Home India News बिहार प्रशासन में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का बदतरीन हाल

बिहार प्रशासन में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का बदतरीन हाल

जिब्रानउद्दीन।twocircles.net

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 24 सितंबर 2021 सिविल सेवा परीक्षा 2020 के परिणामों की घोषणा की, जिसमें विभिन्न सेवाओं में नियुक्ति के लिए 761 उम्मीदवारों का चयन किया गया। परीक्षा में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके शुभम कुमार ने सबसे ज्यादा अंक प्राप्त कर सूची में टॉप किया है, जिनका संबंध गौरवशाली बिहार राज्य से है।

हालांकि इस बार यूपीएससी के परीणाम के आंकड़े कई पूर्वधारणाओं के विपरित जाते हुए दिखे। जहां एक तरफ बिहार राज्य को यूपीएससी में सबसे ज्यादा उत्तीर्ण उम्मीदवार प्रस्तुत करने का तमगा प्राप्त था, वहीं आंकड़े कुछ और ही सच्चाई बयान कर रहे हैं – कुल 761 उत्तीर्ण उम्मीदवारों में बिहार से संबंध रखने वाले उम्मीदवारों की संख्या मात्र 17 है, जोकि 2.23% बनता है।

मुस्लिम समुदाय के लिए भी पिछले सालों के मुकाबले इस साल का परिणाम काफी निराशाजनक रहा। इस बार 761 में से मात्र 31 उत्तीर्ण उम्मीदवार ही मुस्लिम समुदाय से रहे। वहीं ये संख्या बिहार के संदर्भ में गिरकर 1 पर आ जाता है। 282 रैंक प्राप्त करने वाले समस्तीपुर के अल्तमश गाज़ी के इलावा एक भी मुस्लिम उम्मीदवार बिहार से नही है। पहले भी बिहार प्रशासन में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व पर कई सवाल उठते रहे हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में डीएम और एसपी के 76 पदों में से केवल 4 अफसर ही मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 16.87% हिस्सा मुस्लिम है। कुल 1.75 करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी वाले बिहार राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यक से संबंधित केवल 2 डीएम और 2 एसपी हैं। जिसमें गोपालगंज जिले के डीएम अरशद अजीज (आईएएस) और शेखपुरा जिले में महिला आईएएस अधिकारी इनायत खान डीएम हैं। वहीं जमुई और कैमूर जिलों में क्रमशः इनामुल हक मेंगनू और मोहम्मद दिलनवाज अहमद एसपी हैं। इसके अलावा, पूर्णिया अनुमंडल में आईएएस सफीना एएन संभागीय आयुक्त हैं।

हालांकि इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता की 2016 से पहले पूरे हिंदुस्तान में मुस्लिम आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संख्या लगभग 2.5% तक ही सीमित थी, लेकिन आने वाले 4 सालों में इस संख्या में खासा उछाल देखने को मिला है, और अब आंकड़ा लगभग 5% के आसपास पहुंच चुका है। इसके पीछे का श्रेय समुदाय द्वारा संचालित सिविल सेवा कोचिंग सेंटरों को दिया जा सकता है।

आपको बताते चलें कि 2017 में उत्तीर्ण मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या कुल 1099 उम्मीदवारों में से 50 थी, इसे आजादी के बाद से देश की किसी भी प्रमुख परीक्षाओं में मुस्लिम समुदाय का सर्वोच्च आंकड़ा बताया गया था। उसके अगले साल 2018 में यही मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 51 हो गई थी। फिर आगामी साल 2019 में ये संख्या 30 पर आ गई थी और अब इस वर्ष ये मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 31 हो गई है।

यूपीएससी के परीक्षा की तैयारी में जुटे साकिब अहमद ने इस मुद्दे पर अपनी राय TwoCircles.Net के समक्ष रखी, कहते हैं, “मुसलमानों के कम प्रतिनिधीत्व को समझने से पहले हमें ये भी जानना होगा की कितने मुसलमान परीक्षा में बैठ रहे हैं।” अहमद कहते हैं कि मुस्लिम नौजवान पहले ही इस तरह का नकारात्मक आंकलन करके परीक्षा में भाग लेने से कतराने लगते हैं जिससे उत्तीर्ण अभ्यर्थियों में भी मुस्लिमों की संख्या कम हो जाती है। “अभ्यर्थियों को चाहिए कि वो पूरी मेहनत करें और आयोग के निष्पक्षता पर विश्वास रखें।” अहमद परीक्षा के तैयारी के साथ-साथ अपने स्नातकोत्तर की भी पढ़ाई कर रहे हैं।

17 करोड़ मुसलमानों की आबादी वाले देश में ये प्रतिनिधीत्व के आंकड़े काफी कम नज़र आते है। उसके बावजूद कुछ नफरत का व्यापार करने वाले चैनल इसे भी आपत्तिजनक नजरों से देख समुदाय के ऊपर यूपीएससी जिहाद जैसे झूठे आरोप लगाते आ रहे हैं। आपको बता दें कि कुछ मीडिया चैनलों द्वारा इसी वर्ष घोषित बिहार लोक सेवा आयोग के परिणाम में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ खूब ज़हर उगला गया था। हालांकि कुल 1454 अभ्यर्थियों में से मात्र 99 मुस्लिम उम्मीदवार ही उत्तीर्ण हो सके थें, जोकि मात्र 6.8% ही बनता है।