फिल्म 1232 किमी० सुनाएगा प्रवासी मजदूरों की अनसुनी कहानी!

जिब्रान उद्दीन । Twocircles.Net

कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन को एक साल बीत चुका है। उस समय के न्यूज़ चैनलों द्वारा हमें यकीन दिलवाया गया था की स्थिति काबू में है और “सामान्य” है। लेकिन जो हमें नही बताया गया वो ये था की हिंदुस्तान उसी दौरान देश के इतिहास में अबतक के सबसे बड़े पलायन का साक्षी बन रहा था। देश में लाखों प्रवासी मजदूर भोजन की तलाश में अपने परिवार समेत उस “सामान्य” स्थिति में घर वापस लौटने के लिए संघर्ष कर रहें थें। इस ही संघर्ष की एक कहानी को बयान करेगी निर्देशक विनोद कापड़ी की आगामी फिल्म।


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फिल्म 1232 किमी० के माध्यम से विनोद ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को फिर से जीवंत कर दिया है। फिल्म में दर्शाया जाएगा की कैसे जिन शहरों को मजदूरों ने अपने हाथों से बनाया वहां उनकी आय के रास्ते अब छीन लिए गए थे । भूख की लड़ाई ने उन्हें घर लौटने पर मजबूर तो किया लेकिन गाड़ियों और बसों के रद्द होने की वजह से इतना लंबा सफर पैदल या साइकिल पर ही तय करना पड़ा। आपको बता दें की घर लौटने के क्रम में कई मजदूरों ने अपनी जानें गंवा दी थी।

डिज्नी+ हॉटस्टार, फिल्म 1232 किमी० को रिलीज़ करने के लिए तैयार है। इस फिल्म में लॉकडाउन लगने के प्रभाव में आए लाखों प्रवासी मजदूरों की संघर्ष भरी कहानियों का निचोड़ है। मुख्यताः फिल्म में 7 प्रवासी मजदूरों के सफर को दिखाया गया है, जो लॉकडाउन के दौरान अपनी दुर्लभ साइकिलों से 1232 किलोमीटर की दूरी तय कर दिल्ली से सहरसा अपने गांव पहुंचे थें।

दो मिनट के ट्रेलर में उनके चेहरों पर आशा की किरणों को साफ देखा जा सकता है। उनका एकमात्र लक्ष्य अपने परिवार से मिलना था। उनके सामने कई मुश्किलें आईं, उन्हे नदियों को तैर कर पार करना पड़ा। एक तो बेहोश होकर ज़मीन पर भी गिर पड़े लेकिन वो रुके नहीं और उन्होंने हार नहीं माना। उनमें से एक बोलते हैं, की चाहे वो मर जाएं लेकिन उन्हे खुशी इस बात की होगी के उन्होंने परिवार से मिलने की पूरी कोशिश तो की। कई इस फिल्म की लक्षित दर्शक मध्यम वर्ग के लोगों को बता रहे हैं।

निर्देशक विनोद कापड़ी ने एक साक्षात्कार में बताया था की वो लॉकडाउन के घोषणा के बाद से ही प्रवासी मजदूरों के खबरों की लगातार जानकारी ले रहे थें। “मैंने बिहार के इन प्रवासी मजदूरों के बारे में पिछले साल एक ट्वीट में पढ़ा था, जो चार दिनों से भूखे थे। साथ में एक फोन नंबर भी था, तो मैंने उन्हें फोन किया और उन्हें भोजन दिलवाने में मदद की। उसके बाद वो सारे मुझे नियमित रूप से फोन करने लगे।” विनोद ने उन्हे खाद्य सामग्री के लिए बैंक खाते में ज़रूरत अनुसार पैसे भी भेजवाएं थें।

