उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ओवैसी और राजभर के गठबंधन की तरफ से छोड़े गए मुस्लिम मुख्यमंत्री के शगूफ़े से राजनीति में हलचल है। वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी बता रहे हैं कि देश के भिन्न राज्यों में कब और कैसे मुस्लिम सीएम बने है। साथ ही वो इसकी संभावनाओं पर भी चर्चा कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में चर्चा में आया यह मुद्दा ‘भागीदारी संकल्प मोर्चा’ को फ़ायदा पहुंचाएगा या फिर बीजेपी के सत्ता में वापसी की ही राह को हमवार करेगा, यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा। इससे मुस्लिम समाज में यह विचार विमर्श जरूर शुरू हो गया है कि पहली बार किसी नेता ने मुस्लिम मुख्यमंत्री की बात तो कम से कम की है। मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने के ऐलान के बाद से राजभर मुस्लिम समाज को भी चर्चा का विषय बन गए हैं।
यूपी में मुस्लिम मुख्यमंत्री दूर की कौड़ी
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालात को देखते हुए तो फिलहाल मुस्लिम मुख्यमंत्री बहुत दूर की कौड़ी क्या एकदम नामुमकिन लगता है। भविष्य में चलकर ऐसे हालात बने बनेंगे इसकी भी कोई गारंटी फ़िलहाल नहीं है। उत्तर प्रदेश की राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जिस चरम पर पहुंच चुकी है वहां अगले दो-तीन दशक तो इसकी ज़रा भी गुंजाइश नहीं दिखती है। उत्तर प्रदेश ही क्या देश के किसी भी राज्य में फ़िलहाल किसी मुसलमान के मुख्यमंत्री बनने के कोई आसार नज़र नहीं आते हैं।पिछले कुछ साल से देश भर में मुसलमानों को लेकर जो नफ़रत का माहौल बना है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भी इसकी संभावना नहीं दिखती।
सात राज्यों में रहे हैं मुस्लिम मुख्यमंत्री
ऐसा नहीं है कि भारत के किस राज्य में कभी कोई मुस्लिम मुख्यमंत्री न बना हो। जम्मू कश्मीर देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है। लिहाज़ा वहां आज़ादी के बाद से मुख्यमंत्री मुसलमान ही रहा है।
जम्मू कश्मीर के अलावा पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में थोड़े-थोड़े समय के लिए मुस्लिम मुख्यमंत्री रहे हैं। ये सभी मुख्यमंत्री 1960, 70 और 80 के दशक में हुए हैं। ऐसे मौक़े भी आए कि देश में एक साथ दो या तीन मुस्लिम मुख्यमंत्री थे। 1990 के दशक के बाद किसी भी प्रदेश या केंद्र शासित प्रदेश में कोई मुस्लिम मुख्यमंत्री तो छोड़िए उप मुख्यमंत्री तक नहीं बना।
पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री
जम्मू कश्मीर के अलावा देश का पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी (पुराना नाम पांडिचेरी) में बना। कांग्रेस ने 1967 में एम ओ एच फ़रूक़ को मुख्यमंत्री बनाया। वह करीब 11 महीने मुख्यमंत्री रहे। एम ओ एच फ़रूक़ सबसे ज्यादा तीन बार और सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मुस्लिम नेता हैं। फ़ारुक़ दूसरी बार 1969 से लेकर 2972 तक करीब 3 साल डीएमके की तरफ़ से मुख्यमंत्री रहे। आख़िरी बार वो कांग्रेस से 1985 से लेकर 1990 तक पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री रहे। इस तरह फ़रूक़ ही पहले और आख़िरी मुस्लिम मुख्यमंत्री रहे।
राजस्थान में बरकतुल्लाह ख़ान
राज्यों की बात करें तो सबसे पहले राजस्थान में कांग्रेस ने 1971 में बरकतुल्लाह ख़ान को मुख्यमंत्री बनाया। बरकतुल्लाह ख़ान उस समय कांग्रेस के क़द्दावर नेताओं में गिने जाते थे। मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी उन्होंने बख़ूबी निभाई। राजस्थान में मुसलमानों की आबादी बमुश्किल तमाम 10% है। इसके बावजूद कांग्रेस ने ख़ान को मुख्यमंत्री बनाकर सही मायनों में अपने और देश के धर्मनिरपेक्ष होने का परिचय दिया। बरकतुल्लाह ख़ान 2 साल 1 महीने और 2 दिन मुख्यमंत्री रहे। वो सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मुस्लिम नेता रहे हैं।
मणिपुर में अलीमुद्दीन
दूसरे मुख्यमंत्री मणिपुर में मोहम्मद अलीमुद्दीन बने। मणिपुर पीपुल्स पार्टी के मोहम्मद अलीमुद्दीन 23 मार्च 1972 को मुख्यमंत्री बने। वह क़रीब साल भर तक मुख्यमंत्री रहे। इस हिसाब से देखें तो उस वक्त देश में करीब साल भर तक एक साथ दो मुस्लिम मुख्यमंत्री थे। राजस्थान में बरकतुल्लाह ख़़ान और मणिपुर में मोहम्मद अलीमुद्दीन। अलीमुद्दीन मणिपुर में दो बाार मुख्यमंत्री रहे हैं। दूसरी बार वह 4 मार्च 1974 से 9 जुलाई 1974 तक करीब 4 महीने मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद मणिपुर मेंं न तो अलीमुद्दीन न कोई और मुस्लिम नेता मुख्यमंत्री बन पाया।
बिहार में अब्दुल ग़फ़ूर
कांग्रेस ने राज्यों में दूसरा मुख्यमंत्री बिहार में अब्दुल ग़फ़ूर के रूप में बनाया। उन्हें 2 जुलाई 1973 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। उस वक्त देश में बरकतुल्लाह ख़ान और मोहम्मद अलीमुद्दीन पहले से तो मुख्यमंत्री थे। अब्दुल ग़फ़ूर शपथ लेने के बाद देश में करीब महीने भर तक तीन मुस्लिम मुख्यमंत्री थे। क़रीब महीने भर बाद बरकतुल्लाह ख़ान को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था। ग़फ़ूर बिहार में 1975 में आपातकाल की घोषणा से पहले अप्रैल तक मुख्यमंत्री रहे। कहा जाता है कि अब्दुल ग़फ़ूर को मुख्यमंत्री बनाए जाने के इंदिरा गांधी के फ़ैसले के ख़िलाफ़ ही 1974 में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी। बाद में इसी ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का रूप लिया। इसी की वजह से 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी। अब्दुल ग़फ़ूर क़रीब पौने दो साल मुख्यमंत्री रहे।
केरल में मोहम्मद कोया
केरल में मुस्लिम लीग के सीके मोहम्मद कोया 1979 में मुख्यमंत्री बने। वो सिर्फ़ 53 दिन ही मुख्यमंत्री रहे। मुस्लिम मुख्यमंत्रियों में सबसे कम उन्हीं का कार्यकाल है। मोहम्मद कोया सत्ता में हिस्सेदारी के फार्मूले के तहत मुख्यमंत्री बने थे। केरल में 1960 और 1970 के दशक में ‘यूनाइटेड फ्रंट’ हुआ करता था। इसमें सीपीआई, आरएसपी, कांग्रेस और मुस्लिम लीग समेत कुल 6 पार्टियां शामिल थीं। 1977 में जब ‘यूनाइटेड फ्रंट’ सत्ता में आया। पहले कांग्रेस के के. करुणाकरण मुख्यमंत्री बने। वो सिर्फ़ 32 दिन मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद क़रीब डेढ़ साल तक ए के एंटोनी मुख्यमंत्री रहे। उनेके बाद सीपीआई के पी के वासुदेव नायर मुख्यमंत्री बने। वो क़रीब 11 महीने मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद मुख्यमंत्री की कमान मुस्लिम लीग के हाथों में आई और सीके मोहम्मद कोया बने। सिर्फ़ 53 दिन विधानसभा भंग कर दी गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
महाराष्ट्र में ए आर अंतुले
कांग्रेस ने तीसरा मुख्यमंत्री महाराष्ट्र में अब्दुल रहमान अंतुले को बनाया। अंतुले 9 जून 1980 को मुख्यमंत्री बने और करीब डेढ़ साल 12 जनवरी 1982 तक मुख्यमंत्री रहे। अंतुले महाराष्ट्र में कांग्रेस के क़द्दावर नेताओं में गिने जाते थे। कहा जाता है कि किसी मसले पर विचार करने के लिए इंदिरा गांधी ने उनसे राय पूछी थी तो उन्होंने पलट कर जवाब दिया था कि मुझे मुख्यमंत्री बना दीजिए मैं करके दिखा दूंगा। इंदिरा गांधी को उनका यह अंदाज़ इतना पसंद आया कि अगले ही दिन अंतुले को मुख्यमंत्री बना दिया गया। अंतुले ने जो इंदिरा गांधी से कहा था वो करके भी दिखा दिया। हालांकि बाद में अंतुले पर सीमेंट घोटाले के आरोप भी लगे थे। यह अलग बात है कि वो उन आरोपों से वह बरी हो गए थे।
असम में अनवरा तैमूर
महाराष्ट्र में यार अंतुले को मुख्यमंत्री बनाए जाने के करीब 6 महीने बाद कांग्रेस ने असम की कमान सैयद अनवरा तैमूर को सौंपी। अनवर अनवर तैमूर देश में एकमात्र मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री रहीं हैं। पहली भी और आख़िरी भी। वो भी क़रीब डेढ़ साल मुख्यमंत्री रहीं। मुख्यमंत्री बनने से पहले वो 1972 और 1978 में विधायक चुनी गई थीं। असम यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रहीं अनवरा तैमूर को 6 दिसंबर 1980 को मुख्यमंत्री बनाया गया था और वो 30 जून 1981 तक इस पद पर रहीं। उनकेे मुख्यमंत्री प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। इसलिए उनका कार्यकाल सिर्फ डेढ़ साल का ही रहा। क़रीब साल भर तक देश में अनवरा तैमूर और ए आर अंतुले के रूप में दो मुस्लिम मुख्यमंत्री थे।
इन राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने के सभी फ़ार्मूले पूरे होते दिखते हैं। जहां राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र और असम में पूर्ण बहुमत की सरकार के दौरान कांग्रेस ने अपने क़द्दावर मुस्लिम नेताओं को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी। वहीं पांडिचेरी में डीएमके ने भी यही करके दिखाया। केरल में सी के मोहम्मद कोया और मणिपुर में मोहम्मद अलीमुद्दीन गठबंधन की राजनीति के तहत मुख्यमंत्री बने। यह उस ज़माने की बात है जब राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं था। आज सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चरम पर है। कांग्रेस और सपा-बसपा जैसी पार्टियां मुसलमानों को टिकट देते हुए भी कतराती हैं कि कहीं उनका हिंदू वोटर नाराज़ होकर बीजेपी में ना भाग जाए। इन हालात में किसी राज्य में मुस्लिम मुख्यमंत्री की अपेक्षा करना पूरी तरह बेमानी है।