्रकार, मनदीप पुनिया और धर्मेन्द्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। मनदीप के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 186, 323 और 353 के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं। पुनिया पर सिंघू बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस के एसचओ से अभद्रता के आरोप लगाए गए हैं।
हिरासत में लिए जाने से कुछ घंटे पहले पुनिया ने शुक्रवार को सिंघू बॉर्डर पर हुई हिंसा के संबंध में फेसबुक पर एक लाइव विडिओ शेयर किया था। उन्होंने दावा किया था कि कैसे खुद को स्थानीय लोग होने का दावा करने वाली भीड़ ने आंदोलनस्थल पर पुलिस की मौजूदगी में पथराव किया था।
पुनिया अभी भी हिरासत में हैं और पुलिस उनके बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर रही है। जबकि आज सुबह 5 बजे धर्मेन्द्र सिंह को अंडरटेकिंग लेटर लेकर पुलिस ने रिहा कर दिया।
मनदीप की गिरफ़्तारी और इसके साथ ही आए दिन सरकार का स्वतंत्र मीडिया की आवाज को दबाने के रोष में आज पत्रकारों ने दोपहर 2 बजे दिल्ली पुलिस मुख्यालय, पटेल चौक के पास धरण प्रदर्शन कर अपना विरोध जाहिर किया है।