विनोद ने आगे बताया की वो सब अपने घरों को लौटना चाहते थे, “28 अप्रैल को जब कुछ लोग भोजन और सामग्री के साथ दिल्ली में उनके निवास स्थान पर पहुंचे, तो वो वहां नहीं थें। मैंने उन्हें फोन किया, तब प्रवासियों ने बताया कि वे सहरसा, बिहार अपने घर के लिए रवाना हो गए हैं”, कारण था की वो भोजन की तलाश से तंग आ चुके थे।

विनोद ये सुनकर काफी चौंक गए क्योंकि बस और गाड़ियां दोनो रद्द थीं। पूछने पर उन लोगों ने बताया की उन्होंने 1200-1500 रुपए घर से मंगवाकर सेकंड हैंड साइकिल खरीदी थी। “वो साइकिल से ही घर जा रहे थे। फोन से बात होते समय वो दिल्ली से 70 मील दूर हापुड़ में थें।”

इधर विनोद भी मजदूरों से मिलने को अपने घर से निकल पड़ें। दोनों की मुलाकात मुरादाबाद में हुई जहां उन्हें पता चला की 30 की तादाद में निकले हुए उन मजदूरों को रास्ते में पुलिस द्वारा पीटा गया था तभी वो तीन समूहों में विभाजित हो गए थे। “मैं सात प्रवासी मजदूरों के एक समूह के साथ उनके गाँव सहरसा तक गया। 1232 किलोमीटर की दूरी उन्होंने अपनी दुर्लभ साइकिलों के साथ तय की।” विनोद ने बताया की उस पूरे सफर में 7 दिनों का वक्त लगा था।

पत्रकार से फिल्म निर्माता बने विनोद कापड़ी को न केवल फिल्म के निदेशक के रूप में श्रेय दिया जाएगा बल्कि उन्होंने इसे प्रायोजित भी किया है। ऑस्कर पुरस्कार विजेता गुनत मोंगा और स्मृति मुंद्रा फिल्म के कार्यकारी प्रोड्यूसर हैं। गुलजार ने विशाल भारद्वाज के साथ मिलकर मधुर संगीत से वास्तविक जीवन की इस कहानी में जोश डालने का काम किया है। गाने में आवाजें रेखा भारद्वाज और सुखविंदर सिंह की है।

लॉकडाउन में चंडीगढ़ से बिहार आए हुए एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद जमशेद को जब Twocircles.net ने बताया की आपके ही जैसे लोगों के संघर्ष की कहानी पर एक फिल्म आ रही है तो उनके चेहरे पर एक पल के लिए भी उत्साह नहीं दिखा। कारण जानने पर उन्होंने बताया “हम फिल्में तो ऐसे भी नही देखते हैं। और जो हम लोगों पर बीती हैं उसे फिल्मों में देखकर क्या ही खुशी मना लेंगे ! लॉकडाउन में जिंदा घर पहुंच गए थें, यही अल्लाह की मेहरबानी है।” जमशेद ने आगे बताया, “अगर दिखाना ही है तो अमीरों को दिखाइए वो फिल्म, जिन्हे अंदाजा हो की हम लोग किन परिस्थितियों में अपना जीवन गुज़ारते हैं।”

एक दूसरे प्रवासी मजदूर रहे फिरोज़ अहमद की प्रतिक्रिया थोड़ी अलग देखने को मिली जिन्होंने हल्के उत्साह के साथ बताया की “फिल्म तो बहुत ठीक है सर, लोगों को भी तो पता चले, हमारे साथ हुए नाइंसाफी का।” लेकिन अगले ही पल फिरोज़ कुछ सोचते हुए निराशजनक लहज़े में आ गए और धीमी आवाज़ में कहा “इससे कुछ फायदा नही होगा। गरीब ऐसे ही मरते रहेंगे और बड़े लोगों को कोई फर्क नही पड़ेगा।” जब हमने उन्हे बताया की ये फिल्म डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज़ होगी तो उनके निराशा का स्तर और बढ़ गया चूंकि उन्हे ओटीटी प्लेटफार्म हॉटस्टार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

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