जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net
उत्तर प्रदेश के तालानगरी में सोमवार रात हुए एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल मनीष नाम के व्यक्ति की जान चली गई होती अगर समय पर आज़म मुबीन किसी मसीहे की तरह वहां नहीं पहुंचते। वैसे तो दुर्घटनास्थल पर पहले से भी कई तमाशबीन मौजूद थें लेकिन उनमें से किसी ने भी पुलिस या अस्पताल को कॉल करने की हिम्मत नही की थी। इधर सड़क के किनारे पड़ा मनीष अपनी आखरी सांसें गिनने पर मजबूर हो रहा था, उसी समय आज़म वहां पहुंचे और मनीष को एक जीवन दान दिलवा दिया।
मामला तालानगरी में हेरिटेज स्कूल के पास का है जहां सोमवार रात 8 बजे के करीब बाइक पर सवार मनीष की टक्कर लोडर गाड़ी से हो गई। गाड़ी में रफ्तार तेज़ होने की वजह से मनीष काफी दूर सड़क के किनारे फेंका गए और गंभीर रूप से घायल हो गए। दुर्घटना की खबर सुनके कई लोग मनीष के पास दौड़े और घेरकर खड़े हो गए लेकिन किसी ने भी मदद के लिए अपना हाथ आगे को नही बढ़ाया।
मनीष के शरीर से खून लगातार तेज़ी से बहे जा रहा था और मनीष भी अब हार मानने को थें ही कि इतने में किसी फरिश्ते की तरह उस रास्ते से गुज़र रहे, एएमयू के छात्र आज़म मुबीन वहां आ पहुंचे। उन्होंने मामले को परखते ही सबसे पहले आनन फानन में एंबुलेंस और पुलिस को फोन लगा दिया।
पास के ही क्वार्सी थाने के एसएचओ तो जल्द ही दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए लेकिन एंबुलेंस में अभी भी काफी समय लग रहा था। मनीष की बिगड़ती हालत देख आज़म ने अपने भाई काज़िम अकरम की मदद से मनीष को अपनी ही गाड़ी में सवार किया और फौरन शहर के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल लेकर पहुंच गए। मनीष के शरीर से निकलते खून से उनकी गाड़ी के अंदर की सीट पूरी लाल हो गई थी। आज़म ने मनीष के घरवालों के इंतजार में कोई देर किए बिना अपने ही ज़िम्मेदारी पर उसका इलाज शुरू करवाया।
डॉक्टर के अनुसार अगर मनीष के इलाज में थोड़ी भी और देर हो जाती तो उसकी जान जा सकती थी। अगली सुबह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आज़म मुबीन की परीक्षा थी, उसके बावजूद आज़म और उनके साथ काज़िम अकरम अस्पताल में डंटे रहे जबतक की मनीष के घरवाले वहां नही आ गए। जब डॉक्टरों ने सूचना दिया कि मनीष अब खतरे से बाहर है तो उसके घरवाले आज़म मुबीन का धन्यवाद करते नही थक रहे थें।
आज़म मुबीन ने TwoCircles.Net के सामने पूरे मामले पर प्रकाश डाला, कहते हैं, “जब मै वहां पहुंचा तो मैने देखा कि मनीष लहूलुहान था और उसका बहुत ज्यादा खून बह चुका था। चूंकि वो दर्द से चींख रहा था तो मुझसे रहा नही गया और इंसानियत का फ़र्ज़ निभाते हुए मैं उसकी मदद को आगे आया।” आज़म ने ये भी बताया कि वहां खड़े अमुक दर्शकों को देखकर अजीब सा लग रहा था कि न जाने क्यों वो सारे लोग बस खड़े होकर तमाशा देखें जा रहे थे लेकिन कोई कुछ नही कर रहा था।
आज़म आगे बोलते हैं कि, “मेरा धर्म भी मुझे यही सिखाता है कि जिसने किसी एक इंसान को भी बचाया तो मानो उसने सारी इंसानियत को बचा लिया।” आज़म ने इस सीख का श्रेय अपनी माता, साजदा बेगम और पिता मरहूम को दिया। आज़म की अगली सुबह एएमयू में परीक्षा थी जो उनके अनुसार उम्मीद से ज़्यादा बेहतर गई, शायद इसलिए कि मनीष के मां की दुआएं साथ थी।
“यही कहना चाहूंगा कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नही।” आज़म मुबीन ने आखिर में कहा, “जीवन ऐसे भी काफी छोटी सी है, इसे रंग, रूप, जात, धर्म में उलझा कर कठिन नहीं बनाना चाहिए और एक दूसरे का दुख दर्द बांटने के काम आना चाहिए।”