वसीम अकरम त्यागी Twocircles.net के लिए
उत्तर प्रदेश में के बाराबंकी जिले में 100 साल पुरानी एक मस्जिद को ज़मीदोज़ कर दिया गया है। यह विध्वंस प्रशासन ने अदालत के आदेश को ताक पर रखकर किया है। मस्जिद कमेटी का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन ने अदालत के आदेश की अवहेलना करते हुए मस्जिद को ज़मींदोज़ कर दिया। मस्जिद कमेटी के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक़ क़रीब 100 वर्ष पुरानी मस्जिद ग़रीब नवाज़ अल मारूफ बाराबंकी के राम सनेही घाट तहसील क्षेत्र में स्थित थी। जिसका निर्माण ब्रिटिश काल के समय हुआ था। इसी सप्ताह सोमवार 17 मई को, पुलिस और सुरक्षा बलों ने पहले इलाके में जाकर लोगों को हटाया, फिर बुलडोजर की सहायता से मस्जिद की इमारत को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद मस्जिद के मलबे को एक नदी में फेंक दिया गया था। प्रशासन ने मस्जिद गिराने से पहले तक़रीबन एक मील के दायरे में सुरक्षाबलों को तैनात करके आवागमन भी बंद कर दिया था।
मस्जिद कमेटी का दावा
मस्जिद कमेटी के सदस्य और इमाम मौलाना अब्दुल मुस्तफा कहते हैं कि यह मस्जिद सैंकड़ों साल पुरानी थी जिसमें हजारों लोग दिन में पांच बार नमाज़ अदा करने के लिए आ रहे थे। अब्दुल मुस्तफ़ा के मुताबिक़ “जब मस्जिद को तोड़ा जा रहा था सभी मुसलमान डरे हुए थे, इसलिए कोई भी मस्जिद के पास नहीं गया और न ही किसी ने विरोध करने की हिम्मत की। आज भी कई दर्जन लोग पुलिस के डर से अपना घर छोड़कर दूसरे इलाकों में छिपे हुए हैं। उधर बाराबंकी के जिलाधिकारी आदर्श सिंह गिराई गई इमारत को मस्जिद मानने से ही इनकार कर रहे हैं। आदर्श सिंह कहते हैं कि “मैं किसी मस्जिद को नहीं जानता,” उन्होंने कहा “मुझे पता है कि यह एक अवैध ढांचा था। उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसे अवैध घोषित कर दिया था। इसलिए क्षेत्रीय वरिष्ठ अधिकारी ने कार्रवाई की। इसके अलावा मैं और कुछ नहीं कहूंगा।”
अदालत के आदेश का उल्लघंन
भले ही जिलाधिकारी मस्जिद को गिराकर उसे एक अवैध ढ़ांचा बताते हुए कोर्ट के आदेश का हवाला दे रहे हों लेकिन अदालत का आदेश कुछ और ही बयां कर रहा है। दस्तावेज़ों के मुताबिक़ मस्जिद का विध्वंस 24 अप्रैल को जारी एक हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन था, जिसमें कहा गया था कि राज्य में इमारतों को 31 मई तक “महामारी के प्रकोप के मद्देनजर” किसी भी बेदखली या विध्वंस से बचाया जाना चाहिए।
इस तरह हुई कार्रवाई
स्थानीय प्रशासन ने 15 मार्च को, मस्जिद कमेटी को एक नोटिस दिया जिसमें लव कुश यादव बनाम यूपी सरकार के मामले में आए हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए मस्जिद को अतिक्रमण बताया। मस्जिद कमेटी का कहना है कि उन्होंने इस नोटिस के जवाब में एक विस्तृत प्रतिक्रिया भेजी, जिसमें दस्तावेजों के साथ यह भी बताया गया कि इमारत में 1959 से बिजली का कनेक्शन था और मस्जिद किसी भी तरह से सड़क को बाधित नहीं कर रही थी, लेकिन प्रशासन ने इसको नज़रअंदाज़ कर दिया। इस पूरे प्रकरण पर बारीकी से नज़र रख रहे सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट सैयद फारूक़ कहते हैं कि प्रशासन ने अदालत के आदेश की अवमानना की है, जिस मस्जिद को अतिक्रमण बताकर ज़मींदोज़ किया गया है, वह तक़रीबन 100 वर्ष पुरानी थी, मस्जिद के पास छः दशक से अधिक पुराना है। फारूक़ बताते हैं कि प्रशासन ने 19 मार्च को, स्थानीय मुसलमानों को जुमा की नमाज़ के लिए मस्जिद में प्रवेश करने से रोक दिया गया, इसकी वजह से क्षेत्र में तनाव और विरोध प्रदर्शन हुआ। विरोध कर रहे 35 से अधिक स्थानीय मुसलमानों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया, कईयों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया, वहीं एक प्रदर्शनकारी पर रासुका भी लगाया गया है।
कोर्ट के आदेश की उड़ी धज्जियां
17 मई को रामसनेही घाट तहसील पर मस्जिद पर की गई स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से टकराती है। कोर्ट ने 24 अप्रैल को एक फैसले में, महामारी की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, आदेश दिया कि “बेदखली, बेदखली या विध्वंस का कोई भी आदेश 31.05.21 तक स्थगित रहेगा”। उधर बाराबंकी जिला प्रशासन ने ध्वस्त इमारत को “आवासीय परिसर” के रूप में वर्णित किया और कहा कि 2 अप्रैल के एक अदालत के आदेश ने साबित कर दिया था कि “प्रश्न में आवासीय निर्माण अवैध है”। उन्होंने साइट पर मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं किया, भले ही इसकी उपस्थिति को पहले अधिकारिक तौर पर 15 मार्च को मस्जिद को दिए गए नोटिस में और फिर 18 मार्च को उच्च न्यायालय की याचिका में स्वीकार किया गया था।
मस्जिद कमेटी के सदस्यों ने का कहना है कि उन्हें दो अप्रैल को मस्जिद के संबंध में अदालत के किसी भी फैसले से अवगत नहीं कराया गया है। मई के अंत तक सभी विध्वंस को स्थगित करने के अदालत के आदेश के बावजूद, प्रशासन ने 17 मई की दोपहर को मस्जिद को गिरा दिया। प्रशासन की इस कार्रवाई को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी ग़ैरक़ानूनी बताया है। बोर्ड के अध्यक्ष अध्यक्ष जुफर अहमद फारूक़ी ने एक बयान में कहा है “मैं बाराबंकी प्रशासन और खासतौर से राम सनेही घाट के एसडीएम द्वारा 100 पुरानी मस्जिद को अवैध बताकर ज़मींदोज़ किये जाने की निंदा करता हूं। यह न सिर्फ क़ानून के ख़िलाफ है बल्कि शक्तियों का दुरुपयोग है साथ ही हाईकोर्ट द्वारा 24 अप्रैल 2021 को पारित आदेश का भी पूर्ण उल्लघंन है। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रेल वक्फ बोर्ड मस्जिद की बहाली, उच्च स्तरीय न्यायिक जांच, एंव दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ कार्रावाई के लिये हाईकोर्ट में वाद योजित करेगा।
शुरु हुई सियासत
सैयद फारूक़ बताते हैं कि मस्जिद को ज़मींदोज़ किये जाने से सिर्फ सत्तारूढ़ भाजपा के स्थानीय विधायक एंव सांसद ही खुश हैं, बाक़ी लोग प्रशासन की इस कार्रावाई की निंदा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में अपना ठीक-ठाक दख़ल रखने वाले किसान क्रांति दल के अध्यक्ष अमरेश मिश्रा मस्जिद को ज़मींदोज़ किये जाने के लिये भाजपा विधायक और एसडीएम को दोषी मान रहे हैं। अमरेश मिश्रा का कहना है कि “दरियाबाद भाजपा विधायक सतीश शर्मा और सांप्रदायिक मानसिकता के जिलाधिकारी एंव उप-जिलाधिकारी इसके लिये ज़िम्मेदार हैं। 2022 मे भाजपा उत्तर-प्रदेश मे बुरी तरह हार रही है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही एकमात्र विकल्प है इसके पास। लेकिन बाराबंकी और अवध के हिंदू झांसे मे नही आएंगें। उन्हे याद है कि इसी भाजपा प्रशासन ने काशी के सैंकड़ो प्राचीन मंदिर, साधु-संतों के विरोध के बावजूद, गिरा दिये। प्रदेश अध्यक्ष राम जी तिवारी के नेतृत्व मे राष्ट्रवादी किसान क्रांती दल इस गैर कानूनी कृत्य के खिलाफ व्यापक आंदोलन छेड़ेगा!”
मस्जिद को गिराए जाने की घटना के लगभग दो दिन बाद सूबे की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की आंखें खुली हैं। अब समाजवादी पार्टी ने अपना एक दल बाराबंकी भेजने का निर्णय लिया है। इस दल में बाराबंकी के स्थानीय सपा नेता और सपा के कई क़द्दावर नेता भी शामिल हैं। सैयद फारूक़ सपा की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। फारूक़ कहते हैं कि 15 मार्च को प्रशासन की ओर से नोटिस आया, उसके बाद मस्जिद बचाने के लिये प्रदर्शन करने वाले लोगों को जेल भेजा गया, लेकिन तब तक सपा की नींद नहीं टूटी और अब जब मस्जिद को ज़मीदोज़ किये हुए दो दिन हो गए हैं, तब सपा के नेता यहां क्या करने आ रहे हैं। सैयद फारूक़ सपा मुखिया अखिलेश यादव को संबोधित करते हुए सवाल करते हैं कि क्या अखिलेश यादव यह गारंटी लेंगे कि सूबे में सत्तापरिवर्तन के बाद अगर वे मुख्यमंत्री बनते हैं तो मस्जिद का पुनिर्माण कराएंगे और मस्जिद बचाने के लिये प्रदर्शन करने वाले लोगों पर लगे हुए मुक़दमे वापस लेंगे। फारूक़ कहते हैं कि मौजूदा सरकार हर एक मोर्चे पर विफल रही है, अब चूंकि विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है इसलिये अपनी विफलता छिपाने के लिये और ध्रुवीकरण कराने के इरादे से मस्जिद को ज़मींदोज़ किया गया है। सैयद फारूक़ कहते हैं कि वे प्रशासन की इस कार्रवाई के ख़िलाफ कोर्ट जाएंगे।