शेर अली अफरीदी : एक भारतीय क्रांतिकारी जिसने जेल में ही ब्रिटिश गवर्नर जनरल को मार डाला


आकिल हुसैन। Twocircles.net

आज 11 मार्च है और आज ही दिन शेर अली आफरीदी को फांसी दी गई थी। आपने आज़ादी के बहुत क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ा होगा या सुना होगा। लेकिन कुछ नायक ऐसे भी है जिनके बारें में किताबों में शायद नहीं पढ़ाया जाता। एक ऐसे ही क्रांतिकारी शेर अली अफरीदी हैं। शेर अली अफरीदी आजादी का गुमनाम सिपाही था जिसने अंग्रेजी हुकूमत के गवर्नर जनरल की चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसने अंग्रेज़ों की बुनियाद हिला दी थी। क्योंकि उस समय वायसराय एक राष्ट्रपति के बराबर होता था।


Support TwoCircles

शेर अली अफरीदी अफगानिस्तान के ख़ैबर पख़्तून इलाके के पास जमरूद नाम के एक गांव का रहने वाला था जो पहले भारत में ही आता था । शेर अली ख़ान वो शख्स था जिसको 30 साल की उम्र में ही काले पानी की सज़ा हुई थी। शेर अली अफरीदी पेशावर के अंग्रेज़ी कमिश्नर के ऑफ़िस में काम करता था। शेर अली इससे पहले अंबाला में ब्रिटिश घुड़सवारी रेजीमेंट में भी काम कर चुका था। यहां तक कि 1857 की पहली जंग ए आज़ादी में रोहिलखंड और अवध के जंग में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा भी थे। अंग्रेज़ी कमांडर रेनेल टेलर उसकी बहादुरी से इतना खुश हुआ था कि उसको तोहफ़े में एक घोड़ा, एक पिस्टल और बहादुरी का बखान करते हुए एक सर्टिफ़िकेट भी दिया।

जिस तरह गांधीजी को साउथ अफ्रीका में ट्रेन से उतारने पर उनको नस्ल भेद के खिलाफ गुस्सा आया, जिस तरह करतार सिंह सराभा ने सैनफ्रांसिस्को में अपमान झेला और गदर आंदोलन से जुड़े, जिस तरह लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसने से कई क्रांतिकारियों का खून खौल उठा, ठीक वैसा ही शेर अली अफरीदी के साथ हुआ।

एक पारिवारिक विवाद के दौरान पेशावर में उसके हाथों उसके एक रिश्तेदार की मौत हो गई थी। शेर अली ने इस मामले में खुद को निर्दोष बताया लेकिन उसकी नहीं सुनी गई और 2 अप्रैल 1867 को उसे मौत की सजा सुनाई गई। अपील करने पर इस सजा को काला पानी यानी अंडमान में उम्र कैद के तौर पर बदल दिया गया था। कराची और मुंबई होते हुए उसको 1869 में अंडमान के जेल मे पहुचा दिया गया था। शेर अली को एक बात का अहसास हुआ कि अंग्रेजी लोगों को कई कई हत्याओं को अंजाम देने के बाद भी सजा नहीं मिलती और भारतीयों को दोषी न होने पर भी सजा दे दी जाती है।

काला पानी की जेल में शेर अली अफरीदी की मुलाकात बहुत से ऐसे क्रांतिकारियो से हुई जो बग़ावत के जुर्म में काला पानी में सज़ा काट रहे थे। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त तक अफ़रीदी क्रांतिकारी आंदोलन से प्रेरित नहीं थे। एक रिपोर्ट के अनुसार काला पानी जेल में मौलवी अहमदुल्ला सादिक़पुरी से मिलने के बाद शेर अली अफरीदी के अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने के जज़्बात पैदा हुए।

ऐसा कहा जाता है कि उस समय ब्रिटिश अधिकारी ना सिर्फ भारत की ग़रीबी का मज़ाक उड़ाया करते थे बल्कि काले पानी की सज़ा काट रहे क़ैदियों से भी अभद्र व्यवहार करते थे और शायद यही बात शेर अली अफरीदी से बर्दाश्त नहीं हुई। उन्होंने देश को अंग्रेज़ो से छुटकारा दिलाने और भारत से अंग्रेज़ो को खदेड़ने के लिए लिए एक नया तरीका निकाला। उन्होंने जो तरीक़ा निकाला वो यह था कि अंग्रेज़ों का भरोसा जीतों और इसके जरिए उनके नज़दीक पहुंच उनके सबसे बड़े अफ़सर को ही क़त्ल कर दे, जिससे अंग्रेज़ों के अंदर ख़ौफ़ पैदा हो जाए और वो हिन्दुस्तान छोड़ कर भीगने पर मजबूर हो जाएं।

जेल में उनके अच्छे व्यवहार की वजह से वर्ष 1871 में उन्हें पोर्ट ब्लेयर पर नाई का काम करने की इजाज़त दे दी गई।अब वे नाई बन कर जिंदगी गुजारने लगे और उस पल का इंतेज़ार करने लगे कि कब यहा पर उस वक्त के गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो का आना हो ताकि वे उसको मार सके और भारत को अंग्रेज़ो से छुटकारा मिल सके‌। उन्हे अच्छी तरह मालूम था अगर वे नाई का काम करेंगे तो अंग्रेज़ो के करीब जाने का मौका मिल सकेगा। जेल में उसे जो भी काम उसको दिया जाता ठीक तरह पूरा करता जिससे वो अधिकारियों का चहेता बन गया था।

लॉर्ड मेयो की गिनती भारत के घुमक्‍कड़ वायसरायों में होती थी। तभी एक दिन गर्वनर जनरल ऑफ़ इंडिया के अंडमान आने का कार्यक्रम सुनिश्चित हो गया था। यह सुनकर शेर अली अफरीदी खुश हो गया कि जिस वक्त का उसको इंतजार था अब वो वक्त आ चुका हैं। उसने नाई वाले काम के लिए मिले अस्तुरे को खतरनाक हथियार बनाया। जिससे वो लार्ड मेयो को मारा जा सके। शेर अली ने अपने जीवन को दांव लगाने का निश्चय किया | वह अपने प्राणों की बलि देकर भी गवर्नर जनरल को मारकर बदला लेना चाहता था |

8 फरवरी 1872 को शेर अली अफरीदी को ये मौका मिल गया जब गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में सेल्युलर जेल के कैदियों का हाल जानने और सुरक्षा समीक्षा करने के लिए वहां पहुंचा। लार्ड मेयो का दौरा पूरा हो चुका था। शेर अली अफरीदी पूरे दिन एक नाव में छिपकर बैठा रहा जिससे वो उसे मार सके। काफ़ी शाम हो गई थी जिससे लगभग अंधेरा हो चुका था। लॉर्ड मेयो अपनी नाव की तरफ लौट रहा था। वहीं छिपे बैठे शेर अली ने अंधेरे का फायदा उठाकर गवर्नर जनरल के सुरक्षा को धात बताते हुए लार्ड मेयो पर अस्तुरे से हमला कर दिया। कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही लार्ड मेयो खून से लथपथ हो चुके थे। लार्ड मेयो को इलाज के लिए कलकत्ता ले जाते लेकिन इससे पहले ही लार्ड मेयो ने दम तोड़ दिया था। मौके पर से शेर अली अफरीदी को गवर्नर जनरल के सुरक्षा दस्ते ने पकड़ लिया। ऐसा बताया जाता है कि मेयो की हत्या के बाद शेर अली को भी उसी जहाज पर लाया गया जिस पर मेयो का पार्थिव शरीर रखा हुआ था। वहां पर जब अंग्रेज अधिकारियों ने शेर अली से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो उसका जवाब था ‘खुदा ने हुक्म दिया।’ जब उससे ये पूछा गया कि ‘इस काम में किसी ने उसकी मदद की तो उसने कहा ‘मर्द शरीक कोई नहीं था। इसमें शरीक खुदा है।’

इस घटना से पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में दहशत फैल गई। लंदन तक बात पहुंची तो हर कोई स्तब्ध रह गया।‌ गवर्नर जनरल की हत्या ने उस वक्त की अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिला कर रख दिया था। बाद में शेर अली आफरीदी को इस कार्य के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। 11 मार्च 1872 के दिन पोर्ट ब्लेयर के बॉस वाइपर द्वीप पर चुपचाप शेर अली अफरीदी को फांसी दे दी गई | शेर अली को मरने का कोई दुःख नही था | वह हंसते हंसते फांसी पर चढ़ गया | शेर अली का नाम इतना प्रसिद्ध नही हो सका परन्तु उसकी शहादत गौरवपूर्ण थी |

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE